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________________ ३६६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे नामधेयं नाम 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तम् शाश्वतत्वाद् स पद्महदः 'ण कयाइ णासि न.' न कदावित् नाऽऽसीत् , न कदाचिद् न भवति, न कदाचिद् न भविष्यति, अभूच्च भवति च भविष्यति च एतद्विवरणं चतुर्थसूत्रस्थ पद्वरवेदिका शाश्वतत्वाधिकाराबोध्यम् ॥ सू०३॥ ___अथ गङ्गासिन्धु महानदी स्वरूपमाह-'तस्स ण' इत्यादि। मूलम्-तस्स णं पउमदहस्स पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महाणई पवूढा समाणी पुरस्थाभिमुही पंच जोयणसयाई पव्वएणं गंता गंगावण. कूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिणि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंता महया महया घडमुहपवत्तएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेग जोयणसइएणं पवाएणं पवडइ । गंगा महाणई जओ पवडइ, इत्थ णं महं एगा जिभिया पण्णत्ता । सा णं जिब्भिया अद्ध जोयणं आयामेणं छ सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं अद्धकोसं बाहल्लेणं मगरमुह विउटसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा० । गंगा महाणई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते, सर्टि जोयणाई आयामविक्खंभेणं णउयं जोयणसयं किंचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं, दस जोयणाइं उठवेहेणं अच्छे सण्हे रययामयकूले समतीरे वइरामयपासाणे वइरतले सुवण्णअनादि निधन है क्योंकि ऐसा ही नाम इसका भूत काल में था, ऐसा ही नाम इसका वर्तमान काल में हैं और ऐसा ही इसका नाम भविष्यत्कालमेही रहेगा इसका भूत काल ऐसा नहीं हुआ है कि जिसमें यह नाम नहीं था वर्तमान काल भी इसका ऐसा नही है कि जिसमें यह नाम नहीं चल रहा है और भविष्यत् काल भी इसका ऐसा नहीं होगा कि जिसमें इसका यह नाम नहीं होगा अतः इसका ऐसा नाम था, अब भी यह है और भविष्यत् में भी यही रहेगा इस प्रकार से त्रिकाल में भी इसका अस्तित्वख्यापन करने से यह नाम इसका अनिमित्तक है ऐसा प्रकट किया गया है ॥सू०३॥ ન હતું. આને વર્તમાનકાળ પણ એ નથી કે જેમાં એ નામનું અસ્તિત્વ ન હોય, અને આને ભવિષ્યત કાળ પણ આ થશે નહિ કે જેમાં આનુ એ નામ અસ્તિત્વ ન ધરાવતું હોય. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે આનું આ પ્રમાણેનું નામ હતું આ પ્રમાણે નામ અત્યારે પણ છે અને ભવિષ્યન્ કાળમાં પણ એવું જ નામ રહેશે. આ પ્રમાણે ત્રિકાલમાં એનું અસ્તિત્વખ્યાપન કરવાથી એ નામ એનું અનિમિત્તક છે આમ પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે, જે ૩ છે જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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