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________________ ३६२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे " सार इति समस्तं पदम्, तद्वयाख्या पूर्वं गता, 'यावद् भुङ्क्ते' इत्यत्रत्य यावत्पद सङ्ग्राह्यानां पदानां सङ्ग्रह औपपातिकसूत्रस्यैकादशसूत्रतः कार्यः तदर्थश्च तत्रैव मत्कृतपीयूषवर्षिणी ramrat बोध्यः, ईशाभिलापेन महाकच्छशब्दस्य 'अत्थो य भाणियच्वो' अर्थश्च भणितव्यः वाच्यः सम्प्रति ब्रह्मकूटाख्यं वक्षस्कारपर्वतं वर्णयितुमुपक्रमते - 'कहि णं भंते " इत्यादि छायागम्यम् नवरम् 'सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव आसयति' शेषं यथा चित्रकूटस्य याव - दासते - शेषं वर्णितातिरिक्तं सर्वं यथा चित्रकूटस्य तथा वाच्यम् तत् किम्पर्यन्तम् इत्याहयावदासते - यावत्पदेन आयामादि सूत्रं भूमिभागवर्णनसूत्रपर्यन्तं च सर्व भणितव्यम्, अथात्र कूटानि वर्णयितुमाह - ' पउमकूडे चत्तारि कूडा' इत्यादि - सुगमम् ' एवं ' एवम् - ( कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पउमकूडे णामं वक्खारपच्चए पण्णत्ते ) हैं भदन्त ! महाविदेह क्षेत्र में पद्मकूट नामका वक्षस्कार पर्वत कहां पर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं महाकच्छस्स पुरत्थिमेणं कच्छावईए पच्चत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे पउमकूडे णामं पवक्खारपच्चए पण्णत्ते) हे गौतम! नीलवंत पर्वत की दक्षिण दिशा में, सीता महानदी की उत्तर दिशा में, महाकच्छ विजय की पूर्व दिशा में एवं कच्छावती की पश्चिम दिशा में महाविदेह के भीतर पद्मकूट नामका वक्षस्कार पर्वत कहा गया है । (उतरदाहिणायए पाईणपडीण विच्छिन्ने) यह पद्मकूट नामका वक्षस्कार पर्वत उत्तर से दक्षिण तक तो लंबा है तथा पूर्व से पश्चिम तक विस्तीर्ण है - ( सेसं जहा चितकूडस्स जाव आसयंति) बाकी का और सब वर्णन इसके सम्बन्ध का चित्रकूट वक्षस्कार के प्रकरण में जैसा कहा गया है वैसा ही है यावत् वहां पर अनेक व्यन्तर देव और देवियां आराम करती है विश्राम करती है । (पउमकूडे चतारि कूडा पण्णत्ता) पद्मकूड के ऊपर 'कहिणं भंते! महाविदेहे वासे पउमकडें णामं बक्सारपव्वए पण्णत्ते' हे महंत ! મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં પદ્મકૂટ નામક વક્ષસ્કાર પર્વત કયા સ્થળે આવેલ છે? એના જવાબમાં अछे ? 'गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए महाणईए पच्चत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे पवमकूडे णामं वक्खारपव्वर पण्णत्ते' हे गौतम! नीसवन्त पर्वतनी दक्षिण દિશામાં સીતા મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં, મહાકચ્છ વિજયની પૂર્વ દિશામાં તેમજ કચ્છાवतीनी पश्चिमहिशामां महाविदेहनी अंडर पद्मट नाम वक्षस्कार पर्वत मावेस छे. 'उत्तर दाहिणाय पाईणपडीणविच्छिन्ने' मे पद्मछूट नाम वक्षस्रपर्वत उत्तरथी दक्षिण सुधी सांगी छेतेन पूर्वथी पश्चिम सुधी विस्तीर्ण छे. 'सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव आसयति' से સંબંધમાં શેષ બધું વન ચિત્રકૂટ વક્ષસ્કારના પ્રકરણમાં કહ્યું તેવુ' જ સમજવું, યાવત્ त्यां धा व्यन्तर हेवा भने देवीओ आराम मेरे छे, विश्राम रे छे. 'पउमकूडे चत्तारि कूडा पण्णत्ता' पद्मटनी उपर यार टो वामां आवे छे, 'तं जहा ' तेभना नाभी भा જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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