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________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३६ दशमप्राभृतस्य चतुर्थ प्राभृतप्राभृतम् ७४५ पाओ चंदं मूलस्स समप्पेइ' तावत् ज्येष्ठा खलु नक्षत्र नक्तं भागम् अपार्द्धक्षेत्रं पश्चदशमुहूर्त तत् प्रथमतया सायं चन्द्रेण सार्द्ध योगं युनक्ति, न लभते अपरं दिवसम्, एवं खलु ज्येष्ठानक्षत्रमेकां रात्रि चन्द्रेण सार्द्ध योगं युनक्ति, योगं युक्त्या योगमनुपरिवर्तयति, योगमनुपरिवयं प्रातश्चन्द्रं मूलस्य समर्पयति ॥ केवलम भागक्षेत्रत्वात् पञ्चदशमुहूर्त्तत्वाम् सायं चन्द्रयोगत्वाच्वेदं ज्येष्ठानक्षत्र केवलामेको तामेव रात्रि यावच्चन्द्रेग सामुपित्या, अषितं च तं चन्द्रं मूलनक्षत्राय भोगार्थ समर्पयति, मूलनक्षत्रं चेदमुक्तयुक्त्या पातश्चन्द्रयोगमुपागच्छति तेनेदं पूर्वभागमित्यवसेयं, तथा चाह मूलसूत्रे-'मूलो जहा पुव्यभवया' मूलं यथा पूर्वाभाद्रपदा ॥ पूर्वे यथा-पूर्वाभाद्रपदानक्षत्रं भावितं तथैवात्र मूलमपि अबसेयम्, तद्यथा-'ता मूले खलु णक्खत्ते पुव्वं भागे समक्खित्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए पादो चंदेण सद्धिं जोयं अणुपरियट्टइ, जोयं अणुपरियहिता पाओ चंदं मूलस्स समप्पेइ) ज्येष्ठा नक्षत्र नक्तं भागी अपार्धक्षेत्र पंद्रह मुहूर्त प्रमाण तत्प्रथम सायं चन्द्र के साथ योग करता है। दूसरा दिवस उस को नहीं मिलता। इस प्रकार ज्येष्ठा नक्षत्र एक रात्रि मात्र चन्द्र के साथ योग करताहै योग कर के योगका अनुपरिवर्तन करते हैं, योग का अनुपरिवर्तन कर के प्रातः काल मूल नक्षत्र को समर्पित करता है। केवल अर्द्धभागक्षेत्र होने से पंद्रह मुहूर्त काल व्यापी तथा सायं काल चंद्र का योग करनेवाला होने से यह ज्येष्ठा नक्षत्र केवल एक वही रात्रि चंद्र के साथ वसकर उस चन्द्र को मूल नक्षत्र को भोग के लिये समर्पित करता है,इस कथित प्रकार से मूल नक्षत्र प्रातःकाल में चन्द्र का योग प्राप्त करता है अतः यह पूर्वभागी जानना चाहिये सूत्रकारने कहा भी है-(मूलो जहा पुश्वभद्दवया) पहले जिस प्रकार से पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र का कथन किया है उसी प्रकार मूल नक्षत्र को कह लेवें जो इस प्रकारसे हैं-(ता मूले खलु णक्खत्ते जोयं अणुपरियट्टइ, जोयं अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं मूलस्स समप्पेइ) ये नक्षत्र नत ભાગી અપાર્ધક્ષેત્ર પંદર મુહૂર્ત પ્રમાણ તપ્રથમ ચંદ્રની સાથે એગ કરે છે. તેને બીજે દિવસ મળતો નથી. આ પ્રમાણે જ્યેષ્ઠા નક્ષત્ર એક રાત્રીમાત્ર ચંદ્રની સાથે એગ કરે છે, એગ કરીને વેગનું અનુપરિવર્તન કરે છે, જેમનું અનુપરિવર્તન કરીને પ્રભાતકાળે મૂલનક્ષત્રને સમર્પિત કરે છે. કેવળ અર્ધભાગ ક્ષેત્ર હવાથી પંદર મુહૂર્ત કાળ વ્યાપી તથા સાંજના સમયે ચંદ્રને વેગ પ્રાપ્ત કરવાવાળું હવાથી ચેષ્ઠા નક્ષત્ર કેવળ એક જ રાત ચંદ્રની સાથે રહીને એ ચંદ્રને મૂળ નક્ષત્રને ભોગને માટે સમર્પિત કરે છે. આ કહેલ પ્રકારથી મૂળનક્ષત્ર પ્રાતઃકાળમાં ચંદ્રને વેગ પ્રાપ્ત કરે છે, તેથી આ પૂર્વભાગ સમજવું सूत्रारे ४ह्यु ५५ छ-(मूलो जहा पुठवभवया) पद प्रमाणे पूर्व भाद्रह नक्षत्र ४थन रेस छ. मे२४ प्रमाणे भूगनक्षत्रने पर ही से. मे २0 प्रमाणे छ,-(ता मले खलु णक्खत्ते पुव्वंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धि जोयं जोएड. શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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