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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २१ यमका राजधान्योर्वर्णनम् २०१ योजनसहस्राणि 'णव य' नव संख्यानि च 'अडयाले' अष्टचत्वारिंशानि-अष्टचत्वारिंशद. धिकानि 'जोयणसए' योजनशतानि 'किंचिविसेसाहिए' किञ्चिद्विशेषाधिकानि-किश्चिदधिकानि ‘परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण परिधिना प्रज्ञप्ते इति पूर्वेण सम्बन्धः, एवमग्रेऽपि, 'पत्तेयंर' प्रत्येकं२ द्वे अपि पायारपरिक्खित्ता' प्राकारपरिक्षिप्ते-वरणपरिवेष्टिते, तौ प्राकारौ कीदृशौ ? इत्यपेक्षायामाह-'ते णं' इत्यादि-'ते पं' तौ-यमकाराजधानी द्वयपरिवेष्टनभूतौ खलु 'पागारा' प्राकारौ-वरणौ 'सत्ततीसं' सप्तत्रिंशतं-सप्तत्रिंशत्संख्यकानि 'जोयणाई' योजनानि 'अद्धजोयणं च' अर्द्धयोजनं योजनस्यार्द्ध-द्वौ क्रोशौ च 'उद्धं उच्चत्तेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'मूले' मुले-मूलदेशावच्छेदेन 'अद्धतेरस' अर्द्धत्रयोदशानि-सार्द्धद्वादश 'जोयणाई विक्खंभेणं' योज नानि विष्कम्भेण-विस्तारेण, 'मझे मध्ये मध्यदेशावच्छेदेन 'छ सकोसाई' षट्-षट्संख्यानि सक्रोशानि-क्रोशेन सहितानि 'जोयणाई विक्खंभेणं' योजनानि विष्कम्भेणविस्तारेण, 'उरि' उपरि उपरितनभागावच्छेदेन 'तिण्णि' त्रीणि-त्रिसंख्यानि 'सअद्धकोआयाम विष्कम है। 'सत्ततीस जोयणसहस्साई, सेतीस हजार ‘णवयअडयाले' नवसहित अडतालीस 'जोयणसए किंचिविसेसाहिए' अर्थात् ३७९४८ सेंतीस हजार नव सो अडतालीस योजनसे कुछ अधिक 'परिक्खेखेणं' इसका परिक्षेप-घेराव है 'पत्तेयं प्रत्येक-दोनों 'पायार परिक्खित्ता' प्राकार से वेष्टित है। अब वह प्राकारका वर्णन करते हैं 'तेणं' इत्यादि 'तेणं' यमिका नामको दोनों राजधानी के वेष्टनभूत 'पागारा' प्राकार-महल 'सत्ततीसं जोयणाई' सेतीस योजन 'अद्धजोयणं च' एवं अधयोजन-दो कोश 'उद्धं उच्चत्तेणं' ऊपर की ओर ऊंचा है 'मूले अद्धतेरस जोयणाई विक्खंभेणं' मूलभागमें १२॥ साडे बारह योजनका इनका विष्कंभ है। अर्थात् इतना इसका मूलभागमें विस्तार है 'मज्झे छ सकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं' मध्यभागमें इसका विष्कंभ छह योजन एवं एक कोस का है। 'उपरि तिणि सअद्धकोसाइं जोयणाई विखंभेणं' मा पडा छे. 'सत्ततीसं जोयणसहस्साई' सानीस १२ ‘णवय अडयाले नक्सा Halala 'जोयणसए किंचि विसेसाहिए' योजनथी ४ धारे अर्थात् ३७८४८ साउनीस M२ नवस Adalस यानी 3 पधारे परिक्खेवेणं' तो परिक्ष५ धेशवा छे. 'पत्तेयं पत्तेय' हरे, अर्थात् भन्ने राजधानी 'पायारपरिक्खित्ता' प्रा२-भईसथा पीटायेस छे. હવે તે પ્રાકાર મહેલેનું વર્ણન કરવામાં આવે છે. 'तेणं' यमि नभनी म २४यानान वाटायर 'पागारा' भरत 'सत्ततीसं जोयणाई' सात्रीस योगान 'अद्ध जोयण च' भने सयौन-से 'उद्धं उच्चत्तण' ५२नी त२६ या छे. 'मूले अद्ध तेरस जोयणाई विक्खंभेणं' भूत लामो सास मा२ योजना तना (Ra . २मर्थात सरस 2२१ भू २९५२ (२२२ छे. 'मज्झे छसक्कोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं' मध्य मामा तनावि छ यो मन मे ने छे. 'उवरि तिष्णि सअद्धको ज० २६ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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