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________________ ६७० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे दक्षिणपौरस्त्यो रतिकरपर्वतः, तथा 'ईसाणगाणं माहिदलंतग सहस्सार अच्चुअगाणय इंदाण महायोसा घंटा लहुपरक्कमो पायताणीआहिवई दक्खिणिल्ले णिज्जाणमग्गे उत्तरपुरथिमिल्ले रइकरगपव्यए' तथा ईशानकानां माहेन्द्रलान्तकसहस्राराच्युतकानां च इन्द्राणां महाघोषा घण्टा लघुपराक्रमः पदात्यनीकाधिपतिः दक्षिणो निर्याणमार्गः उत्तरपौरस्त्यो रतिकरपर्वतः, 'परिसाणं जहा जीवाभिगमे' परिषदः खलु यथा जीवामिगमे तत्र परिषदः, अभ्यन्तर मध्यवाह्यरूपाः यस्य यावदेवदेवी प्रमाणा यथा जीवाभिगमे प्रतिपादितास्तथा, ज्ञातव्याः, तत्र देवानां प्रमाणमाह-शक्रस्याभ्यन्तरिकायां पर्षदि १२ द्वादशसहस्राणि देवानां, मध्यमायां लेकर आपस में सामानता है यहां जो 'सोहम्मगाणं' आदि पदों में बहुवचन का प्रयोग किया गया है वह सर्वकालवर्ती इन्द्रों की अपेक्षा से किया गया है "ईसाणगाणं महिंदलंतगसहस्सार अच्चुअगाणं इंदाणं महाघोसा घण्टा लहपरक्कमो पायताणीआहिवई, दक्खिणिल्ले णिज्जाणमग्गे उतरपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए' ईशानेन्द्रों की, माहेन्द्रों की लांतकेन्द्रों की सहस्रारेन्द्रों की और अच्युतकेन्द्रों की महाघोषा घंटा लवुपराक्रम पदात्यनीकाधिपति, दक्षिण निर्याणमार्ग, उ तरपौरस्त्यरतिकर पर्वत, इन चार बातों को लेकर आपस में समानता है 'परिसाणं जहा जीवाभिगमे आयरक्खा सामाणिय चउरगुणा सव्वेसिं जाणविमाणा सम्वेसि जोयणसयसहस्सविच्छिण्णा उच्चत्तण सविमाणप्पमाणा महिंदज्झया सव्वेसि जोयणसाहस्सिआ, सक्कवजा, मंदरे संमोअरंति जाव पज्जुवासंति' इनकी परिषदा के सम्बन्ध में जैसा जीवाभिगम सूत्र में कहा गया है वैसा ही यह कथन यहां पर भी कहलेना चाहिये-वहां का वह कथन इस प्रकार से है-परिषदाएं ३ होती हैं एक आभ्यन्तरपरिषदा दूसरी मध्यपरिषदा और तीसरी बाह्य परिषदा शक की आभ्यन्तरपरिषदा में १२ देव होते हैं, मध्यभाव छ ते सबसता छन्द्रोनी अपेक्षाये ४२पामा माटो छे. 'ईसाणगाणं महिंदलंतगसहस्सारअच्चुअगाणं इंदाणं महाघोसा घण्टा लहुपरक्कमो पायताणीआहिवई, दक्खिणिल्ले णिज्जाणमग्गे, उतर पुरथिमिल्ले रइकरपव्वए' शानेन्द्रीनी, माउन्द्रोनी, aia:न्द्रोनी, ससारे. ન્દ્રોની અને અશ્રુતકેન્દ્રોની માહાષા ઘંટા, લઘુ પરાક્રમ પદત્યનીકાધિપતિ, દક્ષિણ નિર્માણ भाग, उत्तरपो२२त्य २ति४२ पति, ये था२ पातामा ५२२५२ समानता छ. 'परिसाणं जहा जीवाभिगमे आयरक्खा सामाणिय चउग्गुणा सव्वेसि जाब विमाण सम्वेसि जोयण सयसहस्सविच्छिण्णा उच्च तेणं सविमाणप्पमाणा महिदझया सव्वेसि जोयणसहस्सि आ, सक्कवज्जा, मन्दरे समोअरंति जाव पज्जुवासंति' भनी परिषहाना मारे પ્રમાણે જીવાભિગમ સૂત્રમાં કહેવામાં આવેલું છે, તેવું આ કથન અહીં પણ કહી લેવું જોઈએ ત્યાં તે કથન આ પ્રમાણે છે–પરિષદાઓ ૩ હોય છે એક અત્યંતર પરિષદા, બીજી મધ્ય પરિષદ અને ત્રીજી બાહ્ય પરિષદા શક્રની આત્યંતર પરિષદમાં ૧૨ દેવ હોય છે. જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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