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३१ उससमयमें डिम्ब उपद्रवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर
२८५-२९१ ३२ उसकालके मनुष्योंकी भवस्थित्यादि का निरूपण
२९१-२१९ दूसरा आरक ३३ सुषमानामके दूसरे आरेका निरूपण
२९९-३१० ३४ सुषमानामके आरेमें भवस्थितिका निरूपण
३११-३१४ तीसरा आरक ३५ तोसरे आरकके स्वरूपका कथन
३१४-३२३ ३६ सुषमदुष्षमाकालके अन्तिम त्रिभागमें लोक व्यवस्था का कथन
३२४-३२७ ३७ कुलकरता के प्रकारका कथन
३२७-३३३ ३८ ऋषभस्वामी के त्रिजगज्जनपूजनीयता का कथन
३३३-३५६ ३९ ऋषभस्वामीके दीक्षागृहण के अनन्तरीय कर्तव्यका कथन
३५६-३६७ ४० भगवान की श्रामण्यावस्थाका वर्णन
३६८-३७४ ४१ भगवानका केवलज्ञान प्राप्तिका कथन
३७४-३८४ ४२ ऋषभस्वामी को केवलज्ञानोत्पत्तिके अनन्तरीय कार्यका निरूपण
३८४-३९७ ४३ भगवान के जन्मकल्याणकादिका निरूपण
३९७.३९९ ४४ भगवानके निर्वाणके बाद के देवकृत्यका निरूपण
३९९-४१० ४५ भगवानके निर्वाणके अनन्तर ईशानेन्द्र के कर्तव्यका कथन
४११-४१८ ४६ ६४ इन्द्रोंके आगमनानन्तर देवेन्द्र शक्रके कार्य का कथन
४१८-४२१ ४७ भगवान आदिके कलेवर के स्नपनादि का निरूपण
४२१-४२६ ४८ भगवान आदिके कलेवर चिता में रखने के बादका शकादिके कार्य का निरूपण ४२६-४३४ ४९ अस्थिसंचयके बाद की विधी का निरूपण
४३४-४४० चतुर्थ आरक ५० चतुर्थ आरक के स्वरूप का कथन
४४१-४४६ पांचवां आरा ५१ पंचम आरक के स्वरूपका कथन
४४७-४५२ छट्ठा आरक ५२ छठे आरेका स्वरूपनिरूपण
४५२-४८३ ५३ उत्सर्पिणी के दुष्षमा आरकमें अवसर्पिणीके दुष्षमा आरकसे विशिष्टताका कथन-४८४-४९४ ५४ उत्सर्पिणी दुष्षमाकालके मनुष्यों के कर्तव्य एवं आकार भावप्रत्यवतारका कथन -४९४-४९९ ५५ दुष्षमसुषमा कालका वर्णन -
४९९-५११
वक्षस्कार ५६ भरतवर्ष नाम होने के कारण का कथन
५१२-५१६ ५७ भरत चक्रवर्ती के उत्पत्यादिका निरूपण
५१६-५२६ ५८ भरत चक्रवर्ती के दिग्विजयादिका निरूपण
५२७-५४८
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર