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________________ ४४२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे हिसि' चतुर्दिशि-दिक्चतुष्टये तोरणानि बहिराणि 'जाव' यावत्-अत्र यावत्पदेन-'नानामणिमयानि' इत्यादीनां तोरणविशेषणवाचकपदानां सङ्ग्रहो बोध्यः, सच सार्थः राजप्रश्नीयसूपस्य त्रयोदशसूत्रस्य मत्कृतमुबोधिनी टीकातोऽवसेयः, अथैतत्पुष्करिणीमध्यवर्तिप्रासादावतंसकं वर्णयितुमुपक्रमते-'तासि गं' तासां खलु 'पुक्खरिणीण' पुष्करिणीनां 'बहुमज्मदेसमाए' बहुमध्यदेशभागे-अत्यन्तमध्यदेशभागे 'एत्थ' अत्र अत्रान्तरे o खलु 'महं एगे' महानेकः 'ईसाणस्स देविंदस्स देवरणो' ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'पासायवडिसए' प्रासादावतंसकः उत्तमप्रासादः 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः-स्वपरिवेष्टनीभूतपुष्करिणीचतुष्टयबहुमध्यदेशभागवर्ती प्रासादोऽयमुक्त इत्यर्थः, स च 'पंचजोयणसयाई' पश्च योजनशतानि 'उद्धं उच्चत्तेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'अद्धाइज्जाई' अर्द्धतृतीयानि 'जोयणसयाई योजनशतानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण-विस्तारेण 'अब्भुग्गयमूसियपहसिय इव' अभ्युद्गतोच्छ्रितप्रहसित इव इत्यादिपदानां प्रासादविशेषणवाचकानामत्र सङ्ग्रहो बोध्या, स च राजप्रश्नीयसूत्रस्य मत्कृतबहुमज्झदेसभाए एस्थणं एगे महं ईसाणस्स देविंदस्स देवरपणो पासायवडिंसगे पण्णते) यहां चारों दिशाओं में तोरण-बहिर्दार है यहां यावत्पद से “नाना मणिमयानि" इत्यादिरूप से कहे गये तोरणों के विशेषणों का ग्रहण हुआ है इन्हें राजप्रश्नीय सूत्र की सुबोधिनी टीका से समझ लेना चाहिये इन पुष्करिणियों के ठीक मध्यभाग में एक विशाल देवेन्द्र देवराज ईशान का प्रासादावतंसक-श्रेष्ठ प्रासाद-कहा गया है (पंच जोयणसयाई उडू उच्चत्तेणं अदाइजाई जोयणसयाई विक्खंभेग, अन्भुग्गयमसिय एवं सपरिवारो पासायडिंसगो भाणियचो) यह प्रासादावतंसक ऊंचाई में ५ योजन का है २५० योजनका इसका विष्कम्भ है “अब्भुग्गय इत्यादि पदों का जोकि प्रासादावतंसक के विशेषणरूप से प्रयुक्त किये गये हैं यहां संग्रह हुआ है इन पदों का संग्रह श्रीराजप्रश्नीय सूत्र से समझलेना चाहिये प्रासादातंसक का वर्णन मुख्यासन और गौणासन रूप परिवार सहित करलेना चाहिये (मंदर. बहमन्झदेसभाए एत्थणं एगे महं ईसाणस देविंदरस देवरण्णो पासायवडिंसगे पण्णते' मही थारे हिशासमा तार-माहार-छे. मी यावत् ५४थी 'नाना मणिमयानि' वगेरे ३५भां કથિત તેરણના વિશેષણનું ગ્રહણ થયું છે. એ વિશેષણને અર્થ “રાજપ્રશ્નીયસૂત્ર' ની સુધિની ટીકામાંથી જાણી લેવે જોઈએ. એ પુષ્કરિણીઓના ઠીક મધ્યભાગમાં એક વિશાળ देवेन्द्र ११२५० शानना प्रासावत'स४-श्रेष्ठ प्रासाह-मावेस छ, 'पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्च तेणं अद्धाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय एवं सपरिवारो पासायवडि सगो भाणियव्वो' 40 प्रासावित मा ५ यौन २८मा छ. २५० येन । सेना Ausa छे. 'अब्भुग्गय' वगेरे पहातो मत्र सय थये। छ. मे पह! प्रासादाय. તસકના વિશેષણ રૂપમાં પ્રયુક્ત થયેલાં છે. એ પદેને ભાવાર્થ રાજપ્રશ્રીય સૂત્રમાંથી જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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