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________________ सर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १०५ विंशतितम'प्राभृतम् १०३३ वएज्जा' तावत् कथं ते राहुकर्म आख्यातमिति वदेत् ।।-तावदिति पूर्ववत् कथं-केन प्रकारेण ते-त्वया भगवन् ! राहुकर्म-राहोः क्रिया-चलनादि प्रवृत्तिः आख्यातं-प्रतिपादितमितिवदेत्-कथय भगवन्निति गौतमेन प्रश्ने कृते भगवानाह-'तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमे द्वे प्रतिपत्ती आख्याते प्रज्ञप्ते, । तत्र-राहुकर्मविषयविचारे खल्विति निश्चयेन इमे-वक्ष्यमाणस्वरूपे द्वे प्रतिपत्ती-परतीथिकाभिप्रायस्वरूपे मतान्तररूपे प्रज्ञप्ते-प्रतिपादिते । त एवोपदर्शयति-'तत्थेगे एवमासु-अत्थि णं से राह देवे जे णं चंदं सूरं वा गिण्हइ, एगे एवमाहंसु' तत्रैके एवमाहुः-अस्ति खलु स राहुर्देवो यश्चन्द्र सूर्य वा गृहाति ॥ तत्र-तेषां परितीथिकानां मध्ये एके-प्रथमास्तीर्थान्तरीयाः एवमाहुःकथयन्ति यत् अस्ति खलु कश्चित् राहुनामा देवविशेषो यः खलु समये समये चन्द्रं वा सूर्य वा गृहाति-पर्वणि ग्रसति, अत्रोपसंहारमाह-एके एवमाहुरिति ।। 'एगे पुण एवमासु णत्थि णं से राहु देवे जेणं चंदं वा सूरं वा गिण्हइ' एके पुनरेवमाहुः-नास्ति खलु स प्रकार के विचारों को प्रदर्शित करने के हेतु से श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता कहं ते राहुकम्मे आहिएत्ति वएजा) हे भगवन् ! आपने राहु की क्रिया अर्थात् गमनादि प्रवृत्ति किस प्रकार से प्रतिपादित की है ? सो कहीये? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं(तत्थ खल इमाओ दो पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ) राहु की प्रवृत्ति विषयक विचार में ये वक्ष्यमाण प्रकार की दो प्रतिपत्ती प्रतिपादित की है। वे दिखलाते हैं(तत्थेगे एवमाहंसु अस्थि णं से राहू देवे जे णं चंदं सूरं वा गिण्हइ, एगे एवमासु) उन दो परतीथिकों में पहला तीर्थान्तरीय इस प्रकार कहता है-राह नाम का कोई देव विशेष है जो समय समय पर चंद्र को या सूर्य को ग्रसित करता है अर्थात् पर्व के दिन में ग्रसित करता है । इसका उपसंहार करते हवे कहते हैं-कोइ एक इस प्रकार से अपना मत कहता है । (एगे पुण एवमासु णस्थि णं से राहु देवे जे णं चंदं वा सूरं वा गिण्हइ) प्रथम प्रश्न पूछे छ.-(ता कहं ते राहुकम्मे आहिएत्ति वएज्जा) 3 भगवन् ! माघे राहुनी या અર્થાત્ ગમનાદિ પ્રવૃત્તિ કેવી રીતની પ્રતિપાદિત કરી છે? તે કહો આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમ स्वाभाना प्रश्न सामणीन. उत्तरमा श्रीमान् ४ छ. (तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) राहुनी प्रवृत्तिनी विषय वया२मा २ पक्ष्यमा ४२नी से प्रतिपत्तियो प्रतिपाति रे छ. ते 20 प्रमाण छ.-(तत्थेगे एव माहंसु अत्थि णं से राहू देवे जेणं चंदं सूरवा गिण्हइ एगे एवमाइंसु) से मे परतीथि म पडसे। पतथि: 20 प्रमाणे કહે છે. રાહ નામનો કોઈ દેવ વિશેષ છે જે સમયે સમયે ચંદ્ર કે સૂર્યને ગ્રસિત કરે છે. અર્થાત્ પર્વના દિવસે ગ્રસિત કરે છે. આને ઉપસંહાર કરતા કહે છે કે-કોઈ એક આ प्रमाणे पाताना मत वे छे. (एगे पुण एवमासु णत्थि गं से राहु देवे जेणं चंदपा શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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