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________________ ... siriyaut सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ६८ दशमप्राभृतस्य द्वाविंशतितमं प्राभृतप्राभृतम् ३०३ एयति सस्मिन् समये खलु सूर्योऽपि आर्द्राभिश्चैव आर्द्रानक्षत्रेणैव सह वर्तमानः सन् तां द्वादशीममावास्यां परिसमापयति । आद्रीनक्षत्रस्य त्रितारकत्वाद्बहुवचनमिति । शेषपाठविषयेऽति देशमाह-'अदाणं जहा चंदम्स' यथा चन्द्रविषये आनक्षत्रस्य शेषः प्रतिपादितस्तथैवात्रसूर्यविषयेऽपि शेषविभागः प्रतिपादनीय इति । स चैवम्-'ता अहाणं चत्तारि मुहुना दस य बावद्विभागा मुहुत्तस्स बावविभागं च सत्तट्टिहा छेत्ता चउपण्णं चुण्णियामागासेसा' तदानीम् आनिक्षस्य चत्वारोमुहर्ताः, एकस्य च मुहूत्र्तस्य दश द्वाषष्टिभागाः, एकंच द्वाषष्टिभागं सप्तपष्टिधा छित्त्वा-सपष्टिविभागैविभज्य तस्य विभक्तस्य विभागस्य सत्काश्चतुःपश्चानक्षत्र के साथ युरू होता है ? इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रा को सुनकर उत्तर में भगवान कहते हैं--(ता अदाहिं चेव, अहा णं जहा चंदस्स) जिस समय यथोक्त शेष सहित चन्द्र आर्द्रा नक्षत्र से युक्त होकर बारहवां अमावास्था को समास करता है उस समय सूर्य भी आर्द्रा नक्षत्र के साथ ही रहकर उसबारहवीं अमावास्या को समाप्त करता है। आर्द्रा नक्षत्र तीन तारावाला होने से यहां पर सूत्र में बहुवचन से कहा है। अब अबशिष्ट पाठ के विषय में अतिदेश से कहते हैं-(अदाणं जहा चंदस्स) जिस प्रकार चंद्र नक्षत्र योगविषय में आर्द्रा नक्षत्र का शेष प्रतिपादित किया है, उसी प्रकार यहां पर सूर्यनक्षत्र योगविषय में भी शेष विभाग का प्रतिपादन कर लेवें । वह इस प्रकार से हैं-(ता अद्दा णं चत्तारि मुहत्ता दस य बावहिभागा मुहत्तस्स बावहिभागं च सत्तट्टिहा छेत्ता चउपण्णं चुग्णिया भागा सेसा) उस समय आर्द्रा नक्षत्र का चार मुहर्त तथा एक मुहूर्त का बासठिया दस भाग तथा बामठिया एक भाग का सडसठ भाग कर के तत्संबंधी चोपन વાસ્યા સમાપ્ત કરે છે, એ સમયે સૂર્ય કયા નક્ષત્રની સાથે યુકત રડે છે? આ રીતે श्रीगीतस्वाभीना प्रश्नन Rinने तेना उत्तम श्रीमान् ४ . - (ना अदाहि चेव अदागं जहा चं स्म) (ना) ? समये यथा शेष सहित यंद्र माद्रा नक्षत्रनी साथै योग કરીને બારમી અમાવાસ્યાને સમાપ્ત કરે છે, તે સમયે સૂર્ય પણ આદ્રા નક્ષત્રની સાથેજ રહીને એ બારમી અમાવાસ્યાને સમાપ્ત કરે છે. આદ્રા નક્ષત્ર ત્રણ તારાઓવાળું હોવાથી અહીં સૂત્રમાં બહુવચનથી કડેલ છે. હવે બાકીના પાઠના સંબંધમાં अतिशथी. ४१ (शहाणं जाना चंदरम) के प्रमाणे य स योजना समयमा આદ્રા નક્ષત્રનું શેષ પ્રતિપાદિત કરેલ છે, એ જ પ્રમાણે અહીંયાં આ સૂર્ય નક્ષત્રના ગિ વિષયમાં પણ શેષ વિભાગનું પ્રતિપાદન કરી લેવું. તે આ પ્રમાણે છે,-(તા अदाणं चनारि मुहुत रा य बाट्रिभागा मुहुत्तम्स, बावद्विभागं च सत्तद्विहा छेत्ता च पण चुणि या भागा सेसा) से समय मा नक्षत्रना या भुत तथा ४ मुतना मासाया દસ ભાગ તથા બાસઠિયા એક ભાગના સડસઠ ભાગ કરીને તેના ચેપન ચૂર્ણિકા ભાગ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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