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________________ ६५६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे च्छच्दात् 'दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभाव' इति पदद्वयं ग्राह्यम् तथा चायमित्यर्थः दिव्यां देवद्धि परिवारसंपदं स्वविमानवज सौधर्म कल्पवासि देवविमानानां मेरौ प्रेषणात्, तथा दिव्यां देव युति शरीरामरणादि हासेन तथा दिव्यं देवानुभावं देवगति इस्वताऽऽपादानेन, तथा दिव्यं यानविमानं पालकनामकं जम्बूदीपपरिमाणन्यूनविस्तारायामकरणेन प्रतिसंहरन् प्रतिसंहरन् संक्षिपन् संक्षिपन् 'जाव जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणणगरे जेणेव भग. वो तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छइ' यावत् यत्रैव भगवतस्तीर्थंकरस्य जन्मनगरं भगवतस्तीयंकरस्य जन्मभवनं तत्रैव उपागच्छति, स शक्रः अत्र यावत् 'जेणेव जंबु. हीवे दीवे जेणेव भरहे वासे' इति ग्राह्यम् । भी वहां से अवतीर्ण हुआ फर्क केवल इस अधिकार में उस अधिकार की अपेक्षा इतनासाही है कि वहां सूर्याभ देवका अधिकार है और यहां शक्र का अधिकार है अतः इस अधिकार का वर्णन करते समय सूर्याभ देव के स्थान में शक्र का प्रयोग करके इस अधिकार का कथन कर लेना चाहिये यावत् इसने उस दिव्य देवद्धि का-दिव्य यान विमान का प्रतिसंहरण-संकोचन किया, यहां प्रथम यावत् शब्द से सूत्रकार ने सूर्याभदेव के अधिकार की अवधि सूचीत की है और वह यहां विमान के विस्तार को संकोचन करने तक गृहीत हुइ है तथा द्वितीय यावत् शब्द से 'दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं' इन दो पदों का ग्रहण हआ है इसका अर्थ ऐसा है दिव्य परिवार रूप संपत्ति को संकुचित करने के लिये उसने शक ने-अपने विमान को छोडकर बाकी के सौधर्मकल्पवासी देवों के विमानों को-मेरु पर भेज दिया तथा शरीर के आभरणादिको को संकुचित करने के लिये उसने उन्हें कम कर दिया, दिव्य देवानुभाव को भी संकुचित करने के लिये उसने उसे कम कर दिया तथा दिव्य यान विमान रूप जो पालक नामका विमान था उसे संकुचित करने के लिये उसने इसके विस्तार की जो અને આ શકનો અધિકાર છે. એથી આ અધિકારનું વર્ણન કરતાં સૂર્યાભદેવના સ્થાનમાં શક શબ્દનો પ્રયોગ કરીને આ અધિકારનું કથન કરી લેવું જોઈએ યાવતુ તેણે તે દિવ્ય દેવદ્ધિનું-દિવ્ય યાન-વિમાનનું પ્રતિસંહ રણ–સંકેચન કર્યું. અહીં પ્રથમ યાવત્ શબ્દથી સૂત્રકારે સૂર્યાભદેવના અધિકારની અવધિ સૂચિત કરી છે. અને તે અવધિ વિમાનના विस्तारनु सायन ४२ मी सुधा गृहीत थ छे. तेम द्वितीय यावत् २०७४थी 'दिव्व देवजुई दिव्व देवाणुभाव' येथे ५ सहीत या छे. ये पहानी म मा प्रमाणे છે. દિવ્ય પરિવાર રૂ૫ સંપત્તિને સંકુચિત કરવા માટે તે શકે પિતાના વિમાનને બાદ કરીને શેષ સૌધર્મ કપવાસી દેના વિમાનોને મેરુ ઉપર મેલી દીધાં. તેમજ શરીરના આભરણાદિકને સંકુચિત કરવા માટે તેણે તેમને કામ કરી નાખ્યાં. દિવ્યદેવાનુમાવને પણ સંકુચિત કરવા માટે તેણે કમ કરી નાખ્યો તથા દિવ્ય યાન-વિમાન રૂપ જે પાલક નામક જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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