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________________ २३२ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे -सर्वान्तिमा युगान्तमासप्रपूर्णबोधिकां 'बावडिं' द्वापष्टिं-द्वाषष्टितमां 'पुण्णिमासिणि' पौर्णमासीं 'जोएइ' युनक्ति-परिसमापयति, चन्द्रो यस्मिन् मण्डलप्रदेशे स्थितः सन द्वाषष्टितमां पौर्णमासी परिपूरयति 'ताए' तस्मात् 'पुण्णिमासिणिट्ठाणाए' पौर्णमासीस्थानात्-द्वाषष्टितमपौर्णमासीपरिसमाप्तिस्थानादित्यर्थः, परतः स्थितं यन्मण्डलं तत् 'चउवीसे णं सए णं छेत्ता' चतुर्विशतिकेन शतेन छित्वा--चतुर्विंशत्यधिकेन शतेन विभज्य-तावन्मितान् भागान् विधाय तद्गतेषु 'छत्तीसोलस भागे छेदित षोडशभागान् 'उकोवइत्ता' उत्कोस्य-समादाय, प्रथम चतुर्विंशत्यधिकशतधा विभक्तेभ्यो मण्डलप्रदेशेभ्यः पोडशभागानादायान्यत्र स्थापयेत् । यतोहि चरमद्वाषष्टितमाममावास्यायास्तथा चरमद्वाषष्टितमपौर्णमास्याः पक्षण-पश्चात् पक्षण च-पक्षान्तरे विवक्षितमण्डप्रदेशात् चन्द्रः पोडशभिश्चतुर्विशत्यधिकशतभागैः परतः प्ररूप्यते । मासेन द्वात्रिंशता भागैः परतो वर्तमानस्य मण्डलस्य तत्रैव स्थाने लभ्यमानत्वादिदमुकम् अत एव छेदितप्रदेशेभ्यः पोडशभागान् पूर्वमवष्वक्य इत्युक्तं युक्तियुक्तिमिव प्रतिभाति । जिस मंडल प्रदेश में (चंदे) चन्द्र (चरिमं) युग के अंतमास के पूर्ण बोधिका (बावट्ठि) बासठवीं (पुणिमासिणि) पूणिमा को (जोएइ) समाप्त करता है, चंद्र जिस मंडल प्रदेश में रहकर बासठवीं पूर्णिमा को समाप्त करता है (ताए) उस (पुण्णिमासिणिहाणाए) बासठवीं पूर्णिमासी के समाप्ति स्थान से पर रहा हुवा जो मंडल है उस मंडल को (चउवीसेणं सएणं छेत्ता) एकसो चोवीस विभाग करके उनमें से • (छत्तीसोल सभागे) विभक्त किये हुवे सोलह भागों को (उकोवइत्ता) लेकर अर्थात् प्रथम एकसो चोवीस से विभक्त किये हुवे मंडल प्रदेश में से सोलह भागों को लेकर अन्यत्र रखे, कारण की अन्तिम बासठवीं अमावास्या का तथा अन्तिम बासठवीं पूर्णिमा का पक्षान्तर से विवक्षित मंडल प्रदेश से चंद्र एकसो चोवीसिया सोलह भागों से पर निरूपित किया है। एक मास के बत्तीस भाग के पर वर्तमान मंडल का उसी स्थान में रहने से यह कथन कहा है। अत एव छेदित प्रदेश से सोलह भागों को रखकर ऐसा प्रदेशमा (चंदे) यद्र (चरिम) युगना छेदसा भासने पूर्ण माधि। (बावदि) पास भी (पुण्णिमासिणि) पूणि माने (जोएइ) समास ४२ छ, यो मप्रदेशमा २ीन मास भी निभाने समास ४२ छ (ताए) ते (पुणिमासिणिढाणाए) मासभी पूनिभाना समाप्ति स्थानथी पछीनु म स्थान छे ये भजने (चउवीसेणं स०णं छेत्ता) मेसो योवीस मा ४शन तमांथी (छत्तीसोलस भागे) विमत ४२ सोण मागाने (उक्कोवइत्ता) લઈને અર્થાત્ પહેલા એકસો વીસ ભાગથી વિભક્ત કરેલ મંડળ પ્રદેશમાંથી સોળ ભાગને લઈને એક તરફ રાખવા કારણ કે છેલ્લી બાસઠમી અમાવાસ્યાના તથા અતિમ પૂર્ણિમાના પક્ષાન્તરથી વિવણિત મંડળપ્રદેશથી ચંદ્ર એક વીસિયા સેળ ભાગેની પછી પ્રરૂપિત કરેલ છે. એકમાસના બત્રીસ ભાગ પછી રહેલ મંડળના એજ સ્થાનમાં રહેવાથી આ કથન કહેલ છે, અએવ છેદિત પ્રદેશથી સોળ ભાગને રાખીને એવું જે કહ્યું છે તે સયુક્તિક શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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