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________________ ६८८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे त्रयोदशे अहोरात्रे दक्षिणस्यां दिशि चतुर्दशमर्द्धमण्डलमाक्रम्य चारं चरति, चतुर्दशे अहोरात्रे उत्तरस्यां दिशि पञ्चदशस्याद्ध मण्डलस्य त्रयोदश सप्तषष्टी भागानाक्रम्य चारं चरति । एतावता अन्तररूपेण समयेन चन्द्रस्यायनं परिसमाप्तं भवति, अयनं नामगति, अयगता वितिधातो रयनं सिद्धथति, चान्द्रायननाम नाक्षत्रार्द्धमासप्रमाणं भवति, अतएव नाक्षत्रार्द्धमासेन चन्द्रचारे किल सामान्यतश्चतस्त्रो यादृशमण्डलानि भवन्ति परिपूर्णानि, चतुद्देशस्य च मण्डलस्य त्रयोदश सप्तषष्टिभागाः भवन्ति तद्यथात्र त्रैराशिकप्रवृत्या गणितप्रक्रिया प्रोच्यतेयतोहि एकस्मिन् युगे चतुस्त्रिंशदधिकं शतमयनानां भवन्तीत्यतोऽनुपात:-चतुस्त्रिंशदधिके नायनशतेन अष्टषष्टयधिकानि सप्तदश शतानि मण्डलानां लभ्यन्ते तदैकेनायनेना किं स्यादिति राशित्रयस्थापना-ix = = १३,७४-१३+ अत्रान्त्येन राशिना एकक रूपेण आक्रमित करके गति करता है, तेरहवें अहोरात्र में दक्षिण दिशा से चौदहवें मंडल को आक्रमित करके गमन करता है । चौदहवें अहोरात्र में उत्तरदिशा में पंद्रहवें अर्धमंडल का सडसठिया तेरह भाग को आक्रमित करके गमन करता है। इतने अंतरवाले समय से चंद्र का अयन समाप्त होता है। अयन नाम गति का है । (अयन गतौ) इस धातु से अयन शब्द सिद्ध होता है। चांद्रायन नाम नाक्षत्र अद्वैमास प्रमाण का होता है। अतएव नाक्षत्र अर्धमास से चंद्र के गमन में सामान्य से तेरह मंडल परिपूर्ण होते हैं, तथा चौदहवें मंडल का सडसठिया तेरह भाग होते हैं । जो इस प्रकार से हैं-यहां पर त्रैराशिक गणित प्रवृत्ति से कहा जाता है-एक युग में एक सो चोतीस अयन होते हैं। अतः इस प्रकार अनुपात करे की एक सो चोतीस अयनों से सत्रह सो अडसठ मंडल होते हैं तो एक अयन से कितने मंडल हो सकते हैं इसके लिये त्रैराशिक स्थापना की जाती है-' १३-४१३x यहां पर अन्त्य राशि जो एक है उससे मध्य की राशी को गुणा करे तो भी उसी प्रकार रहता है, कारण છે. તેરમા અહોરાત્રમાં દક્ષિણદિશાથી ચૌદમા મંડળને આકમિત કરીને ગમન કરે છે. ચૌદમી અહોરાત્રે ઉત્તરદિશામાં પંદરમાં અર્ધમંડળના સડસડિયા તેરમાભાગને આકમિત કરીને ગમન કરે છે. આટલા અંતરવાળા સમયથી ચંદ્રની અયનગતિ સમાપ્ત થાય છે. मयन मेटले गति (अयनगतौ) से धातुथी अयन ५६ सिद्ध थाय छे. यांद्रीयन नक्षत्र અર્ધમાસ પ્રમાણુનું હોય છે. તેથી જ નાક્ષત્ર અર્ધમાસથી ચંદ્રના ગમનમાં સામાન્ય રીતે પુરા તેરમંડળ થાય છે. તથા ચૌદમા મંડળના સડસડિયા તેરભાગ થાય છે. જે આ પ્રમાણે છે. અહીયાં સૈરાશિક ગણિત પ્રવૃત્તિથી કહેવામાં આવે છે. એક યુગમાં એકત્રીસ અયને હોય છેતેથી આવી રીતે અનુપાત કરે કે એકત્રીસ અયથી સત્તર અડસઠ મંડળ થાય તે એક અયનથી કેટલા મંડળ થઈ શકે? આ માટે બૈરાશિક સ્થાપના કરવામાં भाव छे. १५३ ११3-313+13 मही मतिम २ छ तनाथी श्री सुर्यप्रतिसूत्र : २
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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