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________________ प्रकाशिका टीका सू० १३ वैतढयपर्वतस्य पूर्वपश्चिमे गुफाद्वयवर्णनम् विस्तारयुक्ते प्रज्ञप्ते । पुनस्ते उभे 'दस दस जोयणाई विक्खंभेणं' दश दश योजनानि विष्कम्भेण-विस्तारेण, पुनः 'पव्वयसमियाओ' पर्वतसमिके -पर्वतसमाने 'आयामेणं' आयामेन-दीर्घत्वेन ज्ञातव्ये तथा ते विद्याधरश्रेण्यौ 'उभो पासिं' उभयोः द्वयोः पार्श्वयोः दक्षिणत उत्तरतश्च ‘दोहिं पउमवरवेइयाहिं' द्वाभ्यां पनवर वेदिकाभ्यां 'दोहिं वणसंडे हिं' द्वाभ्यां च वनषण्डाभ्यां 'संपरिक्खित्ताओ' संपरिक्षिप्ते परिवेष्टिते । एवञ्च एकैकस्यां विद्याधरश्रेण्याँ द्वे पद्मवरवेदिके द्वौ च वनषण्डौ इति द्वयोभ्यां संयोजनया चतस्रः पावरबेदिकाः चत्वारो वनषण्डाश्च-सम्पद्यन्त इति बोध्यम् । 'ताओ णं पउमवरवेइयाओ' ताः चतस्रः पद्मवरवेदिकाः खलु 'अद्धजोयणं'-अर्धयोजन-योजनार्द्धम् 'उडूढं' ऊर्ध्वम्उपरि 'उच्चत्तणं' उच्चत्वेन 'पंचधणुसयाई' पञ्चधनुश्शतानि-पञ्चशतसंख्यानि धनूंषि 'विक्खम्भेणं' विष्कम्भेण-विस्तारेण 'पब्बयसमियाओ' पर्वतसमिकाः-पर्वतसमानाः 'आयामेणं' आयामेन-दैव्येण, 'वण्णओ' वर्णकः-अस्या वर्णनपरकवाक्यसमूहो 'णेयब्वो' नेतन्यः-पूर्वणद् बोध्यः । स चास्यैव चतुर्थसूत्रे टीकायां द्रष्टव्य इति । तथा समूहो दक्षिण तक विस्तृत हैं “ दस दस जोयणाई विक्सांभेणं पव्वयसमियाओ आयामेणं " इनका प्रत्येक का विस्तार दश दश योजन का और लम्बाई इनकी पर्वत को लम्बाई के बराबर है "उभओपासिं दोहिं पउमवरवेईयाहिं दोहिं वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ" ये दोनों विद्याधरश्रेणियां अपने दोनों पार्श्वभागोंमें दक्षिणसे और उत्तर से दो दो पद्मवरवेदिकाओं से एवं दो दो वनपंडों से परिवेष्टित हैं इस तरह से ये ४ पद्मवर वेदिकाओं से और ४ वनपंडोसे परिवेष्टित हैं ऐसा जानना चाहिए ये ४ पद्मवरवेदिकायें "अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तणं पंच धणुसयाई विक्खंभेणं पव्वयसमियाओ आयामेणं वण्णओ यच्चो" आधे आधे योजन की ऊंचाईवाली है। और पांच सौ पांचसौ धनुष की विस्तार वाली है तथा इनकी प्रत्येक की लम्बाई पर्वत की लम्बाई के बराबर ही है । इनके वर्णन में पूर्व जैसा वर्णन ही जानना चाहिये, यह वर्णन इसी के चतुर्थसूत्र में किया जा चुका है । पद्मवरवेटिका की लम्बाई के बराबर ही लम्बाई वनषण्डों पश्चिम सुधा लामा छ भने उत्तथा क्षिा सुधा विस्तृत छ. "दसदस जोयणाई विक्ख. मेणं पव्वयसमियाओ आयामेण" समांथा १२४ने विस्तार ४२० ६श योगनरसो छ भने ६२.5ना माई पतनी माटी छ. “उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहिं वणसंडेहिं संपरिविवत्ताओ" अस मन्ने विधायक श्री पोताना भन्ने पाव भागमा દક્ષિણથી અને ઉત્તરથી બળે પદ્મવદિકા એથી અને વનણંડેથી પરિવેષ્ઠિત છે, એ ५१२ मे "अद्ध जोयण उड्ढे उच्चत्तेण पंचधणुसयाई विक्खमेण पन्वय समियाओ आयामेण वण्णो णेयन्वो" अर्धा म यौन सी अया पाणी छे. अने પાંચસો પાંચસો ધનુષની જેટલી વિસ્તાર વાળી છે. તથા આમાંથી દરેકની લંબાઈ પર્વતની લંબાઈ જેટલી છે. એમનું વર્ણન પહેલા જેવું જ સમજવું જોઈએ આ વર્ણન આ ગ્રંથના ચતુર્થ સૂત્રમાં કરવામાં આવેલ છે. પવવરવેદિકાની લંબાઈ જેટલી લંબાઈ વનષડેની પણ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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