SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे कइकूडा पण्णता ? गोयमा ! णवकूडा पण्णत्ता' वर्षधरपर्वते कति कूटानि प्रज्ञप्तानि ? भगवा. नाह-हे गौतम! नव कूटानि प्रज्ञप्तानि, 'तं जहा-सिद्धाययणकूडे ?, णिसढकूडे २ हरिवासकूडे ३ पुवविदेहकूडे ४ हरिकूडे ५ धिईकूडे ६ सीओयाकूडे ७ अवरविदेह कूडे ८ रुयगकूडे ९ जो चेव चुल्लहिमवंतकूडाणं उच्चत्तविक्खंभपरिक्खेवो पुत्ववण्णिो रायहाणी य सच्चेव इहंपि णेयध्वा' नवरम् सिद्धायतनकूटम् १ निषधक्टम्-निषधवर्षधरपर्वताधिपवासकूटम् २, हरिवर्षक्टम्-हरिवर्षक्षेत्राधिपकूटम् ३ पूर्वविदेहकूट-पूर्वविदेहाधिपक्टम् ४, हरिकूटं-हरि सलिलानदी देवीकूटम् ५, धृतिकूटम्-धृतिः तिगिठिछहृदाधिष्ठात्रीदेवी तस्याः कूटम् ६, शीतोदाकूट-शीतोदानदी देवीकूटम् ७, अपरविदेहकूटम्-अपरविदेहाधिपकूटम् ८, रुचक्कूट-रुचकः चक्रवालपर्वतविशेषस्तत्पतिकूटम् ९, अत्र वक्तव्येऽतिदेशसूत्रमाह-'जो के वर्षधर पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं ? उतर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! णव कूडा पण्ण ता) हे गौतम ! नौ कूट कहे गये है-(तं जहा) उनके नाम इस प्रकार से है (सिद्धाययणकूडे, णिसहकूडे, हरिवासकूडे, पुच्वविदेहकूडे, हरिकूडे, घिई. कूडे, सीओआकूडे, अवरविदेहकूडे, रुअगकूडे,) सिद्धायतनकूट निषधकूट, हरि. वर्षकूट, पूर्वविदेहकूद, हरिकूट, धृतिकूट, सीतोदाकूट, अपरविदेहकूट, और रुच. ककूट इनमें । जो सिद्धों का गृह रूपकट है वह सिद्धायतनकूट है निषध वर्षधर पर्वत के अधिपतिका जो कट है वह निषध कट है। हरिवर्षक्षेत्र के अधिपति का जो कूट है वह हरिवर्षकूर है। पूर्व विदेह के अधिपति का जो कूट है वह पूर्व विदेहकूट है हरिसलिला नदी की देवी का जो कूट है वह हरिकूट है तिगिछिहूद की अधिष्ठात्री देवी का जो कूट है वह धृतिकूट है शीतोदा नदी की देवी का जो कूट है वह शीतोदाकूट है। अपरविदेहाधिपति का जो कूट है, वह अपर विदेहकूट है। चक्रवालपर्वत विशेषके अधिपति का जो कूट है वह रुचक कूट है। निषध नाम १५२ त ५२ टमाटी छ ? नाममा प्रभु हे-'गोयमा ! णव कूडा पण्णता' हे गौतम ! नव ट। हवाय छे. 'तं जहा' ते टीना नामी २॥ प्रमाणे छ 'सिद्धाययणकूडे, णिसहकूडे, हरिवासकूडे, पुव्वविदेहकूडे, हरिकूडे, धिईकूडे, सीआ आ कूडे, अवरविदेहकडे, रूअगकूडे' सिद्धायतन छूट, निषध छूट, विष ट, पूर्व વિદેહ કૂટ, હરિ કૂટ ધતિ કૂટ, સીતેદા કૂટ, અપર વિદેહ ફૂટ અને રુચક કૂટ એમાં જે સિદ્ધોને ગૃહ રૂપ કૂટ છે, તે સિદ્ધાયતન ફૂટ છે. નિષધ વર્ષધર પર્વતના અધિપતિને જે કુટ છે તે હરિવર્ષ ફૂટ છે. પૂર્વ વિદેડના અધિપતિને જે ફૂટ છે તે પૂર્વવિદે કુટ છે. હરિ–સલિલા નદીની દેવીને જે ફૂટ છે તે હરિકૂટ છે. તિબિંછ હૃદની અધિષ્ઠાત્રી દેવીને જે કૂટ છે તે ધતિ કૂટ છે શીતેદા નદીની દેવીને જે કૂટ છે તે સીતેદા કૂટ છે અપર વિદેહાધિપતિને જે કૂટ છે તે અપરવિદેહ ફૂટ છે. ચકવાલ પર્વત વિશેષના અધિપતિને જે ८ छ ते रुय५ डूट छे. 'जो चेव क्षुल्लहिमवंतकूडाणं उच्चत्त विक्खंभपरिक्खेवो पुष्प જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy