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________________ ८९८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे णं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणी मझमज्झेणं अणुप्पविसमाणस्स सिंघाडग जाव महापहेसु' ततः खलु तदनन्तरं किल तस्य भरतस्य राज्ञः विनीतां तन्नाम्नी राजधानी मध्यं मध्येन मध्यभागेन अनुप्रविशतः शृङ्गाटक यावन्महापथेषु महापथपर्यन्तेषु स्थानेषु अत्र यावत्पदात् त्रिकचतुष्कादि परिग्रहः बहवे अत्थत्थिया' बहवः अर्थाथिकाः अर्थार्थिनः द्रव्यार्थिनः 'कामत्थिया' कामार्थिनः मनोहरशब्दरूपार्थिनः भेगस्थिया' भेगार्थिकाः मनोज्ञ गन्धरसस्पर्शार्थिनः लाभत्थिया'लाभार्थिकाः भोजनमात्रादि प्राप्त्यर्थिनः इद्धिसिया'ऋध्येषिकाः ऋद्धिं गवादि संपदम् इच्छन्ति एषयन्ति वा ऋद्धयेषाः तएव ऋध्येषिका:स्वार्थे इक प्रत्ययविधानात् 'किब्बिसिया' किल्बिषिका:परविद्रोहकत्वेन भांडचेष्टाकारिणो भाण्डादयः 'कारोडिया'कारोटिकाः ताम्बूलसमुद्गवाहकाः 'कारवाहिया' कारवाहिकाःकरं राजदेयं द्रव्यं वहन्त्येवं शीलाःकारवाहिन इत्यर्थः संखिया' शांखिकाः शंखग्राहिणः शंखवादका इत्यर्थः 'च. क्किया' चाक्रिकाः चक्रग्राहिणो भिक्षुका ‘णंगलिया' लाङ्गलिकाः हलावलम्बन काष्ठसदृशास्त्रधारिण सुभटाः 'मुहमंगलिया, मुखमाङ्गलिकाः चारणादयः 'पूसमाणया' पुष्यमानकाःशाकी तथा और भी आभरणों की-आभूषणों की-वर्षा की (तए ण तस्स भरहस्त रणो विणीयं रायहाणि मज्झं मझेणं अणुप्पविसमाणस्स सिंघाडग जाव महापहेसु) जब वह श्री भरत महाराजा ने विनीता राजधानी में मध्य के मार्ग से प्रवेश किया -तब वहां के त्रिक चतुष्क आदि महापथ के मार्गों में (बहवे अस्थत्थिया भोगस्थिया कामत्थिया लाभत्थिया इद्धिसिया किब्बिसिया कारोडिया) अनेक अर्थाभिलाषी जनों ने, अनेक भोगाभिलाषी जनों ने, अनेक कामाभिलाषी जनों ने, अनेक लाभार्थी जनों ने, अनेक गवादिसंपत्ति की अभिलाषावालेजनों ने अनेक किल्बिषिक-भाण्ड आदि-जनों ने, अनेक कारोटिका-ताम्बूल समुद्गवाह कजनों ने (कारबाहिया) अनेक कारवाहिक राजदेय द्रव्यको बकाया रखनेवाले-जनों ने, अनेक (संखिया) शाङ्खिक-शङ्खबजाने वाले जनों ने, अनेक (चक्किया) चाक्रिक-भिक्षुक जनो ने, अनेक (गंगलिया) लाङ्गलिक-हलके अवलम्बन भूत काष्ठ के जैसे अस्त्रधारी सुभटों ने (मुहमंगलिया) पास डोशनी, तथा अन्य पशु मामरणानी-मासूपणानी वर्षा ४३N. (तरण तस्स भरहस्स रणो विणीयं रायहाणि मज्झ मज्झेण अणुप्पविसमाणस्स सिंघाडग जाव महापहेसु) જ્યારે ભરત રાજાએ વિનીતા રાધાનીના મધ્યમાર્ગમાં પ્રવેશ કર્યો ત્યારે ત્યાંના ત્રિક, यतु बगेरे भा५थना भागो भा (बहवे अत्थत्थिया भोगत्थिया कामस्थिया लाभत्थिया, इद्धिसिया किब्बिसिया कारोडिया) मने मामिलाषा नामे, अनेsaluमिलाषी જેનેએ અનેક કામાથી જનેએ, અનેક લાભાથી જાએ, અનેક ગવાદિની સંપત્તિ મેળવવાનિ અભિલાષા રાખનારા જનેએ, અનેક કિતિબષિક-ભાંડઆદિ જનેએ, અનેક કારેટિક तमू समुशवाइ मनाये (कारवाहिया) भने २वाडि-२४३य द्रव्य माध्यु नथीमेया मनामे, भने (सखिया) शमि श५ पाना बनाय, मन (चक्किया) या भिक्षु नामे, अने. (ण गलिया) से अपना मत भूत 18ना या मरधा२३ ४२ना। सुमटाये, (मुहमंगलिया) मने भुममा या२९॥ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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