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________________ सूर्यक्षप्तिप्रकाशिका टीका सू० ९४ अष्टादश प्राभृतम् ८४७ परिवहन्तीति सर्वसंग्रहेण षोडश देवसहस्राणि चन्द्रविमानं वहन्तीति सिद्धयति ॥ एवं सूरविमाणं पि' एवं सूर्यविमानमपि एवं-चन्द्रविमानवहनक्रमवदेव-पूर्व-दक्षिण-पश्चिमोत्तरक्रमेण चत्वारि चत्वारि देवसहस्राणि सर्वमिलित्वा षोडशदेवसहस्त्राणि सूर्यविमानमपि वहन्ति, सूर्यविमानवाहकान्यपि पोडश देवसहस्राणि सन्तीत्यवसे यानि सम्प्रति ग्रहविमानं में एक न्यून ग्रह विमान को वहन करता है नक्षत्र विमान को चार हजार देव वहन करते हैं। तारा विमान को दो हजार देव वहन करते हैं । इसी को ही भगवान् स्पष्ट करते हैं-(सोलस देव साहस्सीओ परिवहंति) चंद्रविमान को सोलह हजार देव वहन करते हैं, (तं जहा-पुरच्छिमेणं सीहरूपधारिणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, दाहिणेणं गयरूवधारिणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, पचत्थिमेणं वसभख्वधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, उत्तरेणं तुरगरूवधारिणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति) जो इस प्रकार है-पूर्व दिशामें सिंह रूपधारी चार हजार देव वहन करते हैं, दक्षिण दिशा में गजरूप धारी चार हजार देव वहन करते हैं, वृषभ रूपधारी चार हजार देव पश्चिम दिशा में वहन करते हैं उत्तर दिशा में अश्वरूपधारी चार हजार देव वहन करते हैं, इस प्रकार सब का जोड करने से सोलह हजार देव चंद्रविमान को वहन करते हैं यह सिद्ध हो जाता है। (एवं सूरविमाणं वि) चंद्रविमान के वहन क्रमानुसार पूर्व दक्षिण, पश्चिम, उत्तर दिशा के क्रमसे चार चार हजार देव के क्रमसे सब का जोड सोलह हजार देव सूर्य विमान को वहन करते हैं यह निश्चित हो जाता है।। अब गृहविमान के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता गहविદેવ ગ્રહવિમાનને વહન છે. કરે છે. નક્ષત્ર વિમાનને ચારહજાર દેવ વહન કરે છે તારા विमानने मे २ हेवा वन ४२ छे. या विषयने भगवान् २५०८ ४२ छ.- (सोलस देव साहस्सीओ परिवहंति) 'द्र विमानने सोगर वे पान ४२ छ.-(त जहा-पुरिच्छिमेण सीहरूवधारिण चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहति, दाहिणेणं गयरूवधारिण चत्तारि देव साहस्सी प्रो परिवहंति पच्चत्थिमेण वसभरूवधारिणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, उत्तरेण तुरगरूवधारिण चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहति) 2 20 प्रमाणे छे. पूर्व दिशामा सिडना રૂપ ધારણ કરીને ચારહજાર દેવે વહન કરે છે. દક્ષિણ દિશામાં ગજના રૂપ ધારણ કરીને ચારહજાર દે વહન કરે છે. વૃષભના રૂપ ધારણ કરીને ચાર હજાર દે પશ્ચિમ દિશામાં વહન કરે છે. ઉત્તર દિશામાં અશ્વનારૂપ ધારણ કરીને ચાર હજાર દેવે વહન કરે છે. આ રીતે બધાને મેળવવાથી સેળહજાર દેવે ચંદ્ર વિમાનનું વહન કરે છે. તેમ સિદ્ધ થાય છે. (एवं सूरविमाणे वि) विमानना शुभ प्रभारी पूर्व, दक्षिण पश्चिम भने उत्तर દિશાના ક્રમ પ્રમાણે ચાર ચાર હજાર દેવના કમથી બધા મળીને સોળહજાર દેવ સૂર્ય વિમાનનું વહન કરે છે તેમ નિશ્ચય થાય છે. શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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