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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे विशेषा येषां ते तथा' तथा 'बहुआउ पज्जवा' बहायुः पर्यवाः वहवः अनेकविधाः आयुः पर्यवाः आयुषो जीवितस्य पर्यवाः पूर्वकोटि वर्षशतादिका विशेषा येषां ते तथा 'बहुइं वासाई' बहूनि वर्षाणि' संवत्सरान् 'आउं' आयुः जीवितं 'पालेति' पालयन्ति धारयन्ति 'पालित्ता' पालयित्वा 'अप्पेगइया' अप्येकके अप्येके केचित् मनुजाः 'निरयगामी' निरयगामिनः नरकगतिगामिनः 'अप्पेगइया' अप्येकके केचित् 'तिरियगामी' तिर्यग्गामिनः तिर्यग्गतिगामिनः 'अप्येगइया' अप्येकके केचित् 'मणुयगामी' मनुजगामिनः मनुष्यगतिगामिनः 'अप्पेगईया' अप्येकके केचित् 'देवगामी' देवगामिनः देवगतिगामिनः 'अप्पेगइया' अप्येकके केचित् मनुजाः 'सिझंति' सिध्यन्ति सकलकार्यकारि तया सिद्धा भवन्ति 'बुज्झंति' बुध्यन्ते विमलकेवलालोकेन सकललोकालोकं जानन्ति 'मुच्चंति' मुच्यन्ते सर्वकर्मम्यो मुक्ता भवन्ति, 'परिणिव्वायंति' परिनिर्वान्ति समस्तकमकृतविकाररहितत्वेन स्वस्था 'भवन्ति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति' सर्वदुःखानाम् शारीरिक हैं "वहु आउ पज्जवा" अनेक प्रकार की आयुवाले पूर्वकोटि रूप एवं सौ वर्ष आदि रूप आयु वाले होते हैं "बहुइं वासाइं आउं पालेंति, पालित्ता अप्पेगइया निरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अष्पेगइया, मणुयग़ामी, अष्पेगइया देबगामी” अनेक वर्षों की आयु के वे भोक्ता होते हैं इस तरह से आयु-जीवनकाल को भोग करके-समाप्त करके इनमें से कितनेक ऐसे होते हैं जो मर कर तिर्यञ्चगति में जाते हैं कितनेक ऐसे होते हैं जो मरकर मनुष्यगति में जाते हैं, और कितनेक ऐसे है जो मरकर देवगति में जाते हैं तथा "अप्पेगइया सिज्झति, बुज्झति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति सच दुक्खाण मंतं करें ति" कितनेक ऐसे भी होते हैं जो सिद्ध अवस्था को प्राप्त करते हैं अर्थात् कृतकृत्य हो जाते है बुद्ध अवस्था को प्राप्त करते हैं-विमल केवल ज्ञान रूप आलोक से समस्त लोक सहित अलोक के ज्ञाता हो जाते हैं- मुक्त हो जाते हैं-सकलकों से छुट जाते हैं-रहित हो जाते हैं । सकलकर्म कृत विकारों से रहित हो जाने के कारण वे परिनिर्वात हो વગેરે સંસ્થાનવાળા હોય છે, અનેક પ્રકારની ૫૦૦ ધનુષ આદિ રૂપ શારીરિક ઊંચાઇવાળા हाय छे. "बहु आउपज्जवा” भने ४२नी मयुवा डाय छे. बहूई ‘बालाई आउं पानि पालित्ता अप्पेगइगया निरयगामी अप्पेगईया तिरियगामी अप्पेगइया मणुयगामी अप्पेगडया देवगामी" भने वर्षानी मायुना ते साडेय छे २॥ रीते मायु-वन- ५ ભંગ કરીને એમનામાં કેટલાંક એવાં હોય છે કે જેઓ મૃત્યુ પ્રાપ્ત કરીને નરકમાં જાય છે કેટલાક એવાં હોય છે કે જેઓ મૃત્યુ પ્રાપ્ત કરીને તિર્યંચ ગતિમાં જાય છે, કેટલાંક એવાં હોય છે કે જેઓ મૃત્યુ પ્રાપ્ત કરીને મનુષ્ય ગતિમાં જાય છે અને કેટલાંક એવા હોય છે કે कसी भी वशति पाछे तथा अप्पेगइया सिज्झति बुज्झति, मुञ्चति, परिणिव्वायंति सव्वदक्खाणमंत केरेंति" Teais अवां पर डाय छ । सिद्ध अवस्थाने पार એટલે કે કુત કૃત્ય થઈ જાય છે. બુદ્ધ અવસ્થા પામે છે-વિમળ કેવળ જ્ઞાનરૂપ આલોકથી સમસ્ત લેક સહિત અલેકના જ્ઞાતા થઈ જાય છે. મુક્ત થઈ જાય છે. સકલ કર્મોથી મુક્ત થઈ જાય છે–રહિત થઈ જાય છે. સકલ કર્મકૃત વિકારથી રહિત થઈ જાય છે. તેથી તેઓ પરિ. જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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