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________________ २१२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे षड्रक्तिः, तत्सूचकपाठश्चैवम् -' तेणं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं तदद्धुच्चत्तप्पमागमितेहिं पासायवडेंस एहिं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता' एतच्छाया-पाठमात्रगम्या, व्याख्यातु - ते - प्रथमपक्तिगताश्चत्वारः खलु प्रासादावतंसकाः प्रत्येकम् अन्यैः - स्वभिन्नैः चतुर्भिः तदर्द्धाच्चत्व प्रमाणमात्रैः - मूलप्रासादोत्सेधविष्कम्भायामसम्पन्नैः - मूलप्रासादापेक्षया चतुर्भागप्रमाणैः प्रासादैः संपरिक्षिप्ताः, इति, अत एव चतुर्दिक्षु चत्वारश्वत्वार इति संकलनया सर्वे षोडश प्रासादाः, एषामुच्चत्वादिकं तु सूत्रकृत् साक्षादेवाह - ' तेणं पासाय वडेंसगा' ते खलु प्रासादावतंसकाः - 'साइरेगाई' सातिरेकाणि - अर्द्धक्रोशाधिकानि : ' अद्धसोलस जोयणाई' आर्द्धषोडशयोजनानि - सार्द्ध पञ्चदशयोजनानि 'उद्धं उच्चतेणं' ऊर्ध्वमुच्चवेन, 'साइरेगाइ' सातिरेकाणि - क्रोशचतुर्थीशाधिकानि ' अद्धट्टपाइ ' अर्द्धाष्टमानि - सार्द्ध सप्त 'जोयणाई' योजनानि ' आयामविक्खंभेणं' आयाम विष्कम्भेण इति २, अथ 'तइयपासाय पंती' तृतीयप्रासादपङ्क्ति ः- तत्सूचकपाठ एवम् -' ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं की और ऊंचा कहा है । 'साइरेगाई' कुछ अधिक 'अद्धसोलस जोयणाई' आयाम विकखंभेणं' साडे पंद्रह योजन उसकी लंबाई चोडाइ कही है । अब दूसरी प्रासादपंक्ति सूचक पाठ इस प्रकार है- 'तेणं पासायवडेंसया अण्णेहिं चउहिं तदद्धुच्चत्त पमाणमितेहिं पासाघवडेंसएहिं सञ्चओ समंता संपरिक्खित्ता' प्रथम पंक्ति में कहे गए चारों प्रासादावंतसक, दूसरे उससे अधि ऊंचाइवाले मूलप्रासाद से आधे उत्सेध आयामविष्कंभ वाले मूल प्रासाद की अपेक्षा चतुर्भाग प्रमाण वाले चार प्रासादों से परिवेष्टित कहे हैं, इस प्रकार चारों दिशाओं में चार-चार कहने से १६ सोलह प्रासाद हो जाते हैं । उनकी ऊंचाई आदि मान सूत्रकार स्वयं कहते हैं- 'तेणं पासायवडे सगा' वे प्रासादावतंसक 'सातिरेगाई' अर्ध कोस अधिक 'अद्धसोलस जोयणाई' साडे पन्द्रह योजन 'उद्धं उच्चतेणं' ऊंचा कहा हैं 'साइरेगाई' पाव कोस अधिक 'अद्धदुमाई जोयणाई आयामविक्खं मेणं' साडे सात योजनका इनका आयामविष्कंभकहा है। कोसं च उद्धं उच्चत्तेणं' थेोजन भने से! गाउ भेटला या ह्या छे. 'साइरेगाई' ४६४१धारे 'अद्धसोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं' साडा चंडर योजननी तेनी सजाई महोजाई छे. हवे जल आसाहपंडित संबंधी या उडे छे- 'ते णं पासायवडे सगा अण्णेहिं उहि तदधुच्चत्तपमाणमित्ते हि पासायवडे सहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' पहेली પ્રાસાદ પક્તિમાં કહેલ ચારે પ્રાસાદાવત...સક ખીજા તેનાથી અદ્ધિ ઉંચાઇવાળા મૂલ પ્રાસાદથી અર્ધો આયામ વિષ્ણુભ અને ઉત્સેધવાળા મૂલ પ્રાસાદના કરતાં ચતુર્થાંગ પ્રામાણવાળા ચાર પ્રાસાદોથી વીંટાયેલ છે. આ રીતે ચારે દિશાઓમાં ચાર ચાર કહેવાથી ૧૬ સેળ आसा हो या लय छे. तेनो उया वगेरे प्रभाणु सूत्रकार स्वयं तावे छे.- 'तेणं पासाय बडेंसगा' से प्रसाद्वाव तस 'सातिरेगाई' अर्धे गाउ अधि 'अद्धसोलस जोयणाई' साडीपहर योजन 'उद्धं उच्चत्तेण' या मुहे छे, 'साइरेगाई' या गाउ अधिक 'अद्धदुमाई જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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