SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 827
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८१६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे " चन्द्रः २२ ।। त्रयोविंशति यजनसहस्राणि सूर्यः सार्द्ध त्रयोविंशति यजनसहस्राणि चन्द्रः २३ ॥ चतुर्विंशति यजनसहस्राणि सूर्यः सार्द्ध चतुर्विंशति यजनसहस्राणि चन्द्रः २४ ॥ अथ पञ्चविंशतितमप्रतिपत्तिसूत्रं स्वयमेव भगवानुपदर्शयति - एगे एवमाहं एगे पुण एव - माहंसु-ता पणवीसं जोयणसहस्साई सरे उडूं उच्चतेणं अद्ध छन्वी चंदे, एगे एवमाहंसु २५ ।।' एके एवमाहुः, एके पुनरेवमाहुस्तावत् पञ्चविंशति यजनसहस्राणि सूर्यः उर्ध्वमुच्चत्वेन, अर्द्धषडविंशतिश्चन्द्रः एके एवमाहुः २५ । एके - चतुर्विंशतिपर्यन्तास्तीर्थान्तरीयाः, एवं पूर्वोदितक्रमेण एकैकयोजन सहस्रवृद्धया स्वस्वमतान्याहुः, पञ्चविंशतितमा अपि तीर्थान्तरीयास्तथैवैकयो जनसहस्रवृद्धया स्वमतं कथयन्ति भूमेरूर्ध्वमुच्चत्वेन सूर्यः पञ्चविंशतिर्योजन सहस्राणि - तावति दूरे भूमेरुपरि व्यवस्थितो भवति सूर्य, चन्द्रश्च पुन: 'अद्ध छब्बीसं' पइर्दिशतेरर्द्ध-पडविंशतेरर्द्धभागेन सहिता पञ्चविंशति सार्द्धपंचविंशति योजन(२२) तेइस हजार योजन सूर्य एवं साडे तेइस हजार योजन चंद्र (२३) चोवीस हजार योजन सूर्य एवं साडे चोईस हजार योजन चंद्र (२४) अब पचीस मतवादी के कथन प्रकार स्वयं भगवान् कहते हैं (एगे एवमाहंस एगे पुण एवमाहंसु-ता पणवीस जोयणसहस्साई सरे उ उच्चणं अद्ध छब्बीसं चंदे, एगे एवमाहंस) कोइ एक इस प्रकार कहता है-पचीस हजार योजन सूर्य ऊपर में व्यवस्थित होता है एवं साडे पचीस हजार योजन चंद्र ऊपर में व्य वस्थित होता है इस प्रकार कोइ एक पचीसवां अन्यतीर्थिक कहता है (२५) कहने का भाव यह है की चौवीस पर्यन्त के तीर्थान्तरीय पूर्वकथित प्रकार से एक एक हजार योजन की वृद्धि से अपने अपने मत को कहा है, पचीसवां तीर्थान्तरीयने भी उसी प्रकार से एक हजार योजन की वृद्धि से अपना मत प्रगट किया है, भूमि के ऊपर में ऊंचे सूर्य पचीस हजार योजन दूर भूमि के ऊपर व्यवस्थित होता है, एवं चंद्र (अद्ध छब्वीस) छवीस का आधा भाग - ચંદ્ર (૨૨) તેાસહજાર સે।જનની ઉંચાઇએ સૂર્ય અને સાડીતેવીસહજાર યેાજન ચંદ્રે (૨૩) ચાવીસહજાર ચાજનની ઊંચાઇએ સૂર્ય અને સાડીચાવીસહજાર યેાજન ચંદ્ર (૨૪) हवे पथीसभा भतावस जीना उथनात्भ सूत्र स्वयं भगवान् छे छे - ( एगे एवमाहंसु एगे पुत्र मासु-ता पणत्रीत जोयणसहस्साई सूरे उड्ढ उच्चतेणं अद्धछब्बीसं चदे एगे एव म हंसुआ प्रभा डे हे पीसन्नर योजननी याध्ये सूर्य पवस्थित રહે છે, તથા સાડીથી હજાર ચેાજનની ઉંચાઈ એ ચંદ્ર વ્યવસ્થિત હોય છે. આ પ્રમાણે કોઈ એક પચીસમે અન્યતીથિંક કહે છે. (૨૫) કહેવાના ભાવ એ છેકે-ચેાવીસ સુધીના તીર્થાન્તરીચાએ પૂČકથિત પ્રકારથી એક એક હજાર ચેાજનના વધારાથી પે।તપેાતાને મત દર્શાવ્યે છે. તથા પચીસમા તીર્થાન્તરીએ પણ એજ પ્રમાણે એકહજાર યેાજના વધારાથી પેાતાને મત જણાવ્યેા છે. પૃથ્વીની ઉપર ઉંચે સૂર્યાં પચીસહજાર ચેાજન દૂર વ્યવસ્થિત થાય છે, તથા શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy