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________________ _ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 'जय जय णंदा' इत्यादि 'जय जय गंदा' हे नन्द हे आनन्द स्वरूप ! भरत ! 'जय जय भद्दा' हे भद्र ! कल्याणकर चक्रवर्तिन् जय जय अर्जितशत्रून विजयस्व विजयस्व 'जय जय भदा !' हे भद्र.! कल्याणस्वरूप ! जय जय 'भदंते' ते तुभ्यं भद्रं कल्याणं भूयात् 'अनियं जिणाहि' अजितम् अपराजितं प्रतिशत्रु जय विजयस्व 'जियं पालयाहि' जितम् आज्ञावशंवदं पालय रक्ष 'नियमझे वसाहि' जितमध्ये आज्ञावशंवदमध्ये वस-तिष्ठ जितपरिजनैः परिवृतो भव इत्यर्थः 'इंदोविव देवाणं' इन्द्र इव देवानां वैमानिकानां मध्ये सर्वत ऐश्वर्यवान् इत्यर्थः 'चंदोविव ताराणं' चन्द्र इव ताराणां नक्षत्राणां मध्ये चन्द्रमा इव 'चमरो विव असुराणं' चमर इव असुराणां दाक्षिणात्यानामसुराणां मध्ये चमर नामकासुरेन्द्र इव 'धरणो विव नागाणं' धरण इव नागानाम्-नागानां मध्ये धरणनामक नागकुमार इव 'बहूई पुव्वसयसहस्साई' बहूनि पूर्वशतसहस्त्राणि बहूनि पूर्वलक्षाणि 'बहूईओ पुषकोडीओ' बहीः पूर्व कोटीः 'बहूईओ कोडाकोडीओ' वहीः पूर्व कोटाकोटीः 'विणीयाए रायहाणीए' विनीतायाः राजधान्याः प्रजाः पालयन् 'चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य' क्षुल्लहिमवगिरिसागरमर्यादाकस्य च क्षुल्लहिमवगिरिः उत्तरस्यां दिशि क्षुद्रहिमवत्पर्वतः अपरत्र च दिशात्रये त्रयः सागराः तैः कृताया स्तुति करते हुए ऐसा कहा-है नन्द ! आनन्द स्वरूप भरत चक्रवर्तिन् ! तुम्हारा जय हो तुम अजित शत्रुओं पर विजय पाओ हे भद्र-कल्याणस्वरूप भरत ! तुम्हारी बारंवार जय हो (भदंते) तुम्हारा कल्याण हो (अजियं जिणाहि) जिसे दूसरा वीर परास्त नहीं कर सके ऐसे शत्रु को तुम परास्त करो, (जियं पालयाहि) जो तुम्हारी आज्ञा माननेवाले हैं उनकी तुम रक्षा करो (जियमउझे वसाहि) जित व्यक्तियों के बीच में आप रहो-अर्थात् परिजनो से आप सदा परिवृत्त बनेरहो (इंदोविव देवाणं) वैमानिक देवों के बीच में इन्द्र की तरह (चंदोविव ताराण) ताराओं के बीच में चन्द्र की तरह (चमरोविव असुराण) असुरों के बीच में असुरेन्द्र असुरराज चमर को तरह (धरणोविव नागाण) नागकुमारों के बीच में धरण नामक नागकुमार की तरह तुम (बहूई पुवसयसहस्साई) अनेक लाख पूर्वतक (बहूइओ कोडाकोडीओ) अनेक कोटाकोटी पूर्वतक (विणीयाए रायहाणीए) विनीता राजधानी की प्रजा का पालन करते हुए (चुल्लहिસ્વરૂપ ભરત ચક્રવતી ! તમારે ય થાઓ, તમે અજીત શત્રુઓ ઉપર વિજય મેળવે. હે मद्र, अध्याय १५३५ मत ! तमाशे पार वारय था। (भदंते) तभार या थाया. (अजियं जिणाहि) २२ मानन वीर रावी शनमा शत्रु २ त ५२।२१. (जियं पालयाहि) वो तभारी माज्ञानु पासन रेछ तभनी तमे २क्षा ४३. (जियमझे वसाहि)२ વ્યક્તિઓને આપે જીતી લીધેલ છે તેમની વચ્ચે તમે રહે એટલેકે પરિજનાથી તમે સર્વદા પરિવૃત્ત २३1. (इंदोविव देवाण) वैमानि वाम तमे ऽन्द्रनी गेम (चंदोविव ताराण) तारामानी ५२ये यन्द्रन नभ, (चमरोविव असुराण) मसुरेनी पश्ये असुरेन्द्र मसु२२॥११ यभरनी २म(धरणो विव नागाणं) नागभारे। नी पश्ये ५२६५ नाम नागभारनी रम (बहूई पुव्धसयसह. स्लाई) मने साम पूर्ण सुधा (बहूईओ कोडाकोडीओ) अनटीटी पूर्व सुधी (विणीयाए જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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