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________________ ६६२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे विकु 'एगे सक्के भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हs' तेषां पञ्चानां मध्ये एकः शक्रो भगवन्तं तीर्थकरं करतलपुटेन करतलयोः ऊर्ध्वाधो व्यवस्थितयोः पुढे संपुटं शुक्तिकासंपुटमिवेत्यर्थः ' तेन अति अतिपवित्रेण सरसगोशीर्षचन्दनचर्चितेन धूपवासितेनेतिगभ्यं गृह्णाति, 'एगे सक्के पिओ आयवत्तं घरेइ' एकः शक्रः पृष्ठतः आतपत्रं छत्रं धरति गृह्णाति 'दुवे सका उभओ पासिं चामरुक्खेव करें ति' द्वौ शक्रौ उभयोः पार्श्वयोः चामरोरक्षेपं कुरुतः 'एगे सके पुरओ वज्जपाणी पकडू' इति एकः शक्रः पुरतो वज्रपाणिः सन् प्रकर्षति निर्गमयति, आत्मानमिति, अग्रतः प्ररर्तते इत्यर्थः । अत्र च सत्यपि सामानिकदेव परिवारे यत् इन्द्रस्य स्वयमेव पञ्चरूपविकुर्वणं तत् त्रिजगद्गुरोः परिपूर्ण सेवालिप्त्वेन बोध्यम् । च्वित्ता' विकुर्वणाकर के 'तित्थयरमाउआए पासे ठवेइ' फिर उसने उस शिशुको तीर्थकर माता के पास रख दिया 'ठवेता पंच सक्के विउब्वइ, विउच्चित्ता एगे सक्के भगवं तित्थवरं करयलपुडेण गिष्णइ एगे सक्के पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामरूक्खेवं करें ति' इसके बाद उसने फिर पांच शक्रों की विकुर्वणा की अर्थात् वह स्वयं पांच रूपोंवाला बन गया इस प्रकार पांचरूपों में एक शक्र के रूप ने भगवान् तीर्थकर को अपने करतल पुद से पकड़ा यह उसका करतल पुट परम पवित्र था, सरस गीशीर्ष चन्दन से लिप्त था और धूप से वासित था एक दूसरे शक्र ने भगवान् के ऊपर छत्र ताना और दो शक्रों ने भगवान की दोनों ओर खडे होकर उन पर चामर ढोरे तथा 'एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पकड्ड इति' एक शक हाथ मे वज्र लेकर भगवान् के आगे २ चला यद्यपि सामानिकादि देवों का परिवार उस समय साथ में चल रहा था परन्तु इस प्रकार से अपने आपको पांच रूपों में विकुर्वित करके વિરહથી દુઃખિત થાય નહિ. એટલા માટે જ તે શકે જિનના જેવા રૂપવાળા એક બાળકની विडव ४. 'विउब्वित्ता' विडा उरीने 'तित्थयरमा आए पासे ठवेइ' पछी ते शिशुने तीर्थर भातानी पासे भूठी होघे. 'ठवेत्ता पंच सक्के विउव्वइ, विउब्वित्ता एगे सक्के भगवतित्थर करयलपुडेण गिन्हइ एगे सक्के विट्ठओ आयवतं धरेइ, दुवै सक्का उभओ पासि चामरक्खेब' करेति' त्यार माह तेथे इरी पांच शोनी विठुर्व अरी भेटते हे ते પેાતે પાંચ રૂપવાળો ખની ગયા. આ પ્રમાણે પાંચ રૂપેમાંથી એક શકના રૂપે ભગવાન તીર્થંકરને પેાતાના કરતલ પુટમાં ઉપાડયા તેના આ કરતલ પુટ પરમ પવિત્ર હતો. સરસ ગાશીષ ચન્દનથી લિસ હતો તેમજ ધૂપથી વાસિત હતો. એક શકે ભગવાનની ઉપર છત્ર આચ્છાદિત કર્યુ અને એ શકોએ ભગવાનની બન્ને તરફ ઊભા રહીને તેમની ઉપર शभर ढेजवा साग्या. तथा 'एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पकड्ढ इति' से हाथभां વા લઈને ભગવાનની આગળ આગળ ચાલવા લાગ્યા. જો કે સામાનિકાદિ દેવાને પરિ વાર તે સમયે સાથે-સાથે ચાલી રહ્યો હતેા. પરન્તુ આ પ્રમાણે પોતાની જાતને પાંચ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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