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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ७१ एकादशप्राभृतम् पर्यवसानं स खलु तृतीयस्य अभिवर्द्धितसंवत्सरस्यादिः, अनन्तरपुरस्कृतः समयः ॥तावदिति प्राग्वत् पूर्वप्रतिपादितयुक्त्यैव प्रारम्भपर्यवसानयोरेकत्र स्थितत्वात् यत् खलु द्वितीयस्य चान्द्रसम्वत्सरस्य पर्यवसानपरिसमाप्तिकालः स एवान्यूनाधिकः समयस्तृतीयस्याभिवद्धितसंवत्सरस्यादिः-प्रारम्भकालः स्यात् अनन्तरपुरस्कृतः समय:-अव्यवहितोत्तरकालरूप इति ॥-अथास्यैव पर्यवसानकालं पृच्छति-'ता से णं किं पज्जवसिए आहिएत्ति वएज्जा' तावत् स खलु किं पर्यवसित आख्यात इति वदेत् ॥-तावदिति पूर्ववत् सः-तृतीयोऽभिवद्धिताख्यः सम्वत्सरः किं पर्यवसितः ? ॥-कथं परिसमाप्ति मधिगच्छति ?-तस्य परिसमाप्तिकालः क आख्यात इति वदेत्-कथयेत् ततोऽस्योत्तर प्रतिपादयन् भगवानाह-'ता जेणं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स आदी से णं तच्चस्स अभिवडियसंवच्छरस्स पज्जवसाणे, अणंतरपच्छाकडे समए' तावद् यः खलु चतुर्थस्य चान्द्रसम्बपज्जवसाणे से णं तच्चस्स अभिवडियसंवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए) पूर्वकथित युक्ति के अनुसार प्रारंभ एवं समाप्ति का काल एक ही होने से जो दूसरा चांद्र संवत्सर का समाप्ति काल है, वही अन्यून अधिक समय तीसरा अभिवद्धितसंवत्सर का प्रारम्भ काल होता है, अनन्तर पुरस्कृत अर्थात् अव्यवहित माने ब्यवधान रहित उत्तरकाल रूप होता है। अब इसका समाप्ति काल के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता से णं किं पज्जवसिए आहिए त्ति वएन्जा) तीसरा अभिवर्द्धित संवत्सर किस प्रकार से समाप्त होता है ? अर्थात् उसका समाप्तिकाल कौन सा कहा है ? सो हे भगवन् आप कहिए इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के पूछने से इस के उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता जे णं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स आदी से णं तच्चस्स अभिवडियसंवच्छरस्स पजवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए) पज्जवसाणे सेण तच्चस्स अभिवड्ढयसंवच्छरस्स आदी अणतरपुरक्खडे समए) पडेटा કહેલ યુક્તિ અનુસાર આરંભ અને સમાપ્તિને સમય એકજ હોવાથી બીજા ચાંદ્ર સંવત્સરને જે સમાપ્તિ સમય છે એજ જૂનાધિક પણું વગરને સમય ત્રીજા અભિવધિત સંવત્સરને પ્રારંભ કાળ હોય છે. અનંતર પુરસ્કૃત અર્થાત્ અવ્યવહિત એટલેકે વ્યવધાન વગરના ઉત્તરકાળ રૂપ હોય છે. वे माना समातिना समयमा श्रीगौतमस्वामी प्रश्न पूछे छ-(ता सेणं कि पज्जवसिए आहिएति वएज्जा) श्री अमित सत्स२ वी रीत सभात थाय छ ? અર્થાત્ તેને સમાપ્તિ સમય કયે કહેલ છે? તે હે ભગવન આપ કહો આ પ્રમાણે શ્રી गौतमस्वामीना पूछाथी तेना उत्तरमा श्रीमपानू डे छ-(ता जेणं चउत्थस्स चंद संवच्छरस्स आदी सेणं तच्चस्स अभिवढियसंबच्छरस्प पज्जवसाणे अणं सरपच्छाकडे समए) प्रारम भने समाति समय के साथ०४ २९वाथा याथा यांद्र सवत्सरने में શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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