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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ' अष्टभिरग्रमहिषीभिः द्वाभ्यामनीकाभ्यां गन्धर्वानीकेन च नाटयानीकेन च सार्द्ध तस्मात् दिव्यात् यानविमानात् पौरस्त्येन पूर्व स्थितेन त्रिसोपाप्रतिरूपकेण प्रत्यवरोहति अवतरति सः शक्रः ननु पूर्वत्रिसोपानप्रतिरूपकेण शक्रस्य अवतरणमुक्तम् अपराभ्याम् उत्तरदक्षिणाभ्यां केषामवतरणम् इत्याह-'तए णं सक्कस्स देविंदस्स देवरणो' इत्यादि 'तए णं ततः खलु 'सकस्स देविंदस्स देवरणो' शकस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'चउरासीइ सामाणिअ सहस्सीओ' चतुरशीतिः सामानिकसाहस्रिकाः चतुरशीति सहस्रसंख्याक सामानिकाः 'दिवाओ जाणविमाणओ' दिव्यात् यान विमानात् 'उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति' औतराहेण, उत्तरदिग्भागवतिना त्रिसोपानप्रतिरूपकेण प्रत्यवरोहन्ति, अवतरन्ति 'अवसे सा देवाय, देवीओअ, ताओ दिव्याओ जाणविमाणाओ' दिवाओ जाणविमाणाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ' स्थापित करने बाद फिर वह शक्र अपनी आठ अग्रमहिषियों के एवं दो अनीकोंगन्धर्वानीक और नाटयानीक के साथ उस दिव्य यान विमान से पूर्व के त्रिसो पान प्रतिरूपक से होकर नीचे उतरा । ठीक है विमान की पूर्वदिशा में रहे हुए त्रिसोपान प्रतिरूपक से इन्द्र नीचे उतरता है ऐसा आप कहते हैं तो उतर के और दक्षिण के त्रिसोपान प्रतिरूप से कौन उतरता है तो इस आशंका के समाधान निमित्त सूत्रकार कहते हैं 'तएणं सकस्स देविंदस्स देवरणो चउरासीई सामाणि साहस्सीओ जाण विमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति' उस देवेन्द्र देवराज शक्र के उतरजाने के बाद उसके जो चौरासी हजार सामानिक देव थे वे उस दिव्य यान विमान से उसकी उत्तरदिशा के त्रिसोपान प्रतिरूपक से होकर नीचे उतरे 'अवसेसा देवाय देवीओ य ताओ दिवाओ जाणविमाणाओ दाहिपिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति त्ति' बाकी के देव और देवियां उस पडिरूवएणं पच्चोरुहइ' स्थापित मा त श पोतानी मा अमडिषीय तेभर બે અનીકે ગન્ધર્વોનીક અને નાયાની ક-ની સાથે તે દિવ્ય યાન-વિમાનના પૂર્વ તરફના ત્રિપાન પ્રતિરૂપકે ઉપર થઈને નીચે ઉતર્યો. આ વાત બરાબર છે કે, તે શક વિમાનની પૂર્વ દિશામાં આવેલા ત્રિસપાન પ્રતિરૂપકે ઉપર થઈને નીચે ઉતર્યો એવું તમે કહો છો તે પછી ઉત્તર અને દક્ષિણના ત્રિપાન પ્રતિરૂપકો ઉપર થઈને કણ નીચે ઉતરે છે? તો આ શંકાના સમાધાનાથે સૂત્રકાર કહે છે 'तए णं सक्कस्स देवि दस्त देवरण्णो चउरासीई सामाणिअ साहस्सीओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति' ते हेवेन्द्र १२१ १४ च्या तरी गयो ત્યારે તેના ૮૪ હજાર સામાનિક દેવે તે દિવ્ય યાન-વિમાનમાંથી તેની ઉત્તર દિશાના विसापानप्रति३५। ५२ ६२ नीचे उता. 'अवसेसा देवाय देवीओय ताओ दिवाओ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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