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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ७९ त्रयोदशप्राभृतम् पञ्चदश्या स्तिथेश्वरमसमये चन्द्रः सर्वात्मना राहुविमानप्रभया रक्तो भवति कृष्णपक्षे तिरोहितो भवति, शुक्लपक्षे च प्रकाशितो भवतीति भावः । उक्तं च मूले-'चरिमसमए चंदे रत्ते भवइ' चरमसमये चन्द्रो रक्तो भवति । प्रतिपक्षान्ते कृष्णशुक्लभागभेदेनानुरक्तो भवतीत्यर्थः।। यस्तु षोडशोभागो द्वापष्टिभागद्वयात्मकोऽनावृत्त स्तिष्ठति स चाल्पत्वाद् दृश्यत्वाच्च न परिगण्यते, दृश्यार्धचन्द्रभागस्थ षोडश कलात्मकत्वात तिथीनां पञ्चदशत्वाच्च परिशेषो भागो दूरत्वादृश्यत्वाचन परिगण्यत इत्यर्थः । अथ परिशेषामवस्थां प्रतिपादयति-'अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ' अवशेषेषु समयेषु चन्द्रो रक्तो भवति विरक्तश्च भवति ॥अवशेषेषु-अवशिष्टेषु-पञ्चदश्यास्तिथेः चरमसमयं विहाय अन्धकारपक्षप्रथमसमयादारभ्य शेषेषु सर्वेष्वपि समयेषु चन्द्रो रक्तोऽपि भवति, विरक्तश्चापि भवति, कियानंशश्चन्द्रस्यान्धकाररूपेण राहुणा आवृत्तोऽप्रकाशितो भवति, कियानंशश्च अनावृतत्वाद् दृश्यभागगतत्वाच पंद्रहवां भाग रक्त होता है । उस पंद्रहवीं तिथि के अन्त के समय में चंद्र सर्वात्मना राहु विमान की प्रभा से रक्त होता है। तात्पर्य यह है कि-कृष्णपक्ष में तिरोहित होता है एवं शुक्लपक्ष में प्रकाशित होता है । मूल में कहा भी है-(चरिमसमए चंदे रत्ते भवइ) प्रतिपक्ष के अन्त भाग में चंद्र रक्त होता है। जो बासठिया दो भाग रूप जो सोलहवां भाग है, वह अनावृत ही रहता है । उसको अल्प एवं अदृश्य होने से परिगणित नहीं करते । कारण की दृश्यमान चंद्र भाग का सोलहवीं कला रूप होने से तथा तिथियां पंद्रह होने से शेष भाग दूर होने से एवं अदृश्य होने से गिना नहीं जाता है। ___ अब शेष अवस्था विषय में प्रतिपादन करते हैं (अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ) पंद्रह तिथि का अन्त का समय को छोडकर कृष्णपक्ष का प्रथम समय से आरंभ करके शेष सभी समय में चंद्र रक्त होता है तथा विरक्त भी होता है राहु से आवृत्त चंद्र का कितनेक अंश अंधकार रूप से પંદર ચંદ્ર સર્વાત્મના રાહ વિમાનની પ્રભાથી લાલ થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છેકેકૃષ્ણપક્ષમાં ઢંકાઈ જાય છે. અને શુકલ પક્ષમાં પ્રકાશિત થાય છે. મૂલમાં કહ્યું પણ છે. -(चरिमसमए च दे रत्ते भवइ) ४२४ पक्षना मत मागमा या थाय छे. मासठिया में ભાગરૂપ જે સેળભે ભાગ છે તે અનાવૃત્ત-વિના ઢંકાયેલા રહે છે. તે અલ્પ અને અદશ્યમાન હેવાથી ગણેલ નથી. કારણકે દેખાતા ચંદ્ર ભાગની સેળમી કળારૂપ હોવાથી તથા તિથિ પંદર હોવાથી અને શેષ ભાગ દૂર હોવાથી અને અદશ્ય હોવાથી ગણવામાં આવતું નથી. वे मालीनी २५१२थाना समयमा प्रतिपान ४२वामां आवे छे.-(अवसेसे समए चंदे रत्तय विरतेय भवइ) ५४२ तिथिना मतना समयने छौडीन पक्षना प्रथम सभयथा આરંભ કરીને બાકીના બધા સમયમાં ચંદ્ર રક્ત થાય છે. તથા વિરક્ત પણ થાય છે, હુથી ઢંકાયેલ ચંદ્રનો કેટલેક અંશ અંધકારરૂપે રાહુથી ઢંકાઈને વિના પ્રકાશિત રહે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞમિ સૂત્રઃ ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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