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________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः सू. ४ इन्द्रकृत्यावसरनिरूपणम् सन्ति अस्येहि मघवान् ‘पागसासणे' पाकशासनः पाको नामासुरः तस्य शासक इत्यर्थः 'दाहिणद्धलोकाहिवई' दक्षिणा लोकधिपतिः, 'वत्तीस विमाणावाससयसहस्साहिवई' द्वात्रिंशत् विमानावासशतसहस्राधिपतिः द्वात्रिंशल्लक्ष संख्यकविमानावासाधिपतिरित्यर्थः स्वामीतिभावः 'एरावणवाहणे' ऐरावतवाहनः तन्नामको हस्तिविशेषः वाहनं यस्य स तथाभूतः 'सुरिंदे' सुरेन्द्रः, सुराणां देवानां स्वामी तथा 'अरयंबरवत्थधरे' अरजोऽम्बरवस्त्रधरः प्रांशुरहितनिर्मलवस्त्रधरः तथा 'आलइयमालमउले' आलगितमालमुकुट:-यथास्थान स्थापित माल्यमुकुटः 'नवहेमचारुचित्तचञ्चलकुण्डलविलिह्य मानगण्ड:-नवहेमनिर्मितनवीनसुवर्णनिर्मित यत् चारु सुन्दर चितवत् चञ्चलं दोलायमानं कुण्डलद्वयं तेन विलिह्यमानः स्पृश्यमानी गण्डः कपोलो यस्य स तथाभूतः 'विलिहिज्जमाण' विलिख्यमानो गण्डो यस्य स कारण यह है कि इसके ५०० मित्र है अतः उनकी दो दो आखों की अपेक्षा लेकर यह सहस्त्राक्ष कह दिया गया है। यह मघ-मेघों का यह स्वामी है इसलिये इसे मघवान कहा गया है। पाकशासन-इसने पाक नामके असुर को शिक्षा दी है इसलिये इसका नाम पाकशासन हो गया है। यह दक्षिणार्धलोक का अधिपति होता है ३२ लाख विमान इसके अधिकार में रहते हैं ऐरावत हाथी इसकी सवारी के काममें आता है सुरेन्द्र सुरों का यह स्वामी होता है यह पांशु रहित निर्मल वस्त्र पहिनता है-इसलिये अरजोऽम्बर वस्त्रधर इसे कहा गया है। 'आलइय मालमउडे' यथास्थान जिस पर मालाएं रखी हुई रहती हैं ऐसे मुकट को यह मस्तक पर धारण किये रहता है 'नवहेमचारचित्तंचंचलकुण्डल विलिहिज्जमाणगंडे' ये जिन दो कुण्डलों को कान में पहिनता है वे नवीन हेम सुवर्ण से निर्मित हए होते हैं इसलिये बडे सुन्दर होते हैं और चित्त के समान वे चञ्चल होते रहते हैं इसी कारण दोनों गाल इसके उनसे रगडते रहते हैं આ કારણથી કે આને ૫૦૦ મિત્ર છે. એથી તેમની બે-બે આંખની અપેક્ષાએ આને સહસાક્ષ કહેવામાં આવે છે. આ મઘ-મેઘાને સ્વામી છે એથી એને મઘવાન કહેવામાં આવે છે. પાકશાસન-આ ઈન્દ્ર પાક નામક અસુરને શિક્ષા આપી હતી એથી એનું નામ પાકશાસન થઈ ગયું. આ દક્ષિણાર્ધ લેકને અધિપતિ હોય છે. ૩૨ લાખ વિમાને એના અધિકારમાં રહે છે. સુરેન્દ્ર અને એટલા માટે કહેવામાં આવે છે કે આ સુરેશને સ્વામી છે. આ પાંશુ રહિત નિર્મળ વસ્ત્ર પહેરે છે. એથી આને અરજોમ્બર વસ્ત્રધર કહેવામાં माय छे. 'अलिइय मालमउडे' यथा स्थान नी 6५२ भागा। भूयले सेवा समान या मस्त 6५२ धा२५ श२ २३ छ. 'नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाण. એ જે બે કુંડલેને કાનમાં પહેરે છે. તે કુંડળે નવીન હેમ સુવર્ણથી નિમિત હોય છે, એથી તે કુંડળો અતીવ સુંદર લાગે છે. તે કુંડળે ચિત્તની જેમ ચંચળ થતા रहे थे. मेथी सेना भन्ने हो त उगायी घसाता २६ छ. 'भासुरबोंदी' मेन જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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