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________________ प्रकाशिका टीका त• वक्षस्कार सू. ३ भरतचक्रवतिनः दिग्विजयादिनिरूपणम् ५२७ अथ प्रस्तुत भरतस्य दिग्विजयादिवक्तव्यतामाह-(तए णं) इत्यादि। मूलम्-तए णं तस्स भरहस्स रण्णोअण्णया कयाइ आउहघर सालाए दिव्वे चकरयणे समुप्पज्जित्था,तएणं से आउहघरिए भरहस्स रण्णा आउहघरसालाए दिव्यं चक्करयणं समुप्पण्णं पासइ पासित्ता हट्टतुट्ठ चित्त, माणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहिए जेणामेव दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तिक्खु तो आ याहिणं पयाहिणं करेइ करित्ता करयल जाव कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ करित्ता आउहघरसालाओपडिणिक्खमइपडि णिक्वमित्ता जेणा मेव बाहिरि आ उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहेराया तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल जाव जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावित्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणु प्पियाणं पिअट्टयाए पियं णिवेएमो पियं मे भवउ, तए णं से भरहेराया तस्स आउहघरिअस्ल अंतिए एअमटुं सोच्चाणिसम्म हट्ठ जाव सोमणस्सिए वि असिअवरकमलणयणवयणे पयलिअवरकडग तुरिअ केऊर मउड कुंडलहार, विरायंतरइअवच्छे पालंब पलंबमाणघोलंतमूसणधरे ससंभमं तुरिअं चवलं णरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुद्वित्ता पायपीढाओ पच्चारहइ पच्चोरुहित्ता पाउआओ ओमुअइ ओमुइत्ता एगसाडिअं उत्तरासंगं करेइ करित्ता अंजलिमउलिअग्गहत्थे चक्करयणाभिमुहे सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ अचित्ता दाहिणं जाणु धरणितलंसि णिहछु करयल जाव अंजलिं कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ करिता तस्स आउहघरिअस्स अहामालिअंमउडवज्ज ओमोअं दलइ दलित्ता विउलं जीविआरिहं पीइदाणं दलइ दलित्ता सक्कारेइ सम्माणेइ सक्करेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ पडिविसज्जित्ता सोहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सण्णिसण्णे । तएणं से भरहे राया कोडंबियपुरिसे सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ!विणीअंशयहाणि सभितर बाहिरिअं आसिअसंमज्जिअ सित्त सुइगरत्थं तस्वीहिअंमंचाइमंचकविणाणाविह જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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