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________________ २२२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे तासां मणिपी ठिकानां मानाद्याह-'ताओ गं' इत्यादि-'ताओ णं' ता:-अनन्तरोक्ताः खलु 'मणिपेढियाओ' मणिपीठिकाः 'जोयणं' योजनम्-एकं योजनम् 'आयामविक्खंभेणं आयामविष्कम्भेण-दैर्घ्य विस्ताराभ्याम्, 'अद्धजोयणं' अर्द्धयोजनं 'बाहल्लेणं' बाहल्येन-पिण्डेन, ताः पुनः 'सव्यमणिमईया सर्वमणिमय्यः-सर्वात्मना-स्फटिकमरकतादि-मणिमय्यः, 'सोहासणा भाणियव्या' सिंहासनानि भणितव्याः, प्रज्ञप्ता इति पूर्वेण सम्बन्धः,, "तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ' तेषां खलु प्रेक्षागृहमण्डपानां पुरतो 'मणिपेढियाओ पण्णत्तामो' मणिपीठिकाः प्रज्ञप्ताः 'ताओ णं मणिपेढियाओ दो जोयणाई ताः खलु मणिपीठिकाः द्वे योजने 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण 'जोयणं बाहल्लेणं' योजनं बाहल्येन 'सव्वमणिमईओ' सर्वमणिमय्यः, अथ तन्मणिपीठिकोपरितनान् स्तूपान् वर्णयितुमाह'तासिणं' इत्यादि-तासि णं' तासां खलु मणिपीठिकानाम् 'उप्पि पत्तेयं२' उपरि प्रत्ये. कम्२-एकैकस्या मणिपीठिकायाः 'तो' त्रयः-त्रिसंख्यकाः 'थूभा' स्तूपाः स्मृतिस्तम्भाः ___ अब मणिपीठिका के मानादि को कहते हैं-'ताओणं मणिपेढियाओ' आगे कही गई मणिपीठिका 'जोयणं आयामविक्खंभेणं' एक योजनलंबि चौडी है अद्ध जोयणं बाहल्लेणं' आधा योजन मोटी है 'सव्वमणिमइया' सर्वात्मना स्फटिक, मरकत आदि मणिमय है 'सीहासणा भाणियव्वा' यहां सिंहासन कहेगए हैं। 'तेसिंणं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ' उन नाट्यशालाओं के आगे 'मणिपेदियाओ पण्णताओ' मणिपीठिका कही गई है । 'ताओणं मणिपेढियाओ' दो जोयणाई वे मणिपीठिकाएं दो योजन का 'आयाम विक्खंभेणं' आयाविष्कंभ वाली कही हैं 'जोयणं बाहल्लेणं' एक योजन इतनी मोटाई है । 'सव्व मणिमईओ' सर्वात्मना मणिमय है अब उन मणिपीठिका के ऊपर के स्तंभ का वर्णन करते हैं-'तासिं गं' उन मणिपीठिका के 'उप्पि' ऊपर 'पत्तेयं पत्तेयं प्रत्येक के 'तओ थूभा पण्णत्ता' तीन व भारापानी भानाहनु ४थन ७२ छ-'ताओणं मणिपेढियाओं से भरा पी8 'जोयणं आयामविक्खंभेणं' मे 2011 की सभी पाजी छे. 'अद्ध जोयण बाहल्लेण' मा योजना विस्तार पाणी छे. 'सव्वमणिमइया' सरीते २५८४, भ२त विगेरे मामय छे. 'सीहासणा भाणियव्वा' महिया सिडासनानु ४५न से 'तेसिंणं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ' मे नाटयजानी माग 'मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ' भाst a छ 'ताओणं मणिपेढियाओ दो जोयणाई' मे महिपा6ि12 में योन सी 'आयामविक्खंभेणं' मायाम १ि० पाणी छे. 'जोयणं बाहल्लेण' से यौन सी विस्तृत छे. 'सव्व मणिमइओ' सशते मणिमय छे. डवे ये भरिया 81 8५२॥ तमनु न ३२वामां आवे छे.-'तेसिणं' से मालपानी 'उप्पि' ५२ पत्तेय पत्तेय' प्रत्येऽन। 'तओ थूभा पण्णत्ता' ५१ सतलो જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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