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________________ ७९८ सूर्यप्रज्ञप्तिस् स एव आतप इति पदस्यापि वाच्यार्थी भवति, न मनागपि वाच्यार्थे भेदोऽवगन्तव्य इति ॥ अथान्धकारविषयः प्रश्नः - 'ता अंधगारेश्य छायाइ य, छायाइ, य अंधगारेइ य, के अट्ठे किं लक्खणे ?' तावत् अन्धकार इति च छाया इति च, छाया इति च अन्धकार इति च किं अस्ति किं लक्षणं ? || तावदिति पूर्ववत् अन्धकार-छाया इत्यनयोः, छाया, अन्धकार इत्यनata क्रमोच्चरितयोः व्युत्क्रमोच्चरितयोर्वा एक एव वाच्यार्थः, भिन्नवाच्यार्थी वा भवतीति गौतमस्य प्रश्न स्ततो भगवानाह - 'ता एगडे एग लक्खणे' तावत् एकस्थं एक स्वरूपं - अभिनार्थप्रतिपादकं, एकलक्षणं - अभिन्नवाच्यार्थप्रतिपादकं, छायान्धकारयोरेक एवार्थः, छायान्धकार अन्धकार छायेति क्रमोच्चार णेव्युत्क्रमोच्चारणेऽपि एक एवार्थ इति भावः ।। सू० ८७ ॥ ॥ इति षोडशं प्राभृतं समाप्तम् ॥ अर्थात् सूर्य लेश्या इस पद का जो वाच्यार्थ होता है वही आतप इस पद का भी वाच्यार्थ होता है, स्वल्प भी वाच्यार्थ में भेद नहीं होता है । अब अंधकार के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं - (ता अंधगारेइ छायाइ य, छायाइय अंधगारेइ य के अटूट्ठे किं लक्खणे) अंधकार एवं छाया इन दो शब्दों का एवं छाया एवं अंधकार इन दो शब्द क्रम से उच्चरित हो अथवा व्युत्क्रम से उच्चरित हो एक ही प्रकार का वाच्यार्थ होता है ? या भिन्न प्रकार का वाच्यार्थ होता है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं- ( ता एगट्ठे एग लक्खणे) एक स्वरूपात्मक अर्थात् अभिन्नार्थ प्रतिपादक छाया एवं अंधकार का एक ही अर्थ होता है । छाया एवं अंधकार अथवा अंधकार एवं छाया इस प्रकार क्रम से उच्चारण करे तो भी एक ही प्रकार का अर्थ होता है । ॥ सू० ८७ ॥ सोलहवां प्राभृत समाप्त ॥ १६ ॥ કે વ્યુત્ક્રમથી રાખેલ હોય ગમે તે પ્રમાણે હોય પરંતુ થાય છે. અર્થાત્ સૂયૅ લેશ્યા આ પદને જે વાચ્યા પણ વાથ્યા થાય છે. ઘેાડે પણ વાચ્યા માં ભેદ થતા हवे संधारना संबंधभां श्रीगौतमस्वामी प्रश्न पूछे छे.- ( ता अंधगारेइय छाया छाया या मे शब्द બુકમથી ઉચ્ચારેલ ડાય થાય છે? આ પ્રમાણે इय, छायाइय अंधगारेश्य के अट्ठे किं लक्खणे) अंधार भने છાયા અને અંધકાર આ બે શબ્દો ક્રમથી ઉચ્ચારેલ હાય કે એકજ પ્રકારના વાચ્યા થાય છે ? કે જુદા પ્રકારથી વાચ્યા श्रीगौतमस्वाभीना प्रश्नने सांलजीने उत्तरमा श्रीलगवान् हे छे. - ( ता एट्ठे एग लक्खणे ) એક સ્વરૂપાત્મક અર્થાત્ અભિન્નાથ પ્રતિપાદક છાયા અને છે. છાયા અને અંધકાર અથવા અંધકાર અને છાયા આ પ્રમાણે કમથી ઉચ્ચારણ કરે तो पारनो अर्थ थाय छे । सू. ८७ ।। અંધકારને એકજ અર્થ થાય सोज आमृत सभाप्त ॥१६॥ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨ એક સરખેાજ બન્નેના અ થાય છે. એજ આતપ આ પદના નથી.
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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