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________________ ५४४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे मपेक्ष्य कर्ममासचिन्तासां प्रतिवर्ष पद अतिरात्रा भवन्ति, 'माणाहि' जानीहि । तथा च षट् अवमरात्रा भवन्ति चान्द्रात्-चान्द्रमपेक्ष्य-चान्द्रमासान् अधिकृत्य कर्ममासचिन्तायां प्रतिसंवत्सरं षट् अपमरात्रा भवन्तीति 'माणाहि' जानीहि, अतः सिद्धयति यत्-ये अतिरावास्ते सौरात्मकाः, तथा च ये अवमरात्रास्ते चान्द्रात्मकाश्चेति जानीहि,उक्तश्च मूलेऽपि-'छच्चेव य अइरत्ता आइच्चा उ हवंति माणाहि । छच्चेव ओमरत्ता चंदाहि हवंति माणाहि ॥१॥' छाया-पट् चैव च अतिरात्रा आदित्यास्तु भवन्ति मानः । षट् चैव अवमरात्राचान्द्राहि भवन्ति मानैः ॥१॥ एकस्मिन् सम्वत्सरे ये षटू संख्यका अतिरात्रा:-अधिकरात्राश्चतुर्थ चतुर्थपर्वान्तरे प्रतिपादितास्ते मानः-परिमाणैः-सजातीयत्वेन आदित्याः-आदित्यसंज्ञका:-सौरा भवन्ति । एवं च एकस्मिन् संवत्सरान्तराले ये षट् संख्यका अवमरात्रा-क्षयरात्राः प्रतिपादितास्ते च मानैः-प्रमाणे-सजातीयलक्षणैश्चान्द्राः-चान्द्रसजातीया भवन्ति । सौरात्मकान्यधिकानि, रणा में प्रतिवर्ष में छह अतिरात्र होते हैं । (माणाहि) ऐसा जाने, चांद्रमास को अधिकृत करके कर्ममास की विचारणा में प्रत्येक संवत्सर में छह अवमरात्र क्षय होते हैं ऐसा (माणाहिं) जान लेवें। इससे यह सिद्ध होता है की जो अतिरात्र होते हैं वे सौरसंवत्सरात्मक होते हैं। तथा जो अवमरात्र-क्षय तिथि होते हैं वे चांद्रसंवत्सरात्मक होते हैं ऐसा जाने । मूल में कहा भी है(छच्चेच अइरत्ता आइच्चा उ) इत्यादि एक संवत्सर में जो छ संख्यात्मक अतिरात्र अर्थात् अधिक रात्र चार चार पर्व के अंत में प्रतिपादित किये हैं, वे सजातीयत्वेन सौरसंवत्सर के अंतराल में जो छ संख्यक अवमरात्र-क्षयरात्र प्रतिपादित किये हैं, वे प्रमाण से चांद्र जातीय होते हैं, सौरात्मक अधिक होते हैं एवं चांद्रात्मक क्षयात्मक લેવું. સૂર્યની અપેક્ષાથી કર્મમાસની વિચારણામાં પ્રત્યેક વર્ષમાં છ અતિરાત્ર આવે છે. (माणाहिं) तेभ समन. द्रभासने मधिकृत ४ीने भभासनी लिया २ मा ४२४ सय सभा छ अपभरात्र-क्षय आवे छ. ते प्रमाणे (माणाहि) on मानाथी से सिद्ध थाय છે કે-જે અતિપાત્ર હોય છે તે સૌરસંવત્સમાં હોય છે. તથા જે અવમરાત્ર-ક્ષયતિથિ मावते यांसवत्सरमा माये छे. तेम समन भूम युं ५५५ छ-(छच्चेव अइरत्ता आइच्चा) त्याहि मे सवत्सम 2 छ मतिरात्र अर्थात् अधि (६५स या२ यार પર્વના અંતમાં પ્રતિપાદિત કરેલ છે. તે સજાતીયપણાથી સૌરસંવત્સરના હોય છે. તથા એક સંવત્સરના અંતરાલમાં જે છ અવમાત્ર ક્ષયતિથિ પ્રતિપાદિત કરેલ છે તે પ્રમાણથી ચાંદ્ર જાતની હોય છે. સૌરાત્મક અધિક હોય છે. અને ચાંદ્રાત્મક ક્ષયરૂપ હોય છે. આ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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