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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ८८ सप्तदशप्राभृतम् ८०५ वर्षसहस्रमेव (११) । तावत् अनुवर्षशतसहस्रमेव (१२) । तावत् अनुपूर्वमेव (१३) । तावत् अनुपूर्वशतमेव (१४) तावत् अनुपूर्वसहस्रमेव (१५) । तावत् अनुपूर्वशतसहस्रमेव (१६) । तावत् अनुपल्योपममेव (१७) । तावत् अनुपल्योपमशतमेव (१८) । तावत् अनुपल्योपमसहस्रमेव (१९) । तावत् अनुपल्योपमशतसहस्रमेव (२०)। तावत् अनुसागरोपममेव (२१) तावत् अनुसागरोपमशतमेव (२२)। तावत् अनुसागरोपमसहस्रमेव (२३) । तावत अनुसागरोपमशतसहस्रमेव (२४) ॥ इत्यासां प्रतिपत्तीनां छायामात्रेणेव व्याख्या अप्युहनीयाः। है (१०) (ता अणुवाससहस्समेव) कोई एक प्रत्येक हजार वर्ष में कहता है (११) (ता अणुवाससयसहस्समेव) कोई एक प्रत्येक लाख वर्ष में कहता है (१२) (ता अणुपुश्वमेव) कोई एक प्रत्येक पूर्व में कहता है (१३) (ता अणुपुव्व सयमेव) कोई एक सो पूर्व में कहता है (१४) (ता अणुपुञ्च सहस्समेव) कोई एक हजार पूर्व में कहता है (१५) (ता अणुपुव्व सयसहस्समेव) कोई एक प्रत्येक लाख पूर्व में कहता है (१६) (अणुपलिओवम मेव) कोई एक प्रत्येक पल्योपम में कहता है (१७) (ता अणुपलिओवम सयमेव) कोई एक सौ पल्योपम में कहता है (१८) (ता अणुपलिओवम सहस्समेव) कोई एक प्रत्येक हजार पल्योपम में कहता है (१९) (ता अणुपलिओवम सयसहस्समेव) कोइ एक प्रत्येक लाख पल्योपम में कहता है (२०) (ता अणुसागरोवम मेव) कोइ एक प्रत्येक सागरोपम में कहता है (२१) (ता अणुसागरोवमसयमेव) कोइ एक सौ सागरोपम में कहता है (२२) (ता अणुसागरोवमसहस्समेव) कोई एक हजार सागरोपम में कहता है (२३) (ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव) कोई एक लाख सागरोपम कहता है (२४) इन प्रतिपत्तियों का अर्थ मात्र से ही (ता अणवाससहस्स मेव) असे ४२४ २५ भा छे. (११) (ता अणुवाससयसहस्स मेव) में ४२४ तासभा डे छे. (१२) (ता अणुपुत्व मेव) । ४२४ पूर्व भांडे छे. 113) (ता अगुपुखसयमेव) से पूर्व भांडे छे (१४) (ता अणु पुरसहस्स मेव) । मे १२ पूर्वमा ४ छ. (१५) (ता अणुपुव्वसयसहस्स मेव) ४ ४२४ तास पूर्वमा ४९ छे. (१६) (अगुपलिओवम मेव) ४ ४.२४ पक्ष्या५ममा हे छे. (१७) (ता अणुपलिओवमसथ मेव) मे सो ल्यापममा ४ छ. (१८) (ता अणुपलिओवमसहस्स मेव) ७ मे २४ २ वर्षमा ४ छे. (१८) (ता अण पलिओवमसयसहस्त मेव) असे १२४ साप पक्ष्याममा डे छे. (ता अणुसागरो वम मेव) ४ १२४ सा॥५ममा छ. (२१) (ता अणुसागरोवमसय मेव) 35 १२४ सो सागरोपममा ४३ छ. (२२) (ता अणुसागरोवमसहस्स मेव) * ६२४ ॥२ स यममा ४९ छ. (२३) (ता अणुसागरोवमसयसहस्स मेव) और એક દરેઠ લાખ સાગરોપમ કહે છે. (૨૪) આ પ્રતિપત્તિયાના અર્થ માત્રથીજ વ્યાખ્યા શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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