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________________ २९६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सवाई' पञ्चयोजनशतानीत्यादि - पञ्चशतयोजनानि 'उद्धं' ऊर्ध्वम् 'उच्चत्तेण' उच्चत्वेन 'अवसिहं' अवशिष्टं - मूलविष्कम्भादिकम् 'तं चेव' तदेव - गन्धमादन सिद्धायतनकूटोक्तमेवमूलविष्कम्भादिकमत्रापि वक्तव्यम् किम्पर्यन्तम् ? इत्याह- 'जाव रायहाणी' यावद् राजधानी वर्णकपर्यन्तम्- अयमाशयः - सिद्धायतन कूटवर्ण के सामान्यतः कूटवर्णकसूत्रं विशेषतः सिद्धायतनवर्णकसूत्रं चेतद्वयमपि वक्तव्यम् तत्र सिद्धायतनकूटे राजधानीसूत्रं न युज्यतेऽतो राजधानीसूत्रं विहाय तदधस्तनसूत्रं वक्तव्यमिति, अत्र यावच्छन्दो न सग्राहकः किन्त्वयधिमात्रसूचकः, अथ लाघवार्थमतिदेशसूत्रमाह - 'एवं मालवंतस्स' एवं माल्यवतः इत्यादि - एवम् - इत्थम् - सिद्धायतनकूटवत् माल्यवत : - माल्यवन्नामकस्य 'कूडस्स' कूटस्य 'उत्तरकुरूकूडस्स' उस कूट का क्या प्रमाण है एवं वह कूट कैसा है इस अपेक्षा निवृत्यर्थ सूत्रकार कहते हैं - 'पंच जोयणसयाई' पांच सो योजन का 'उद्धं उच्चत्तेणं' उपर के भाग में ऊंचा है 'अवसिहं' शेष कथन अर्थात् मूल विष्कंभादि का कथन 'तं चेव' गंधमादन एवं सिद्धायतन कूट के जैसाही कहा है । वह कथन कहांतक समान है ? इसके लिए कहते हैं 'जाव रायहाणी' यावत् राजधानी अर्थात् राजधानी का वर्णन पर्यन्त वह कथन ग्रहण कर लेवें । इस कथन का भाव यह है कि सिद्धायतन कूट के वर्णन में सामान्य से कूट वर्णन सूत्र एवं विशेषतया सिद्धायतन का वर्णन सूत्र ये दोनों कहना चाहिए उस कथन में सिद्धायतन कूट के वर्णन में राजधानी संबंधी सूत्र नहीं कहना चाहिए अतः राजधानी के कथन को छोड़कर उसके नीचे का वर्णन परक सूत्र कहलेवें । यहां पर यावत् शब्द संग्रहार्थ में नहीं है अपितु अवधिमात्र सूचक है। अब संक्षेप करने के उद्देश से अतिदेश सूत्र कहते हैं - ' एवं मालवंतस्स' सिद्धायतन कूट के कथनानुसार माल्यवान् नामक 'कूडस्स' कूटका 'उत्तरकुरू એ ફૂટનું શું પ્રમાણ છે? અને એ ફૂટ કેવા છે? એ અપેક્ષાની નિવૃત્તિ નિમિત્તે सूत्र हे छे. - 'पंचजोयणसयाई' यांयसेो येोन्न भेटलो 'उद्धं उच्चत्तेणं' उपरनी तर (थे। छे. ‘अवसिट्ठ’ माडीनु अथन अर्थात् भूत विष्णुं विगेरे स्थन 'तं चेव' गंधभाहन अने सिद्धायतन ईटनी ने उस छे. जाव रायहाणी' यावत् राज्धानीना वर्शन पर्यन्त તે કથન ગ્રહણ કરી લેવું. આ કથનના ભાવ એ છે કે—સિદ્ધાયતન ફૂટના વર્ણનમાં સામાન્ય રીતે ફૂટનું વર્ણીન કરનાર સૂત્ર અને વિશેષ રીતે સિદ્ધાયતનનુ' વર્ણન કરનાર સૂત્ર એ બન્ને કહેવા જોઇએ. એ થમાં સિદ્ધયતન ફ્રૂટના વર્ણનમાં રાજધાની સંબંધી સૂત્ર કહેવાનું નથી. તેથી રાજધાનીના કથનના ત્યાગ કરીને તેની નીચેનું વર્ણન પરક સૂત્ર કહીં લેવું. અહીંયાં યાવત્ શબ્દ સંગ્રહાંમાં નથી. પરંતુ અવિધમાત્રનુ' સૂચક છે. हवे संक्षेप १२वाना उद्देशथी अतिदेश सूत्र आहे छे.-' एवं मालवं तस्स' सिद्धायतन જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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