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________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० ८८ सप्तदशप्राभृतम् । अवसर्पिणीं उत्सर्पिणीमेव चन्द्रसूर्याः अन्ये च्यवन्ते अन्ये उत्पद्यन्ते, एके एवमाहुः ॥-इत्येवं चरमसूत्रं व्याख्या च सुगमैव । ताश्चैवं भणितव्या:-'एगे पुण एवमाहंसु ता अणुराइंदियमेव चदिमसूरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जति आहिएत्ति वएज्जा एगे एवमासु (३) एगे पुण एवमाहंसु-ता एव अणुपक्खमेव चंदिमसरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जंति आहिएत्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु (४)। एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुमासमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जति आहिएत्ति वएज्जा, एगे एवमासु (५) एगे पुण एवमाहंसु-ता अणु उउमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति आहिएत्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु (६) । एगे पुण एवमासु-ता अणु अयणमेव (७) ता अणुसंवच्छरमेव (८) ता अणुजुगमेव (९) ता अणुवाससयमेव (१०) ता अणुवाससहस्समेव (११) ता अणुवाससयसहस्समेव (१२) ता अणुपुव्वमेव (१३) ता अणुपुव्वसयमेव (१४)। ता अणुपुबसहस्समेव (१५) ता अणुपुव्वसयसहस्समेव (१६) ता अणुपलिओवममेव (१७) ता अणुपलिओवमसयमेव (१८) ता अणुपलिओवम सहस्समेव (१९)। ता अणुपलिओवमसयसहस्समेव (२०) ता अणुसागरोवममेव (२१)। ता अणुसागरोवमसयमेव (२२) ता अणुसागरोवमसहस्समेव (२३) ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव (२४)॥ छायाएके पुनरेवमाहुस्तावत् अनुरात्रिन्दिवमेव चन्द्र सूर्याः अन्ये च्यवन्ते अन्ये उत्पद्यन्ते इत्याख्याता इति वदेत, एके एवमाहुः (३) एके पुनरेवमाहुस्तावत् अनुपक्षमेव चन्द्रउस्सप्पिणी मेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति) कोई एक इस प्रकार कहता है कि अनुअवसर्पिणी उत्सर्पिणी में चंद्र सूर्य पूर्वोत्पन्न का च्यवन होता है एवं नवीन ही उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार अन्तिम सूत्र पर्यन्त कह लेवें । व्याख्या सुगम होने से विशेष रूप से नहीं कहते। ॥ २॥ वे प्रतिपत्तियां इस प्रकार कहते हैं-(एगे पुण एवमासु ता अणुराइंदिय मेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति आहिएत्ति वएजा एगे एवमासु)॥३॥ कोई एक इस प्रकार से कहते हैं कि प्रत्येक अहोरात्र में चंद्र सूर्य पूर्वोत्पन्न का च्यवन होता है एवं नूतन उत्पन्न होते हैं (३) (एगे पुण एवं मासु ता एवं अणुपक्खमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जति उववज्जति) ४ मे शत छ-मनुसक्सपिणी मने असमा यस પૂર્વોત્પન્નનું ચવન થાય છે અને નવાજ ઉત્પન્ન થાય છે. આ પ્રમાણે અંતિમ સૂત્રપર્યન્ત કહી લેવું. સુગમ હોવાથી વિશેષરૂપે કહેલ નથી. ારા त प्रातपत्तियो २ प्रमाणे ४दा छे.-(एगे पुण एवमासु ता अणुराइंदियमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जति आहिएत्ति वएज्जा एगे एवमाहंसु) से આ પ્રમાણે કહે છેકે હરેક અહોરાત્રમાં ચંદ્ર સૂર્ય પહેલા ઉત્પન્ન થયેલને નાશ થાય છે भने नपानी पाडाव थाय छे. (३) (एगे पुण एवमाहेसु ता एवं अणुपक्खमेव च दिम શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર:
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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