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सूर्यप्राप्तिसूत्र 'ताए' तस्मात् परिसमाप्तिस्थानात् 'अमावासटाणाए' अमावास्यास्थानात्-द्वाषष्टितमअमावास्यापरिसमाप्तिस्थानात्-मण्डलप्रदेशात् परतो यन्मण्डलं-मण्डलप्रदेशं तत् 'चउवीसेणं सरणं छेत्ता' चतुर्विशतिकेन शतेन छिवा-चतुर्विशत्यधिकेन शतेन विभज्य-तावन्मितान् भागान् विधाय तद्गतान् 'दुवतीसं भागे' द्वात्रिंशतं भागान् 'उवाइणावेत्ता' उपादाय-द्वात्रिंशत्तम भागमादाय 'एत्थ णं' अस्मिन् खलु-अत्रैव मण्डलप्रदेशे किल स्थितः सन् स चन्द्रः 'पढम अमावासं' प्रथमाममावास्यां 'जोएइ' युनक्ति-प्रथमाममावास्यां परिसमापयतीत्यर्थः । अथान्यासमाप्यमानाममावास्यानां परिसमाप्तिबोधक्रमं दर्शयति- एवं जेणेव अभिलावेणं चंदस्स पुणिमासिणिओ तेणेव अभिलावेणं अमावासाओ भणितवाओ' एवं येनैव अभिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्यस्तेनैव अभिलापेन अमावास्या अपि भणितव्याः। एवं-पूर्वोदितेन प्रकारेण येनैव क्रमेण अभिलापेन-समभिव्याहारेण चन्द्रस्य पौर्णमास्यो भणिताः-प्रतिपादिताः तेनैव अन्त में आनेवाली (बावडिं) बासठवीं (अमावासं) युग के अन्त के मास की मध्यवर्ति अमावास्या को (जोएइ) समाप्त करता है। (ताए) उस समाप्ति स्थान से (अमावासट्ठाणाए) अमावास्या समाप्तिस्थान से अर्थात् बासठवीं अमावास्या समाप्तिस्थान से माने मंडलप्रदेश से (मंडलं) पर का जो मंडल प्रदेश उसको (चउवीसेणं सरणं छेत्ता) एकसो चोवीस से विभक्त करके उतने भागों में से (दुबत्तीसं) बत्तीस भागों को (उवाइणावेत्ता) ग्रहण करके (एत्थ गं) इतने मंडलप्रदेश में रह कर (से चंदे) वह चंद्र (पढमं अमावासं) पहली अमावास्या को (जोएई) समाप्त करता है। अब अन्य अमावास्याओं का समाप्तिबोधक क्रम को दिखलाते हैं-(एवं जेणेव अमिलावणं चंदस्स पुणिमासिणिओ तेणेव अभिलावेणं अमावासाओ भणितवाओ) इस पूर्वोक्त प्रकार से जिस अभिलापक्रम से चन्द्रमा संबंधि पूर्णिमा की समाप्ति प्रतिपादित की है, उसी अभिलाप क्रम से चन्द्र संबंधी अमावास्या की समाप्तिकम भी प्रतिपादित कर लेवें जो इस प्रकार से हैंमापनारी (बावहि) मामी (अमावास) युराना अतिम भासी भध्यात° पात्याने (जोपड) समास ५२ छ ? (ताए) समासिस्थानथी (अमावासद्वाणाए) अमावास्याना समाति स्थानथी मेट भ शिथी (मंडलं) पछीनु भयहेश तन (चउवीसेणं सएण केसा) मेसो योवीसथा विsa ४शन मेवे भागोमांथा (दुबत्तीस) मत्रीस लागाने (खाइणावेत्ता) पण शने (एत्थ णं) से म हेशमा २डीन (से चंदे) ते 'द्र (पढमं अमावास) पक्षी मावास्याने (जोएइ) समास ४२ छ. हवे अन्य अमावास्यामाना समातिमा उभ मताव छ-(एवं जेणेव अभिलावेणं चंदस्स पुणिमासिणिओ तेणेव अभि. लावेणं अमावासाओ भणितव्वाओ) 0 पूर्वात ४२थी रे मनिला५ भथा यद्रमा સંબંધી પૂર્ણિમાની સમાપ્તિનું પ્રતિપાદન કરેલ છે, તે જ અભિલાપ ક્રમથી ચંદ્ર સંબંધી अमावास्याना समामिनाम प्रतिपाहित शव. २ मा प्रभार छ-(बीइया,
श्रीसुर्यप्रति सूत्र : २