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________________ १७८ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे बुच्चइ गंधमायणे वक्खारपव्वएर' स एतेन अनन्तरोक्तेन अर्थेन कारणेन गौतम ! एवम् इत्थम् उच्यते-गन्धमादनो वक्षस्कारपर्वतः २ गन्धेन स्वयं माधतीव मदयति वा तदधिष्ठात. देवदेवीनां मनांसीति गन्धमादनः अत्र बहुलकाद्दीधः स वक्षस्कारश्चासौ पर्वतश्चेति वक्षस्कारपर्वतः २ गन्धमादनेत्यन्वर्थनामसद्भावे हेत्वन्तरमपि न्यस्यति 'गंधमायणे य इत्थ देवे महिड्डीए परिवसई' 'गन्धमादनश्चात्र देव' इत्यादि-गन्धमादनः तन्नामा देवः तदधिष्टातासुरः परिवसति स च कीदृशः ? इत्याह-महर्दिकः-महती विपुला ऋद्धिः भवनपरिवारादि लक्षणा यस्य स तथा, अस्योपलक्षणतया 'महाद्युतिः, महाबलः, महायशाः, महासौख्यः, महानुभावः, पल्योपमस्थितिका' इत्येषां संग्राहकता बोध्या, महर्द्धिकादि पल्योपमस्थितिकान्तपदानां व्याख्याऽष्टमसूत्राद् बोध्याः, 'अदुत्तरं च णं सासए णामधिज्जे' इति, अदुत्तहुआ है । इन गन्ध के विशेषण भूत पदों की व्याख्या राजप्रश्नीय सूत्र के १९ वें सूत्र की व्याख्या से जानलेनी चाहिये (से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ गंधमायणे वक्खारपव्वए २) इस कारण हे गौतम ! मैने इस पर्वत का नाम गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत ऐसा कहा है दूसरी बात इस पर्वत के इस प्रकार के नाम होने में ऐसी है (गंधमायणे अ इत्थ देवे महिद्धिए परिवसई) यहां पर विपुलभवन परिवार आदिरूप ऋद्धि से युक्त होने के कारण महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला गन्धमादन नामका एक व्यन्तर देव रहता है अतः उसके सम्ब. न्ध से इसका नाम 'गन्धमादन' ऐसा हो गया है। यहां यावत्पद से 'महाद्युतिः, महाबलः, महायशा, महासौख्यः, महानुभावः पत्योपमस्थितिकः' इन विशेषणभूत पदों का संग्रह हुआ है । इनकी व्याख्या आठवें सूत्र से ज्ञातव्य है । (अदु. शनीय सूत्रन' न! १५ मा सूत्रनी व्यायामाथी antel देवी जमे. 'से एएणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ गंधमायणे वक्खारपव्वए २' मेथी ३ गौतम ! मे मा ५तनु नाम अन्यमान पक्ष२४।२ ५ मे छ 'गन्धेन स्वयं माद्यति मादयति। तदधिष्ठातृदेव देवीनां मनांसि इति गन्धमादनः' तनी व्युत्पत्तिथी से नाम गुए निष्पन्न नाम छे. 'बाहुलकात्' सूत्रथी 'मादन' मा प्रमाणे ही २ 'गन्धमादन' व ७४ भन्या छे. मा पतन नाम विशे मी से बात मेवी छ 'गंधमायणे अ इत्थ देवे महिद्धिए परिवसई' मी विya लवन परियार २६ ३५ द्धिथी युत आपा महल મહદ્ધિક વગેરે વિશેષણવાળે ગંધમાદન નામક એક વ્યંતર દેવ રહે છે. એથી એના સંબંધથી એનું નામ “ગન્ધમાદન” એવું પ્રસિદ્ધ થઈ ગયું છે. અહીં યાવત્ પદથી 'महाद्युतिः, महाबलः, महायशा, महासौख्यः महानुभावः पल्योपमस्थितिकः' में विशेष ભૂત પદેને સંગ્રહ થયા છે. એ પદેની વ્યાખ્યા આઠમા સૂત્રમાંથી જાણી શકાય તેમ (१) गन्धेन स्वयं माद्यति मादयतिवा तदधिष्ठातृदेव देवीनां मनांसि इति गन्धमादन: इस प्रकार की व्युत्पत्ति से यह नाम गुणनिष्पन्न है 'बाहुलकात्' सूत्र से मादन' ऐसा दीर्घ होकर गन्धमादन शब्द बना है। જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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