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________________ सूर्यक्षप्तिप्रकाशिका टोका सू० ५९ दशमप्राभृतस्य एकविंशतितमं प्राभृतप्राभृतम् १३३ तमेऽस्मिन्नर्थाधिकारसूत्रे नक्षत्राणां द्वाराणि प्ररूप्य तद्विषयकं प्रश्नसूत्रं 'ता कहं ते जोतिसस्स' इत्यादिना विवृणोति___ता कहं ते जोतिसस्स दारा आहिएति वएजा' तावत कथं ते ज्योतिषो द्वाराणि आख्यातानीति वदेत् । तावत्-तत्र ज्योतिश्चक्रविचारे सम्बत्सराणां भेदान् ज्ञात्वा नक्षत्राणां द्वारविषये किश्चित् प्रष्टव्यमस्ति तावत् , कथं-केन प्रकारेण केनोपायेन केन क्रमेण कयावोपपत्या ज्योतिषो-नक्षत्रचक्रस्य मण्डलस्य द्वाराणि आख्यातानि-प्रतिपादितानि तेत्वया भगवनिति वदेत्-कथयेदिति गौतमस्य प्रश्नं श्रुत्वा भगवान् एतद्विषये परतीर्थिकानां यावत्यः प्रतिपत्तयः प्रतिपादिताः सन्ति तावतीरूपदर्शयन्नाह-'तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमाः पञ्च प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः । तत्र-नक्षत्राणां द्वारविषयविचारे खल्विति निश्चये इमाः-वक्ष्यमाणप्रकारकाः पश्चपरतीथिकानां प्रतिपत्तयः के वीसवें प्राभृतप्राभृत में युगों के एवं युगसंवत्सरों के लक्षणों की सम्यक् प्रकार से विचारणा करके अब इक्कीसवें प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रों के द्वारों का प्रतिपादन करने के उद्देश से उस विषय विषयक प्रश्नसूत्र कहते हैं-(ता कहं ते जोतिसस्स) इत्यादि। श्रीगौतमस्वामी प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् (ता कहं ते जोतिसस्स दारा आहिएत्ति वएजा) ज्योतिश्चक्र की विचारणा में संवत्सरों के भेद ज्ञात हुए, अब नक्षत्रों के द्वार के विषय में प्रश्न करता हूं कि किस प्रकार से या किस कम से अथवा किस उपपत्ति के बल से नक्षत्र चक्रमंडल के द्वारों का आपने प्रतिपादन किया है ? सो आप मुझे कहिए। इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को जानकर श्रीभगवान् इस विषय के बारे में अन्य तीथिकों की जितनी प्रतिपत्तियां कही है वे दिखाने को कहते हैं-(तस्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ! नक्षत्रों के द्वार विषयक विचारणा में ये वक्ष्य પ્રાકૃતમાં યુગોના અને યુગસંવત્સરના લક્ષણોને સારી રીતે વિચાર કરીને હવે આ એકવીસમા પ્રાભૃતપ્રાભૃતમાં નક્ષત્રના દ્વારેનું પ્રતિપાદન કરવા માટે તે વિષય સંબંધી प्रश्न सूत्र ४ छ.-(ता कहं ते जोतिसस्स) त्याहि । श्रीगीतमस्वामी प्रश्न ४२ छे । लगवन् (ता कहं ते जोतिसरस दारा आहिएत्ति वएज्जा) ज्योतिश्वनी विधारणामा सवत्सराना हो तjanwi माव्या, वे नक्षत्राना દ્વારના સંબંધમાં પ્રશ્ન પૂછું છું કે કેવી રીતે કે કેવા પ્રકારના કામથી અથવા કઈ ઉપપત્તિના બળથી નક્ષત્રચક્ર મંડળના દ્વારેનું આપે પ્રતિપાદન કર્યું છે? તે આપ મને કહો. આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને જાણીને શ્રીભગવાન્ આ વિષયના સંબંધમાં भन्यता थिओनी २८ प्रतिपत्तियो डी छे ते मतावा भाटे ४ छ-(तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ) गौतम ! नक्षत्राना २ विषय विया२मा २॥ १क्ष्यमाएy શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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