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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २० उत्तरकुरूस्वरूपनिरूपणम् १९३ बोध्या, एषां व्याख्याऽष्टमसूत्राबोध्या, 'भुंजमाणा' भुनानौ-अनुभवन्तौ 'विहरंति' विहरतः-तिष्ठतः, 'से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चई' तौ-यमकपर्वतो तेन-अन-तरोकतेन अर्थेन-कारणेन हे गौतम ! एवमुच्यते-'जमगपव्वयार' यमकपर्वतौ रक्षक अदुत्तरम्वणं' अदुत्तरम् अथ च खलु 'सासए णामधिज्जे' शाश्वतं नामधेयं 'जाव' यावत यावत्पदेन - 'प्रज्ञप्तम् , यत् न कदा चिनाऽऽस्ताम न कदाचिन्न भवतो न कदाचिन्न भविष्यतः अमूतां च भवतश्च भविष्यतश्च ध्रुवौ नियतौ शाश्वतौ अक्षतावव्ययौ अवस्थितौ नित्यौ तौ तेनर्थेन गौतम ! एवमुच्यते-' इत्येषां पदानां संग्रहो बोध्यः, व्याख्या चैषां चतुर्थसूत्रानुसारेणबोध्या, 'जमगपव्वया२' यमकपर्वतौर इति ॥ ० २०॥ तंत्री तल ताल त्रुटित घनमृदंग के पटुपुरुषों द्वारा प्रवादित शब्दों के श्रवण पूर्वक दिव्य भोगोपभोगको 'भुंजमाणा' भोगता हुवा 'विहरंति' निवास करते हैं 'से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चई' इस कारणसे हे गौतम! ऐसा कहा गया है कि 'जमगपचयाई' इसका नाम यमक पर्वत है। 'अदुत्तरं च णं' और यह नाम 'सासए णामधिज्जे' शाश्वत है 'जाव' ये कदाचित् इस नामवाले नहीं था ऐसा नहीं है। वर्तमानमें भी इस नामवाले नहीं है ऐसा नहीं है । भविष्यकाल में भी इस नामवाले नहीं होगा ऐसा नहीं है अर्थात् पहले भी इस नामवाले थे वर्तमान में भी इसी नाम वाले हैं एवं भविष्य में भी यही नाम होगा कारण कि ये ध्रुव, नियत एवं शाश्वत है। अक्षत, अव्यय, एवं एवस्थित है नित्य है इस कारण से हे गौतम ! इसका नाम ऐसा कहा गया है। 'जमगपव्वया' यावत्पदग्राह्य पदोंका अर्थ चोथे सूत्र में कहे अनुसार समज लेवें ॥स.२०॥ રાજધાનીમ વસનારા દેવ અને દેવિયેનું આધિપત્ય, પૌરપત્ય, સ્વામિત્વ, ભતૃત્વ મહત્તર કત્વ, આધર સેનાપત્યત્વ કરતે થકે તેઓનું પાલન કરતે થકો જોર જોરથી તાડન ४२॥ नाटय, गीत, त्रि, तत्री, तस, ale, त्रुटित, घनगन। यतु२ पु३षाये पास होना श्र१५ पु हिव्य मांगोपांगोन 'भुजमाणा' लगता थ'विहरंति' निपास ४२ छे ‘से तेणट्रेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ' से १२९था : गौतम ! मेम हवामा आवेस छे. है 'जमगपव्वया' 20 पतनु नाम यम ५ छ. 'अदुत्तरं च णं' भने । नाम ‘सासए णामधिज्जे' शाश्वत हे छ. 'जाव' यावत् तसा से नाम वामन हता તેમ નથી. અર્થાતુ પહેલાં પણ આજ નામવાળા હતા. વર્તમાનમાં પણ આ નામવાળા નથી તેમ નથી અને ભવિષ્યમાં પણ આ નામવાળા થશે નહીં તેમ નથી. અર્થાત્ પહેલા પણ આ નામ વાળા હતા, વર્તમાન માં પણ એજ નામવાળા છે, તથા ભવિષ્યમાં પણ એજ નામવાળા થશે. કારણ કે એઓ ધ્રુવ, નિયત અને શાશ્વત છે. અક્ષત અધ્યય અને અવस्थित छ, नित्य छ, ये ॥२९।थी है गौतम! नाम २ प्रभार हे छे. 'जमग पब्वया' है । पतनु नाम यम पत छ. यातू ५थी । ७२राये पहोनाम याथा सूत्रमा ह्या प्रभारी सम देव. ॥ सू. २० ॥ ज २५ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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