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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे गाथया सङ्ग्रहीतुमाह-'सिद्धे य' इत्यादि-छायागम्यम्, अथ सर्वाणि कुटानि परिगणयि. तुमाह-'एए हरिकूडवज्जा' एतानि हरिकूटवर्जानि हरिकूटं वर्जयित्वा हरिकूटस्य सहस्रयोजनप्रमाणत्वात्, शेषाणि सिद्धायतनादीनि अष्टकूटानि 'पंचसइया' पश्चशतिकानि पश्चशतयोजनप्रमाणानि ‘णेयव्वा' नेतव्यानि बोधपथं प्राप्याणि बोध्यानि, तत्र हरिकूटस्य प्रमुखता परिगणनायामैच्छिकी न तु कामिकी 'एएसि' एतेषाम् अनन्तरोक्तानाम् 'कूडाणं' कूटानां पुच्छा' पृच्छा-सूत्रनिर्दिष्टः प्रश्नः प्रश्नस्त्रमिति भावः तथा तदाधारतया 'दिसिविदिसाओ' दिग्विदिशः दिशो विदिशश्च ‘णयवाओ' नेतन्या:-ज्ञातव्याः, तत्र प्रश्नसूत्र हि-'कहि णं भंते ! विज्जुप्पभे ववखारपब्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ?' एवमादिरूपम, दिग्विदिशश्चैवम्-मेरोदक्षिणपश्चिमायां विदिशि मेरुसमीपवति प्रथमं सिद्धायतनकूटं, तस्य निर्कतिकोणे विद्युत्प्रभकूटं नाम द्वितीयं कूटम्, तस्य निर्कतिकोणे तृतीयं देवक्ट, जो विद्युत्प्रभ वक्षस्कारपर्वत विशेष के जैसे नाम वाला कूट है ? उसका नाम विद्यत्प्रभ कूट है। देवकुरु के जैसे नाम वाला देवकुरुकूट है पक्ष्म नामक विजय के जैसा नाम वाला पक्ष्मकूट है दक्षिण श्रेणी का जो अधिपति विद्यत्कुमारेन्द्र हैं उसका जो कूट है वह हरिकूट है इन्हीं नौ कूटों का इस सिद्ध आदि गाथा द्वारा संग्रह किया गया है-इनमें हरि कूट को छोडकर बाकी के जो आठ कट हैं वे एक एक कूट पांचसौरयोजन के हैं हरिकूट का प्रमाण एक हजार योजन का है (एएसिं कूडाणं पुच्छा दिसि विदिसाओ णेयवाओ जहा मालवंतस्स) इन कटों के सम्बन्ध में दिशा में और विदिशा में कौन कौन कूट हैं" ऐसा पृच्छा यहां कर लेनी चाहिये "जैसे कहिणं भंते ! विज्जुप्पमे वक्रवारपब्धए सिद्धाय यणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते) हे भदन्त ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कारपर्वत पर सिद्धायतन नामका कूट कहां पर कहा गया है ? तब उत्तर में ऐसा कहना-हे गौतम! मेरु के दक्षिण पश्चिम कोने में मेरुसमीपवर्ती प्रथम सिद्धायतन कूट कहा गया हैं કટ છે. દેવકુરુ જેવા નામવાળે દેવકુરુ ફૂટ છે. પક્ષમ નામક વિજયના જેવા નામવાળ પક્ષમ ફુટ છે. દક્ષિણ શ્રેણીને જે અધિપતિ વિદુકુમારેન્દ્ર છે, તેને જે ફૂટ છે તે હરિકૂટ છે. એ નવ ફટને આ સિદ્ધ આદિ ગાથા વડે સંગ્રહ કરવામાં આવેલ છે. એમાં હરિકૂટને બાદ કરી શેષ જે આઠ ફૂટે છે તે દરેકે દરેક પાંચસે લેજન જેટલા છે. હરિફૂટનું પ્રમાણ २४ ॥२ या छ. 'एएसिं कूडाणं पुच्छा दिसि विदिसाओ णेयव्याओ जहा मालवंतस्स' से दूटोना समयमा हिशमां ने विशिमा ४॥ या टोछ ? मेवी छ। भत्र २ देवी न. रेम-'कहिणं भंते ! विज्जुप्पभे वक्खारपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कडे पण्णत्ते' ३ लत ! विद्युत्मस पक्ष४२ ५ ५२ सिद्धायतन छूट ४यां स्थणे આવેલ છે? ત્યારે જવાબમાં પ્રભુ કહે છે–હે ગૌતમ! મેરુના દક્ષિણ-પશ્ચિમ કેણમાં મેરુ સમીપવતી પ્રથમ સિદ્ધાયતન ફૂટ આવેલ છે. સિદ્ધાયતન ફૂટની મૈત્રાત્ય વિદિશામાં વિદ્ય જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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