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________________ ४४६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 'सोयाए ' शीताया मदानद्याः 'उत्तरेणं' उत्तरेण - उत्तरदिशि 'एत्थ' अत्र - अत्रान्तरे '' खलु 'पउमुत्तरे' पद्मोत्तरः - पद्मो तरनामकं 'णामं' नाम प्रसिद्धं 'दिसाहस्तिकूडे ' दिग्दस्तिकूटं 'पण ते ' प्रज्ञप्तम् तच्च 'पंचजोयणसयाई' पंच योजनशतानि 'उद्धं उच्चतेणं' उर्ध्वमुच्चत्वेन 'पंचगाउयसयाई' पञ्चगव्यू नशतानि 'उहवेहेणं' उद्वेधेन - भूमिप्रवेशेन ' एवं ' एवम् उच्चत्वादिवत् 'विक्खंभपरिक्खेवो' विष्कम्भपरिक्षेपः विष्कम्भपरिक्षेपः विष्कम्भो विस्तारस्तत्सहितः परिक्षेपः परिधिः 'भाणियच्चो' भणितव्यः वक्तव्यः तथाहि मूले पञ्चयोजनशतानि मध्ये योजनानां शतत्रयम् पञ्चसप्तत्यधिकम् उपरि अर्द्धतृतीयानि योजनशतानीत्येवंरूपो विष्कम्भः, परिक्षेपश्च- मूले पञ्चदशयोजनशतानि एकाशीत्यधिकानि, मध्ये एकादशयोजनशतानि षडशीत्यधिकानि किञ्चिदुनानि उपरि किञ्चिन्न्यूनानि एकनवत्यधिकानि सप्त योजनशतानि इत्येवं रूपः 'चुल्लहिमवंतस रिसो' क्षुद्रहिमवत्सदृशो वक्तव्यः (पासायाण य) प्रासादानां च मन्दर पर्वत की उत्तर दिशा और पूर्वदिशा के अन्तराल में- इशान कोण में पद्मोत्तर नामका दिग्हस्तिकूट कहा गया है (पंच जोयणसयाई उद्धं उच्चतेणं पंच गाउयसयाई उच्चेहेणं एवं विक्संभपरिक्खेवो भाणियच्चो चुल्लहिमवंतसरिसो) यह कूट पांचसौ योजन की ऊंचाई वाला है तथा जमीन के भीतर यह पांचसौ कोश तक नीचे गया है अर्थात् जमीन के भीतर इसकी नीव ५०० कोशतक गहरी गई हुई है विष्कम्भ और परिक्षेप इसका इस प्रकार से है मूलमें इसका विष्कम्भ ५०० पांचसौ योजन का है मध्यमे इसका विस्तार ३०० तीनसौ ७५ योजन का है और ऊपर में इसका विस्तार २५० योजन का है मूलमें इसका परिक्षेप १५८१ सौ योजन का है मध्यमें इसका परिक्षेप कुछकम १९८६ योजन का है और ऊपर में इसका परिक्षेप कुछ कम ७९१ योजन का है। इस तरह यह कूट क्षुद्र हिमवान् पर्वत के जैसा है (पासायाण य तं चेव) जो प्रमाण क्षुद्र हीमवत् પર્યંતની ઉત્તર દિશા અને પૂર્વ દિશાના અતરાલમાં-ઇશાનમાં તેમજ પૂર્વ દિગ્વી शीता भड़ा नहीनी उत्तर दिशामा पभेत्तर नाम हिस्ति छूट आवे छे 'पंच जोयणसयाई उद्धं उच्चतेणं पंच गाउयसयाई उब्वेहेणं एवं विक्खंभपरिक्खेवो भाणियन्त्रो चुल्लहिमवंतसरिसो' आा छूट पांयसेो येोन्न भेटली याध्वाणो छे तेमन मीननी अंडर पाए પાંચસો ગાઉ સુધી નીચે ગયેલા છે. એટલે કે જનીનની અંદર એની નીમ ૫૦૦ ગાઉ જેટલી 'ડી છે. એના વિશ્વભ–પરિક્ષેપા આ પ્રમાણે છે. મૂલમાં એના નિષ્કભ ૫૦૦ ચૈાજન જેટલા છે. મધ્યમાં એને વિસ્તાર ૩૭૫ ચેાજન જેટલે છે અને ઉપર એના વિસ્તાર ૨૫૦ ચેાજન જેટલે છે અને પરિક્ષેપ ૧૫૮૧ ચેાજન જેટલે છે. મધ્યમાં એને પરિક્ષેપ કંઇક ક્રમ ૧૧૮૬ ચૈાજનના છે, અને ઉપર તેના પરિક્ષેપ ૭૯૧ ચૈાજન જેટલેા છે. આ प्रमाणे या छूट क्षुद्र हिभवान पर्वत मेवे छे. 'पासायाणय तं चेव' भेटसु प्रमाणु क्षुद्रहिभવત્ ફૂટપતિના પ્રાસાદ માટે કહેવામાં આવેલુ છે, તેટલું જ પ્રમાણ આની ઉપર આવેલાં જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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