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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०४४ रम्यकवर्षनिरूपणम् ५३५ दर्शनमनोहारितया प्रकटी करोति जनेभ्य इति शेषः, अयं भावः-तत्र युग्मकमनुष्याणामासनशयनादि लक्षणोपभोगार्था बहवो हिरण्यमयाः शिलापट्टाः सन्ति तांश्च तत्रत्या मानवा आसनादिरूपतयोपभुञ्जन्ते ततश्च हिरण्यं प्रशस्तं नित्यं प्रचुरं वाऽस्यास्तीति हिरण्यवत तदेव हैरण्यवतं स्वार्थिकाण् प्रत्ययान्तमिदम् इति । नामकारणान्तरमाह-'हेरण्णवए य इत्थ देवे' हैरण्यवतश्चात्र देवः 'परिवसई' परिवसति स च देव महद्धिको यावत् पल्योपमस्थितिकः, एतद्विवरणं प्राग्वबोध्यम् तेन हैरण्यवत देव स्वामिकवादिदं हैरण्यवतमित्युच्यते, अथ षष्टं वर्षधरपर्वतं वर्णयितुमुपक्रमते-'कहिणं भंते !' इत्यादि-क्व खलु भदन्त ! 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'सिहरीणाम' शिखरीनाम 'वास हरपव्वए' वर्षधरपर्वतः पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः १, इति प्रश्नन्य भगवानुत्तरमाह-'गोयमा !' गौतम ! 'हे रण्णवयस्स' हैरण्यवतस्य वर्षस्य ‘उत्तरेणं' कहा जाता है क्यों कि यह रूप्यमय और स्वर्णमय रूक्मी एवं शिखरी पर्वतों से सम्बन्धित है अतः इनके योग से इसका नाम हैमवत ऐसा हो गया है। अथवा-यह नित्य सुवर्ण को देता है नित्य स्वर्ण को छोडता है नित्य स्वर्ण को प्रकाशित करता है तात्पर्य इसका ऐसा है कि वहां पर अनेक स्वर्णमय शिला पटक है अतः वहां के युग्मक मनुष्य आसन शयन आदिरूप उपभोग के निमित्त इनका उपयोग करते रहते हैं इससे ऐसा कहा जाता है कि यह क्षेत्र नित्य स्वर्ण प्रदानादि करता है हैरण्यत में स्वार्थिक अणू प्रत्यय हुआ है तथा यहां पर हैरण्यवत् नामका देव रहता है यह देव महद्धिक यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाला है इस कारण से भी इसका नाम हैरण्यवत क्षेत्र ऐसा कहा गया है। 'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सिहरीणामं वासहरपव्वए पण्णत्ते' हे भदन्त ! इस जम्बूद्वीप नामके द्वीप में शिखरी नामका वर्षधर पर्वत कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! हेरण्णवयस्स उत्तઆ રુખ્યમય અને સ્વર્ણમય રુફમી અને શિખરી પર્વતથી સંબંધિત છે. એટલા માટે એમના યોગથી એનું નામ હૈમવત એવું પ્રસિદ્ધ થયું છે. અથવા આ પર્વત નિત્ય સુવર્ણ આપે છે, નિત્ય સુવર્ણ બહાર કાઢે છે, નિત્ય સુવર્ણને પ્રકાશિત કરે છે તાત્પર્ય આમ છે કે આ પર્વત ઉપર અનેક સ્વર્ણમય શિલા પટ્ટકે છે, એથી ત્યાંના યુગ્મક મનુષ્ય આસન શયન આદિ રૂપ ઉપગ માટે એમને ઉપયોગ કરે છે. એથી આમ કહેવાય છે કે આ ક્ષેત્ર નિત્ય સુવર્ણ પ્રદાનાદિ કરે છે. હૈરણ્યવતમાં સ્વાર્ષિક અણુ પ્રત્યય થયેલ છે. તેમજ અહીં હૈરણ્યવત નામક દેવ રહે છે. આ દેવ મહદ્ધિક યાવત્ એક પોપમ જેટલી સ્થિતિવાળ छ. मेथी पर भानु नाम ३२९यत क्षेत्र मे ४ा माव छ. 'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सिहरी णामं वासहरपचए पण्णत्ते' हे महत! मादी५ नाम द्वीपमा શિખરી નામક વર્ષધર પર્વત કયા સ્થળે આવેલો છે? એના જવાબમાં પ્રભુ કહે છે'गोयमा! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं एरावयस्स दाहिणेणं पुरथिमलवणसमुदस्स पण्चत्थिमेणं જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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