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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २ पद्मदनिरूपणम् स्याई 'बाहल्लेणं' बाहल्येन पिण्डेन 'दस जोयणाई उच्चे हेणं' दश योजनानि उद वेधेन जलावगाहेन जलान्तर्गतत्वेनेत्यर्थः 'दो कोसे उसिए' द्वौ क्रोशौ उच्छूितम् उच्चत्वम् कुत उच्छितम् ? इत्याह-'जलंताओ' जलान्तात्-जलोपरिभागात् , एवं 'साइरेगाई' सातिरेकाणि साधिकानि 'दस जोयणाई दश योजनानि 'सव्वग्गेणं' सर्वाग्रेण सर्वप्रमाणेन 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तानि जलावगाहोपरितनभाग सत्कक्रोशद्वयरूपकमलमानमीलने एतावता एव सम्भवात् । ‘से णं' तत् पद्म खलु 'एगाए जगई ए' एकया जगत्या प्रकारकल्पया 'सव्वओ' सर्वतः सर्वदिक्षु 'समंता' समन्ता प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०२ पद्महृदनिरूपणम् च पद्मपरिवेष्टन भूता जगती किम्प्रमाणा ? इत्याह-"जंबुद्दीवजगइप्पमाणा' जम्बूद्वीपजगती प्रमाणा जम्बूद्वीपस्य या वेष्टनभृता जगती तत्प्रमाणा तत्परिमिता बोध्या, तथाहि-उर्ध्वमुच्चत्वेनाष्ट योजनानि मूले विष्कम्भेण द्वादश योजनानि, मध्ये विष्कम्भेणाष्टयोजनानि, उपरि विष्कम्भेण ताओ, साइरेगाई दस जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णते) इस पद्म की लम्बाई और चोडाई एक योजन की मोटाइ इसकी आधे योजन की एवं उद्वेध इसका दश योजन का कहा गया है यह जलान्त से दो कोश ऊपर उठा हुआ है इस तरह इसका कुल विस्तार १० योजन से कुछ अधिक कहा गया है (सेणं एगाए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते जबुद्दीव जगइप्पमाणा गवस्यकडए वि तह-चेव पमाणेति तस्स णं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णते, तं जहावइरामया मूला, रिट्ठामए कंदे, वेरुलियामए णाले, वेरुलियामया बाहिर पत्ता, जम्बूणयामया अम्भितरपत्ता, तवणिज्जमया केसरा, णाणामणिमया पोक्ख. रट्ठिभाया, कणगामई कण्णिगा) वह कमल प्राकार रूप एक जगती से सब ओर से घिरा हुआ है यह पद्मपरिवेष्टन रूप जगतो जम्बू द्वीप जगती के बराबर है-जैसे इसकी ऊंचाई आठयोजन की है मूल में इसका विष्कम्भ १२ योजनका है मध्यमें इसका विष्कम्भ आठ योजन का है तथा ऊपर में इसका विष्कम्भ सव्वग्गेणं पण्णत्ते' से पानी सामने ५.७15 से योनी सन 130243या જન જેટલી અને એને ઉકેલ દશ જન એટલે કહેવામાં આવેલ છે. એ જલાન્તથી બે ગાઉ ઉપર ઉઠેલું છે. આ પ્રમાણે આને કુળ વિસ્તાર ૧૦ જન કરતાં કંઈક અધિક मi me छे. 'से णं एगाए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते जंबुद्दीव जगइप. माणा गवक्खकडए वि तह चेव पमाणेति तस्स णं पउमस्स अयमेवारूवे वण्णावासे पण्णत्ते तं जहा वइरामया मूला, रिद्वामए कंदे, वेरुलियामए णाले वेरुलिया मया, बाहिरपत्ता जम्बूणया मया आभितरपत्ता तवणिज्जमया केसरा णाणामणिमया पोक्खरट्रिभाया, कणगामई कण्णिगा' ते भग ॥४१२ ३५ मे तीथी या भात्त छ. २ ५५५श्विन રૂપ જગતી જંબુદ્વીપ જગતીની બરાબર છે. જેમકે એની ઊંચાઈ આઠ યોજના જેટલી છે. મૂળમાં એને વિધ્વંભ બાર જન જેટલો છે. મધ્યમાં તેને વિષ્કભ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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