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________________ १०२१ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १०४ विशतितम प्राभृतम् पूर्ववत्, कथं-केन प्रकारेक-कया रीत्या-कैनाधारण-कयोपपत्या वा, ते-त्वया भगवन् ! अनुभावः-चन्द्रादीनामानुभावः-रूपगुणबलवीर्यादि युक्तरूप विशेषः आख्यातः-प्रतिपादित इति वदेत-कथय भगवन्निति-गौतमेन प्रश्ने कृते सति भगवानेतदविषये द्वे प्रतिपत्ती उपदर्शयति-तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमे द्वे प्रतिपत्ती प्रज्ञप्ते, तत्र-चन्द्रादीनामनुभावविचारे खलु इमे-द्वे प्रतिपत्ती प्रज्ञप्ते, तत्र-चन्द्रादीनामनुभावविषयविचारे खलु इमे-वक्ष्यमाणस्वरूपे द्वे पतिपत्ती-परतीथिकाभ्युपगम स्वरूप प्रज्ञप्ते-प्रतिपादिते वर्त्तते । के ते द्वे प्रतिपत्ती ? इति जिज्ञासां परिहरन्नाह-'तत्थेगे एवमाहंमु' तत्रैक एवमाहुः । तत्र-द्वयोः परतीर्थिकयोः प्रतिपत्तिरूपदर्शने एके-प्रथमाः परतीथिका स्तन्मतावलम्बिन श्चैवं-प्रतिपाद्यमानस्वरूपं स्वमतमाहुः-स्वकीयं मन्तव्यं स्थापयन्ति । तद्यथा-'ता चंदिमसूरिया णं णो जीवा अजीचा, णो घणा झुसिरा, णो बादरबोंदिधरा कलेवरा, णत्थि णं तेसिं उठाणेइ वा कम्मेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसगारपरकमेइ वा ते णो विज्जलवंति णो असणि लवंति णो थणितं लवंति, अहे य णं बादरे बाउकाए संमुच्छइ अहे य णं बादरे बाउकाए संमुच्छि ता विज्जुपि लवंति असणिं पि लवंति थणितं अर्थात् रूप गुण बल वीर्य आदि से रूप विशेष कहा है ? सो कहिये । इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर श्रीभगवान् इस विषय में दो प्रतिपत्तियां कहते हैं (तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) चंद्रादि के अनुभाव के विषय की विचारणा में ये वक्ष्यमाण स्वरूप वाली दो प्रतिपत्ती प्रतिपादित की है-वे दो कौनसी प्रत्तिपत्ती है ? इस के लिये कहते हैं-(तत्थेगे एव माहंसु) दो परतीथिकों में प्रथम परतीर्थिक अपने मत के संबंध में इस निम्नोक्त प्रकार से प्रतिपादन करते हैं-जैसे की-(ता चंदिमसरिया णं णो जीवा अजीवा, णो घणा झुसिरा, णो बादरबोंदिधरा कलेवरा, णस्थि तेसिं उहाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा पुरिसगारपरकमेइ वा ते णो विज्जू लवंति णो असणि लवंति णो थणितं लवंति, अहे य णं बादरे वाउकाए वएज्जा) ॐ भगवन् ! ४या ५४२थी भने ४या आधारथी मारे यहिना अनुमा अर्थात् રૂપ, ગુણ, બળ વિર્ય વિગેરે સ્વરૂપવિશેષ કહેલ છે? તે કહો આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના प्रश्नने सांगणीने श्रीमान् ॥ विषयमा में प्रतिपत्ती ४ छे. (तस्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पणत्ता ओ) याविना अनुमान॥ समधनी वियामा ! श्यमान સ્વરૂપવાળી બે પ્રતિપત્તિ પ્રતિપાદિત કરેલ છે. તે બે પ્રતિપત્તી કઈ છે? તે જાણવા ४ छ-(तत्येगे एवमाहंस) मे ५२तीथिमा पस! तीथि पोताना मत विष मा नाये वेद प्राथी प्रतिपादन ४२ छे. भ(ता च दिमसूरियाणं णो जीवा अजीवा णो घणा झुसिरा, णो बादरबोंदिरा कलेवरा णस्थि ण तेसि उटाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिए इवा पुरिसगारपरकमेह वा ते णो विज्जुलवति, णो असणि लवति णो थणितं लवति, अहे य गं શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર:
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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