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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम् २७३ तस्याः-जम्बू सुदर्शनायाः खलु 'पुरथिमेणं पौरस्त्येन-पूर्वस्यां दिशि 'चउण्ह' अग्गमहिसीणं' चतमृणाम् अग्रमहिषीणां-प्रधानमहिषीणाम्-सर्वश्रेष्ठराजीनाम् 'चत्तारि जंबूओ पण्णत्ताओ' चतस्रो जम्ब्वः प्रज्ञप्ता:-कथिताः । अथ गाथाद्वयेन पार्षददेवजम्बूराह-'दक्खिणेत्यादि'दक्षिणपुरथिमे' दक्षिणपौरस्त्ये-अग्निकोणे, 'दक्खिणेण' दक्षिणेन-दक्षिणस्यां दिशि 'तह अवरदक्खिणणं च तथा अपरदक्षिणेन अपरदक्षिणस्यां : नैऋत्यविदिशि च-एतद्दिकूत्रये यथाक्रमम् । 'अट्ठदसबारसेव य' अष्टदशद्वादश-तत्राग्निकोणे अष्ट, दक्षिणस्यां दिशि दश, नैऋत्यकोणे द्वादश च 'भवंति जंबूसहस्साई' जम्बूसहस्राणि-जम्बूनां सहस्राणि भवन्ति एव शब्दोऽवधारणार्थः, तेन न न्यूनानि नाधिकानि इति व्यवच्छेदार्थः ।११ 'अणियाहिवाण' अनीकाधिपानाम्-सेनाधिपतीनां देवानां सप्तानां 'पच्चत्थिमेण' पश्चिमेन पश्चिमायां दिशि 'सत्तेव होति जंबूओ' सप्तैव सप्तसंख्या एव न न्यूनाधिका जम्ब्वो भवन्ति । इति द्वितीयः परिक्षेपः। ___ अथ तृतीयपरिक्षेपमाह-'सोल से' इत्यादि-'आयरक्खाणं' आत्मरक्षाणाम्-आत्मरक्षाकारिणाम् अनादृतदेवस्य सामानिक 'चतुर्गुणानां सोलस साहस्सीओ' षोडशसहस्राणां देवानां महिषियों के 'चत्तारि जंबूओ पण्णताओ' चार जंबू वृक्ष कहे हैं। __ अब दो गाथा से पार्षद देव के जंबू कहते हैं-'दक्षिण पुरथिमे' अग्निकोणमें 'दक्खिणेण' दक्षिण दिशामें 'तहअवर दक्खिणेणं च' नैऋत दिशामें ये तीनों दिशामें क्रमसे 'अट्टद्स बारसेव'आठ, दस, बारह उनमें अग्निकोणमें आठ, दक्षिणदिशामें दस नैऋत्य कोण में बारह 'भवंति जंबू सहस्साई' इतना हजार जंबूवृक्ष होते हैं । अर्थात् अग्निकोणमें आठ हजार, दक्षिण दिशामें दस हजार नैऋत्य कोण में बारह हजार जंबूवृक्ष होते हैं-इससे न्यूनाधिक नहीं होते हैं ।। 'अणियाहिवाण' सात सेनापतिदेवों के 'प्रच्चत्थिमेण' पश्चिमदिशामें 'सत्तेव होंति जंबूओ' सात जंबूवृक्ष होते हैं। यह दूसरा परिक्षेप कहा२ ____ अब तीसरा परिक्षेप कहते हैं-'आयरक्खाणं' अत्मरक्षक देवों के सामानिकों से चोगुने होने से 'सोलहसाहस्सीओ' सोलह हजार 'चउद्दिसि' पूर्वादि चारों व माथायी पाप हवना ५ ४३ छ.-'दविखणपुरथिमे' मानेय भी 'दक्खिणेण' दक्षि शाम 'तह अवरदक्खिणेणं च' नेत्य शिामा २५॥ त्रणे हिशामा मश: 'अट्ठ दस बारसेव' 2408, ६स, २,-तेभानमा 8, क्षि शिम इस नेत्यआभा पार 'भवंति जंबूसहस्साई' सारखा २ भूया डाय छे. अर्थात् AA मां આઠ હજાર, દક્ષિણ દિશામાં દસ હજાર, નૈઋત્ય કેણમાં બાર હજાર જંબુ વૃક્ષ હોય છે. तनाथी माछापत्ता होता नथी. ॥१॥ 'अणियाहिवाण' सात सेनापति वोना पच्चत्थिमेण' पश्चिम दिशाम 'सत्तेव होंति जंबूओ' सात वृक्ष डाय छे. २मा मीन ५२२५ ह्यो. ॥२॥ वत्रीने परिक्ष५ वामां मावे छ.-'आयरक्खाणं' मात्मरक्ष हेवाना सामानिधी या२ मा पाथी ‘सोलहसाहस्सीओ' सो ०.२ 'चउद्दिसि' पूर्वाह या शामां ज० ३५ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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