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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २६ विभागमुखेन कच्छविजयनिरूपणम् ३२७ श्रेण्यस्ता सर्वाः सौधर्मेन्द्रस्य, अत्र बहुवचनं विजयवर्ति सर्ववैताढयश्रेण्यपेक्षया बोध्यम्, अथात्र कूटानि नामतो निर्दिशन्नाह-'कूडा' कूटानि यथा-'सिद्धे' सिद्धं सिद्धायतनकूटं १, तच्च पूर्वदिशि ततः पश्चमदिशि शेपाण्यष्टावपि कूटानि वक्तव्यानि यथा-'कच्छे' कच्छ. दक्षिणकच्छार्द्धकूटं द्वितीयम् २, 'खंडग' खण्डीकं-खण्डप्रपातगुहाकूटं तृतीयम् ३'माणी' माणि माणिभद्रकूटम् चतुर्थम् ४ नामैकदेशो नामग्रहणात् 'वेयद्ध' वैताढयकूटम् पञ्चमम् ५ 'पुण्ण' पूर्ण भद्रकूटं पष्ठम् ६ 'तिमिसगुहा' तमिस्रगुहा तमिस्रगुहाकूटं सप्तमम् ७ 'कच्छे’ कच्छं-कच्छकूटम् अष्टमम् ८ 'वेसमणे वा' वैश्रवणकूटं नवमम् ९ वा, एतानि नव 'वेयद्धे' वैताढय वैताढयपर्वते 'होति' भवन्ति 'कूडाई' कूटानि ॥१॥ इति । अथोत्तरकच्छविजयं पृच्छति-'कहि णं' क्व खलु 'भंते !' भदन्त ! 'जंबुद्दीवे दीवे' की 'सेढीओ' श्रेणी 'ईसाणस्स' ईशान देवकी 'सेसाओ' शेष सीता महा नदी की दक्षिणदिशा की श्रेणी 'सकस्सत्ति' शकेन्द्र की कही है। इस कथनका भाव इस प्रकार है-सीता महा नदो की उत्तरदिशा में जो विजय वैताढय है, उसमें जो दक्षिणोत्तर दिग्वति आभियोग्य श्रेणीयां है, सब सौधर्मेन्द्र की कही है। यहां पर बहु वचन का प्रयोग विजयवर्ति सर्व वैताढय श्रेणियों की अपेक्षा से है। अब नामनिर्देशपूर्वक कूटों का कथन करते हैं-'कूडा' कूटें यथा 'सिद्धे सिद्धायतन कूट१, वह पूर्व दिशामें हैं उसकी पश्चिम दिशामें शेष आठों कूट कहना चाहिए । कथा 'कच्छे' कच्छ-दक्षिणकच्छार्द्धकूट यह दूसरा कूट है२, 'खंडग' खंडकप्रपातगुहाकूट नामका तीसरा कूट है ३, 'माणी' माणिभद्रकूट नामका चोथा कूट है४, 'वेयद्ध' वैताढय कूट नामका पांचवां कूट है, 'पुण्ण' पूर्णभद्रकूट नामका छठा कूट है ६, तिमिसगुहा' तिमिस्रगुहाकूट नामका सातवां कूट है, 'कच्छे कच्छ कूट नामका आठवां कूट है८, 'वेसमणे वा' वैश्रवणकूट नववां कूट है९, ये नव 'वेयद्धे' वैताढयपर्वत में 'होति' होते हैं 'कूडाई' कूट होते हैं ॥१॥ છે. આ કથનને ભાવ આ પ્રમાણે છે.-સીતા મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં જે વિજય વૈતાઢય છે તેમાં જે દક્ષિણોત્તર દિગૃતિ અભિયોગ શ્રેણી છે એ બધી સૌધર્મેદ્રની કહેલ છે. અહીંયાં બહુ વચનને પ્રયોગ વિજયવર્તિ સઘળી વૈતાઢય શ્રેણિયાના અપેક્ષાથી છે. ३ नाम निर्देश पू टोनु थन ४२ छ-'कूडा' छूटो भो 'सिद्धे' सिद्धायतन ३८ १, ये छूट पूर्व दिशामा छ. मीन भाडे ठूट पडेन.-कच्छे ४२७ क्षिा १२ या जाने . छे. २, 'खंडग' म४५पात गुडाट नामनातील ८ . 3, 'माणी' माशिम दूट नाभना या छूट छे. ४, 'वेयद्धा' वैतादय नामन पांयमी डूट छे. 'पुण्णा' पूलद्र ठूट नामनछटो डूट छ १, 'तिमिसगुहा' तिमिखडाट सातभा ठूट छ ७, 'कच्छे' ४२७ ठूट नामनी मामा ठूट छ. ८, 'वेसमणे वा' वैश्रवण नाभना नवभाट छ. ६, ये न ट 'वेयद्धे' वैतादय पतमा 'होति' हाय छे. 'कूडाई' फूट है।य छे. ॥१॥ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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