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________________ ५८ And जम्बूद्वोपप्रक्षप्तिसूत्रे 'पव्ययबहुले' पर्वतबहुलम् अनेकपर्वतव्याप्तम् ‘पवाय बहुले' प्रपातवहुलम् प्रपपाता भृगवः पर्वततः पतनस्थानविशेषाः, यत्र मुमूर्षवो जनाः प्राणान् परित्यक्तुं निपतन्ति, तैर्ब हुलम् , 'उज्झरबहुले, अवझर बहुलम् पर्वततटतो जलाधःपतनव्याप्तम् , 'णिज्झर बहुले' निर्झर बहुलम् पर्वततटात् सदातनजलक्षरणव्याप्तम् , 'खड्डाबहुले' गर्तबहुलम् खड्डा इति प्रसिद्धाः तैर्बहुलम् , 'दरिबहुले' दरीबहुलम् गुहाबहुलम् ‘णईवहुले' नदी बहुलम् , 'दहबहुले' हृदबहुलम् , 'रुक्खबहुले' वृक्षबहुलम् , 'गुच्छबहुले' गुच्छबहुलम् गुच्छा:-स्तबकाः, तैर्बहुलम् , 'गुम्मबहुले' गुल्मबहुलं गुल्माः नवमालिकादयस्तैर्बयहां ऐसे हैं कि जहां पर प्रवेश पाना अशक्य है-या कष्ट साध्य है. यहां पर्वतों की अधिकता है तथा उन पर्वतों पर ऐसे ही विशेष स्थान है कि जहां से गिरने पर मनुष्य का शरीर चूर २ हो जाता है. यहां अवझर बहुत हैं-जिन पर्वतीय स्थानों से नोचे जल गिरता है उन स्थानों का नाम अवझर है जैसे जबलपुर का-मेडाघाट आदि; यहां निर्झर बहुत हैं -पर्वत के जिन स्थानों से सदा जल झरता रहता है-ऐसे स्थानो का नाम निर्झर है-ऐसे स्थान इस भरतक्षेत्र में अधिकांश हैं । इसी प्रकार यह भरतक्षेत्र “खड्डा बहुले" जगह २ जिस में प्रायः गड्ढे हैं ऐसे स्थानों वाला है-अर्थात् जगह २ गट्ठों वाला हैं "दरि बहुले” पहाडों पर जिसके जगह २ प्रायः गुफाएँ है ऐसे स्थानों वाला है-अर्थात् गुफाओं की अधिकता वाला हैं " णई बहुले” जगह २ जिसमें प्रायः नदियाँ है ऐसा है "दहबहुले" जगह २ जहां प्रायः द्रह-पानी के कुंड हैं ऐसा है "रुक्ख बहुले' जगह २ जहां प्रायः वृक्ष हैं ऐसा है "गुच्छ बहुले” प्रायः जगह २ जहाँ गुच्छे हैं, ऐसा है जगह २ जहां पर "गुम्म बहुले" ઊંચ-નીચો છે–સર્વથા સમનથી, અહીં ઘણાં રથાનો એવા પણ છે કે ત્યાં પ્રવેશવું અશકય છે- અથવા તે કષ્ટ સાથે છે, અહીં પર્વતની અધિકતા છે. તેમજ તે પર્વતેની ઉપર એવાં એવાં વિશેષ સ્થાને છે કે જ્યાંથી પડી જવાય તો માણસના શરીરના ભુકકે ભુક્કા થઈ જાય છે. અહીં અવઝરે પુષ્કળ છે. જે પર્વતીય સ્થાને પરથી નીચે જળ પડે છે તે સ્થાનોને અવઝર (પ્રપાત) કહે છે જેમકે જબલપુરનો ભેડાઘાટ વગેરે. અહીં નિઝરે પુષ્કળ છે, પર્વતના જે સ્થાનોથી સર્વદા જળ ઝરતું રહે છે એવા સ્થાનને નિર્ઝર કહે છે. એવાં સ્થાને भारतक्षेत्रमा मधिzia छ. मा प्रमाणे मा भरतक्षेत्र “खडूडा बहुले" 10 परसे જ્યાં ખાડાઓ પુષ્કળ છે એવા સ્થાન વાળું છે. એ ટલે કે સ્થાન સ્થાન પર ઘણું ખાડાઓ छ. "दरि बहुले” । ५२ ४४४४Q। घशी गुथयो। पाणुछ. थेटवे मडी शमा भूम पधारे छ. “णई बहुले” स्थान स्थान ५२ मा नदी छे येवु या क्षेत्र छे. "दह बहुले” ४४४ ४यां प्राय: पान । छे थे या क्षेत्र छे. “रुक्ख बहुले' है। काय घgi वृक्षो छ ये छ. "गुच्छ बहुले” प्राय: 8:४d rii शुरछामा छ मेछ. ४४810 rयां "गुम्म बहुले' शुक्ष्मी घिia ३५i छे मे मा क्षेत्र छे. જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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