SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 638
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे पूर्व षष्ठे प्राभृते २७ सप्तविंशतितमे सूत्रे व्याख्यातमिदं सर्वमिति' तदेवं लेश्या विषयाः परतीर्थिकप्रतिपत्तिरूपाः । तद्यथाक्रमेणालापका:अनुसमयमेव सूर्यः पौरुषी छायां निवर्तयतिअनुमुहूर्तमेव सूर्यः पौरुषी छायां निवर्तयतिअनुरात्रिन्दिमेव सूर्यः अनुपक्षमेव सूर्यः अनुमासमेव सूर्यः अनुऋतुमेव सूर्यः अनुअयनमेव सूर्यः अनुसम्वत्सरमेव सूर्यः इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है । पहले छठे प्राभृत में सत्ताईस २७ वें सूत्र में यह सब व्याख्यात किया है, अतः वहां से समज लेवें। लेश्या विषयक परतीर्थिकों की प्रतिपत्तियां इस प्रकार से हैं क्रमानुसार आलापक प्रकार (१) अनुसमय सूर्य पौरुषी छाया को निवर्तित करता है। (२) अनुमुहूर्त सूर्य पौरुषी छाया को निवर्तित करता है (३) अनु रात्रिदिवस सूर्य (४) अनु पक्ष सूर्य (५) अनु मास सूर्य (६) अनु ऋतु सूर्य (७) प्रति अयन सूर्य પહેલાં છ પ્રાકૃતમાં સત્યાવીસમાં ૨૭ મા સૂત્રમાં આ તમામ પ્રતિપત્તિનું કથન કરેલ છે. તેથી ત્યાંથી તે સમજી લેવું, વેશ્યા સંબંધી પરતીથિની પ્રતિપત્તિ આ પ્રમાણે છે ક્રમાનુસાર આલાપક પ્રકાર (૧) અનુસમય સૂર્ય પરૂષિ છાયાને નિવર્તિત કરે છે, (૨) અનુમુહૂર્ત સૂર્ય પૌરૂષિ છાયાને નિવર્તિત કરે છે, (3) मनुवि हिवस सूर्य(४) अनु ५१ सूर्य(५) मनु भास सूर्य(६) मनु ऋतु सूर्य(५) प्रति अयन सूर्य શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy