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________________ प्रकाशिका टीका तृ० ३ वक्षस्कारः सू० १४ तमिस्रागुहाद्वारोद्धाटननिरूपणम् ६८९ जाव णिग्घोसणाइएणं जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेइ करिता लोमहत्थेणं पमज्जइ पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेण पंचंगुलितले चच्चए दलइ दलित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिय मल्लेहिय अच्चिणित्ता पुप्फारुहणं जाव वत्थारुहणं करेइ करित्ता आसत्तोसत्त विपुल वट्ट जाव करेइ करित्ता अच्छे हिं सण्हेहिं श्यणामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं तिमिस्स गुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडं पुरओअट्ठमंगलए आलिहइ तं जहा सोत्थिय सिविच्छ जाव कयग्गहगहिअ करयलपब्मट्ठ चंदप्पभवइश्वेरुलिअ विमिल दंडं जाव धूवं दलयइ दलयित्ता वाम जाणुं अंचेइ अंचित्ता करयल जाव मत्थए अंजलि कटु कवाडाणं पणामं करेइ करित्ता दंडरयणं परामुसइ तएणं तं दंडरयणं पंच लइअं वइरसारमइअं विणासण सव्वसत्तुसेण्णाणं खधावारे णरवइस्स गड्ढदरिविसमपब्भारगिरिवरपवायाणं समीकरणं संतिकरं हितकरं रणोहियइच्छिअमणोरहपूरंगं दिव्व मप्पडिहयं दंडरयणं गहाय सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कइ पच्चासक्कित्ता तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेण महया महया सदेणं तिक्खुत्तो आउडेइ तएणं तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणे सेणावइणा दंडरयणेणं महया महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडिआ समाणा महया महया सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था तएण से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेइ विहाडित्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जाव भरहं रायं करयलपरिग्गहियं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावित्ता एवं वयासी विहाडिआणं देवाणुप्पिया तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवार स्स कवाडा एयण्णं देवाणुप्पियाण पियं णिवेएमो पियं मे भवउ तएणं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म जएणं वद्धावे सकवाडा एयर देवाणुप्पिया જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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