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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे नन्दापुष्करिण्य उक्ताः, तदनन्तरं सभायां षड्मनोगुलिकासहस्राणि षट् च गोमानसी सहस्राणि प्रोक्तानि तथैव जिनगृहविषयेऽपि सर्व वक्तव्यमिति भावः । अत्र च सुधर्मासभातो यो विशेषस्तमाह - 'णवरं ' इत्यादि - 'णवरं' नवरं केवलम् 'इमं' इदम् - एतत् 'णाणतं' नानात्वम् - अनेकत्वम्-भेद इति भावः, सुधर्मासभा पेक्षयेतिशेषः 'एएसिणं' एतेषां - जिनगृहाणां खल 'बहुमज्झ दे सभाए' बहुमध्य देशभागे - अत्यन्तमध्यदेशभागे 'पत्तेयं २' प्रत्येकर एकैकस्मिन् जिनगृहे 'मणिपेढियाओ' मणिपीठिका:- मणिमयासनविशेषाः प्रज्ञप्ताः, ताश्च मणिपीठिका: प्रमाणतः 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे योजने आयाम - विष्कम्भेण - दैर्घ्यविस्ताराभ्याम्, 'जोयण बाहल्लेणं' योजनं बाहल्येन - पिण्डेन, 'तासि' तासां - मणिपीठिकानाम् 'उपि' उपरि- ऊर्ध्वभागे 'पतेयं २' प्रत्येकंर 'देवच्छंद्गा' देवच्छन्द के - जिनदेवास ने 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ते, तन्मानमाह - 'दो जोयणाई आयामविक्खभेणं' द्वे योजने आयामविष्कम्भेण 'साइरेगाइ' सातिरेके - किञ्चिदधिके 'दो जोयणाई' द्वे योजने 'उद्धं उच्च तेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, देवच्छन्द 'सव्वरयणा मया' सर्वरत्नमये सर्वात्मना रत्नमये, 'जिणपडिमा ' जिनप्रतिमा जिनगृह में भी यह सब वर्णित करलेवें । २४२ यहां पर सुधर्मसभा से जो विशेष वक्तव्यता है वह कहा जाता है- 'णवरं इमं णाणतं' केवल यही यहां पर सुधर्मसभा से भिन्नता है 'एएसिणं' इन जिन गृहों के 'बहुमज्झदेस भाए' ठीक मध्यभाग मैं 'पत्तेयं पत्तेयं' एक एक गृह में 'मणिपेढियाओ' मणिमय आसन विशेष कहे हैं । उन मणिपीठिका का प्रमाण इस प्रकार कहा है- 'दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं' उनका विस्तार 'दो योजन का कहा है अर्थात् उनकी लंबाई चौडाइ दो योजन की कही है । 'जोयणं बाह लेणं' उनका बाल्य एक योजन का कहा है । 'तासि' उन मणिपीठिका के 'उप' ऊपर के भाग में 'पत्तेयं पत्तेय' प्रत्येक में 'देवच्छंद्गा' जिनदेव का आसन 'पण्णत्ता' कहा है 'दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं' वे आसन की लंबाई चोडाइ दो योजन की कही है । 'साइरेगाई' कुछ अधिक 'दो जोयणाई उद्धं उच्चએજ પ્રમાણે અહીં જીનગૃહમાં પણ એ તમામનુ વર્ણન કરી લેવું. महीयां सुधर्भसलाना वर्षाथी ने विशेष वक्तव्य छे, ते अहेवामां आवे छे.- 'नवरं इमं णाणतं' मडियां ठेवण सुधर्भसलाथी भेटसी ४ भिन्नता छे. 'एएसिणं' से न होनी 'बहुमज्झदेसभा ए' रोमर मध्य भागमा 'पत्ते पत्तेय' ४ : गृहमां 'मणि વેઢિયાળો' મણિમય આસન વિશેષ કહેલા છે. એ મણિપીઠિંકાનુ પ્રમાણ આ પ્રમાણે કહેલ छे. 'दो जोयणाई' आयाम विक्ख भेण तेना विस्तार मे योजना उस छे. अर्थात् तेनी सं मा चहोजाई मे योजननी उस छे. 'जोयणं बाहल्लेण' तेनु' माहदय मेयोनननुं आहेस छे. 'तासि' से मणिपीरिअना 'डोप्प' उपरना लागभां पत्तेयं पत्तेय' ६३४भां 'देव च्छंद्गा' न हेवना व्यासन 'पण्णत्ता' उस छे. 'दो जोयणाई आयामविक्ख भेणं' थे यासननी संध्या पहाणार्ध मे योजननी उडेल छे. 'साइरेगाई' ४६४ वधारे 'दो जोयणाई જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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