SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 552
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०४४ रम्यकवर्षनिरूपणम् ५३९ 'इलादेवीकूडे' इलादेवीकूटम्-इलादेवी दिक्कुमारीकूटम् ९. एरवयकूडे' ऐरवतकूटम्ऐरावतवर्षाधिपकूटम् १., 'तिगिच्छिकूडे' तिगिच्छिहददेवकूटम् ११ एवं' एवम्-अनन्तरोतानि 'सव्वेवि' सर्वाण्यपि 'कूडा' कूटानि 'पंचसइया' पश्चशतिकानि पञ्चशतयोजनप्रमाणानि बोध्यानि एषां 'रायहाणीओ' राजधान्यः 'उत्तरेणं' उत्तरेण उत्तरदिशि बोध्याः, अथास्य नामार्थ प्रष्टुमाह-'से केणटेणं भवे !' इत्यादि अथ शिखरिस्वरूपनिरूपणानन्तरं केन अर्थेन कारणेन भदन्त ! 'एवमुच्चइ' एवमुच्यते 'सिह रिवासहरपव्वए २ ?' शिखरिवर्षधरपर्वतः २१, इति प्रश्नस्य भगवानुत्तरमाह-'गोयमा !' गौतम ! 'सिहरिम्मि' शिखरिणि 'वासहरपव्वए' वर्षधरपर्वते सिद्धायतनाद्यतिरिक्तानि 'बहवे' बहूनि 'कूडा' कूटानि 'सिहरिसंठाणसंठिया' शिखरिसंस्थानसंस्थितानि-वृक्षाकारसंस्थितानि 'सव्वरयणामया' सर्वरत्ममसुवर्णकूलाकूट ४, सुरादेवीकूट, ५, रक्ताकूट ६, लक्ष्मीकूट ७, रक्तवतीकूट ८, इलादेवीकूट ९, ऐरवतकूट १०, और तिगिच्छिकूट ११ इनमें सिद्धायतनकूट इस पर्वत की पूर्वदिशा में है। शिखरी वर्षधरपर्वत के नाम से प्रसिद्ध द्वितीयकूट है हैरण्यवत क्षेत्र के देवका तृतीय कूट है सुवर्णकूला नदी की देवी का चतुर्थ कूट है सुरादेवी नामकी दिक्कुमारी का पांचवां कूट है रक्तावर्तन कूटका नाम रक्ताकूट है यह छठा कूट है पुण्डरीक हूद की देवी का ७ वां कूट है रक्तवती नदी का जो परावर्तन कूट है वह ८ वां कूट है इला देवी नामकी दिक्कुमारी का ९ वां कूट है ऐरावत क्षेत्र के अधिपति देवका १० वां कूट है तथा तिगिच्छि हृद देवका ११वां कूट है 'सव्वे वि एए पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं' ये सब कूट ५०० ५०० योजन प्रमाण वाले हैं इनके देवों की राजधानियां अपने अपने कूटों की उत्तरदिशा में हैं ‘से के गढे णं भंते ! एवं बुच्चई सिहरिवासहरपधए' हे भदन्त ! इसका शिखरी वर्षधर पर्वत ऐसा नाम क्यों पडा ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं दूट ४, सुराहेवी ट ५, २४ताहेवी ठूट १, सभी ५८ ७, २४ताती छूट ८, साहेवी इट-०, ઐરાવત કૂટ–૧૦ અને તિગિચ્છ ફૂટ એમાં જે સિદ્ધાયતન કૂટ કહેવામાં આવેલ છે તે આ પર્વની પૂર્વ દિશામાં આવે છે. શિખરી વર્ષધર પર્વતના નામથી પ્રસિદ્ધ દ્વિતીય કુટ છે. હૈદણ્યવત ક્ષેત્રના દેવને તૃતીય ફૂટ છે. સુવર્ણ કૂલા નદીની દેવીને ચતુર્થ ફૂટ છે. સુરા દેવી નામક દિકુમારીનો પંચમ ફૂટ છે. રાવર્તન કૂટનું નામ રસ્તા ફૂટ છે. આ ષષ્ઠ ફૂટ છે. પુંડરીક હદની દેવીને સપ્તમ ફૂટ છે. રક્તવતી નદીને જે પરાવર્તન કૂટ છે, તે અષ્ટમ કૂટ છે ઈલાદેવી નામની દિકુમારીને નવમ કૂટ છે. એરવત ક્ષેત્રના અધિપતિ हवन६शम टूट छ तथा ति२७ ३६ वने। गियारभाट छे. 'सव्वे वि एए पंचसइया रायहाणीओ उत्तरेणं' से माछूटी ५००, ५०० योगन प्रभाव छ. समना स्वानी पानीमा पात-पाताना टोनी उत्तर हिशामा सावली छ. 'से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ सिहरिवासहरपव्वए' ३ मत ! शिमरी १२ ५६ मे नाम । १२९थी ५ यु छ ? सेना सम प्रभु ४३ छ-गोयमा! सिहरिम्मि वासहरपव्वए कूडा જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy