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________________ ४३८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 'तओ दारा' त्रीणि द्वाराणि 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्तानि, 'ते णं' तानि खलु 'दारा' द्वाराणि 'अट्ठ जोयणाई' अष्ट योजनानि 'उद्धं उच्चत्तेन' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'चत्तारि' चत्वारि 'जोयणाई' योजनानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण - बिस्तारेण 'तावइयं चेव' तावदेव - तत्प्रमाणमेव योजनचतुष्टयमेवेत्यर्थः ' पवेसेणं' प्रवेशेन प्रवेशमार्गावच्छेदेन, 'सेया' श्वेतानि-शुक्लवर्णानि 'वरकणग भियागा' वरकनकस्तूपिकानि- उत्तम स्वर्णमय शिखरयुक्तानि, एतद्वाराणि वर्णयितुं सूचयति - 'जाव वणमाला भो' यावद्वनमालाः - ईहामृगेत्यारभ्य वनमालापर्यन्तवर्णको बोध्यः, सचाष्टमसूत्रात्सार्थी ग्राह्यः । तथा 'भूमिभागो य' भूमिभागथ 'भाणियव्वो' भणितव्यःवक्तव्यः तस्य वर्णनं पञ्चमसूत्राद्बोध्यम्, 'तस्स णं' तस्य भूमिभागस्य खलु 'बहुमज्झ देसभा ' बहुमध्यदेशभागे - अत्यन्तमध्यदेश भागे 'एत्थ णं' अत्र - अत्रान्तरे खलु 'महं एगा' महत्येका 'मणिपेढिया' मणिपीठिका मणिमय आसनविशेषः, 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता, सा च 'अट्ठ' अष्ट 'जोयणाई' योजनानि ' आयाम विक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण दैर्घ्यविस्ताराभ्याम् ' चत्तारि ' णस्स तिदिसिं तओ द्वारा पण्णत्ता) इस सिद्धायतन के तीन दिशाओं में तीन दरवाजें कहे गये हैं । (ते णं दारा अट्ठजोयणाई उद्धं उच्चत्तण, चत्तारि जोयणाइ विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेआ वरकणगथू भियागा जाव वणमालाओ भूमिभागो य भाणिव्वो) ये द्वार आठ योजन के ऊंचे हैं चार योजन का इनका fassम्भ है और इतना ही इनका प्रवेश है ये श्वेत वर्ण के हैं और इनकी जो शिखरे हैं वे सुन्दर सोने की बनी हुई हैं। यहां पर वन मालाओं का एवं भूमिभाग का वर्णन करलेना चाहिये वनमालाओं का वर्णन “इहामिय" आदि पाठ से जानलेना चाहिये यह पाठ अष्टम सूत्र से और भूमिभाग का वर्णन पञ्चम सूत्र से समझलेना चाहिये वनमाला और भूमिभाग के वर्णन तक ही इन द्वारों का वर्णन किया गया है (तस्सणं बहुज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता) उसी भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल मणिपीठिका 'तस्स णं सिद्धाययणस्स तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता' आ सिद्धायतननी भए हिशायामां त्र हरवालय। आवेसा छे. 'तेणं दारा अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्खं• भेणं तावइयं चेव पवसेणं सेआ वरकणगथूभियागा जाव वणमलाओ भूमिभागो य भाणियव्वो' એ દ્વારા આઠ યાજન જેટલા ઊંચા છે. ચાર યેાજન જેટલા એ દ્વારાના વિષ્ણુભ છે, અને આટલે જ એમના પ્રવેશ છે. એ દ્વારા શ્વેત વર્ણવાળાં છે. એમના જે શિખરા છે તે સુદર સુવર્ણ નિર્મિત છે. અહી' વનમાળાએ તેમજ ભૂમિભાગનું વર્ણન કરી લેવું જોઈએ. वनभाजानु' वर्शन 'इहामिय' वगेरे पाउथी लागी सेवु लेह से. आ पाई अष्टभ सूत्रમાંથી અને ભૂમિભાગનું વર્ણન પાંચમ સૂત્રમાંથી જાણી લેવુ જોઇએ. વનમાળા અને ભૂમિलागना वर्णुन सुधी ४ मे द्वारा वान वामां आवे छे. 'तस्स णं बहुमज्झदेसभाए एत्थ महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता' ते लूभिलाशना ही मध्य भागभांड જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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