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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सु० ६१ दशमप्राभृतस्य द्वाविंशतितम प्राभृतप्राभूतम् १८१ प्रथमस्थाने जातानि नवत्यधिकानि नवशतानि, अर्द्धस्यापि च त्रिंशता गुणनेन द्वाभ्यां भक्तेन पञ्चदश भवन्ति, तेनोभयोर्मेलनेन ९९०+१५=१००५ जातं पश्चोत्तरं सहस्रं द्वादशनक्षत्राणां स्वभोग्यक्षेत्रस्य सीमाविष्कम्भपरिमाणमिति गणितक्रियया सिद्धयतीति । 'तत्थ जे ते णक्खत्ता जेसि णं दो सहस्सा दसुत्तरा सत्तद्विभागतीसइभागाणं सीमाविक्खंभो, ते णं तीसं तं जहा-दो सवणा जाव दो पुव्वासाढा' तत्र यानि तानि नक्षत्राणि येषां खलु सहस्से द्वे दशोत्तरे सप्तषष्टिभागत्रिंशद भागानां सीमाविष्कम्भस्तानि खलु त्रिंशद तद्यथा-द्वौ श्रवणौ यावत् द्वे पूर्वाषाढे अत्रापि यावच्छन्दोपादानात् पूर्वपठितपाठो द्रष्टव्यो यथा-'दो धणिवा दो पुव्याभदयया दो रेवई दो अस्सिणी दो कत्तिया दो मग्गसिरा दो पुस्सा दो महा दो पुव्वाफग्गुणीओ दो हत्था दो चित्ता दो अणुराहा दो मूला दो पुव्वासाढा' अर्थात् द्वौ श्रवणौ द्वे धनिष्ठे द्वे पूर्वाभाद्रपदे द्वे रेवत्यौ द्वे अश्विन्यौ द्वे कृत्तिके द्वौ मृगशीर्षों द्वौ पुष्यौ द्वे मघे द्वे पूर्वाफाल्गुन्यौ द्वौ हस्तौ द्वे चित्रे आधे को भी तीस से गुणा करने से दो से भाग कर के पंद्रह होते हैं ये दोनों को जोडने से ९९०+१५%D१००५ एक हजार पांच बारह नक्षत्रों का स्वभोग्य क्षेत्र का सीमाविष्कंभ परिमाण गणित किया से सिद्ध होता है। (तस्थ जे ते पक्वत्ता जेसिणं दो सहस्सा दसुत्तरा सत्तहिभागतीसहभागाणं सीमाविक्खंभो, ते णं तीसं तं जहा-दो सवणाजाव दो पुत्वासाढा) उनमें जिन नक्षत्रों का सीमाविष्कंभ दो हजार दस तथा सडसठिया तीस भाग प्रमाण का होता है, वे नक्षत्र तीस होते हैं, जैसे कि-दो श्रवण, यावत् दो पूर्वाषाढा। यहां पर यावत् शब्द कहने से पूर्वपठित पाठ कहलेना चाहिये जो इस प्रकार से है-(दो धणिहा, दो पुवाभदया दो रेवई दो अस्मिणी दो कत्तिया दो मग्गसिरा दो पुस्सा दो महा दो पुवाफग्गुणोओ, दो हत्था दो चित्ता, दो अणुराहा दो मूला दो पुत्वासाढा) अर्थात् दो श्रवण दो धनिष्ठा, दो पूर्वाभाद्रपदा, दो रेवती दो
સ્થાનમાં નવસે નેવું થાય છે. અર્ધાને પણ ત્રીસથી ગુણાકાર કરીને બેથી ભાગ કરે તે પંદર આવે છે, આ બન્નેને મેળવવાથી ૯૯૦+૧૫=૧૦૦૫ એક હજાર પાંચ બાર નક્ષત્રોના વાગ્ય क्षेत्रनु सीमावि परिभाएर आशित याथी सिद्ध थाय छे, (तत्थ जे ते णक्खत्ता जेसिणं दो सहस्सा दसुत्तरा सत्तद्विभागतीसइभागाणं सीमाविक्खंभो ते णं तीसं तं जहा-दो सवणा जाव दो पुव्वासाढा) तमां रे नक्षत्रोनो सीमावि मे १२ ६स तथा સડસઠિયા ત્રીસ ભાગ પ્રમાણ જેટલું હોય છે એવા નક્ષત્ર ત્રીસ છે, તેના નામ આ પ્રમાણે છે, બે શ્રવણ યાવત્ બે પૂર્વાષાઢા અહીંયાં યાવત્ શબ્દ કહેવાથી પહેલા કહેલ पा8 ही सेवा मे. ते ॥ प्रमाणे छे, (दो धणिढा, दो पुठवभवया, दो रेवई हो अस्सिणी दो कत्तिया दो मग्गसिरा, दो पुस्सा, दो महा, दो फागुणोओ, दो हत्था, दो चित्ता, दो अणुराहा दो मूला दो पुव्वासाढा) अर्थात् मे श्रवण ये धनिष्ठा ये galurust, 2 रेवती
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2